रूड़की। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान रूड़की में आपदा न्यूनीकरण एवं प्रबंधन उत्कृष्टता केंद्र (सीओईडीएमएम) के शोधकर्ताओं ने हिमालय में वर्षा के कारण होने वाले भूस्खलन के लिए प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों को मजबूत करने के उद्देश्य से एक नॉवल ढांचे का अनावरण किया।
विशेषकर हिमालयी क्षेत्र में भूस्खलन एवं मलबा प्रवाह ने लंबे समय से महत्वपूर्ण चुनौतियां खड़ी की हैं, विशेषकर चरम मौसम की घटनाओं के दौरान।
यह अग्रणी प्रयास आईआईटी रूड़की के शोधकर्ताओं सुधांशु दीक्षित, प्रोफेसर एस श्रीकृष्णन, प्रोफेसर पीयूष श्रीवास्तव और प्रोफेसर सुमित सेन के नेतृत्व में आईआईएसईआर मोहाली के विशेषज्ञों प्रोफेसर यूनुस अली पुलपदान और राष्ट्रीय रिमोट सेंसिंग सेंटर (एनआरएससी), भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो), के डॉ तापस रंजन मार्था के सहयोग से किया गया। इससे हिमालय में क्षेत्रीय भूस्खलन पूर्व चेतावनी प्रणाली को बढ़ाने का प्रयास है।
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान के निदेशक प्रोफेसर केके पंत ने अनुसंधान परिणामों के बारे में उत्साह व्यक्त करते हुए कहा कि हमारे शोधकर्ताओं के सहयोगात्मक प्रयास नवाचार एवं अंतःविषय सहयोग की भावना का उदाहरण देते हैं जो आईआईटी रूड़की को परिभाषित करता है। यह अभूतपूर्व ढांचा न केवल हिमालयी क्षेत्र में बल्कि संभावित रूप से पूरे भारत में आपदा तैयारी प्रयासों को मजबूत करने की अपार संभावनाएं रखता है। प्राकृतिक खतरों एवं भू-प्रणाली विज्ञान में प्रकाशित हिमालयी जलग्रहण क्षेत्र में वर्षा-प्रेरित मलबे के प्रवाह की प्रारंभिक चेतावनी के लिए संख्यात्मक-मॉडल-व्युत्पन्न तीव्रता-अवधि सीमाएं शीर्षक वाले एक पेपर में शोध टीम के निष्कर्षों का विवरण दिया गया है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान रूड़की (आईआईटी रूड़की) के शोधकर्ताओं द्वारा विकसित इनोवेटिव ढांचा हिमालय में भूस्खलन पूर्व चेतावनी प्रणाली को बढ़ाने में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है।
1847 से चली आ रही उत्कृष्टता की परंपरा में निहित, आईआईटी रूड़की ने लगातार परिवर्तनकारी अनुसंधान प्रयासों का नेतृत्व किया है, जो सामाजिक कल्याण के प्रति अपनी प्रतिबद्धता का उदाहरण है। विभिन्न क्षेत्रों में अग्रणी सामाजिक पहलों और योगदानों के समृद्ध इतिहास के साथ, आईआईटी आपदा न्यूनीकरण एवं प्रबंधन जैसी गंभीर चुनौतियों का समाधान करने में सबसे आगे खड़ा है। यह नवीनतम प्रयास संस्थान की नवाचार और अंतःविषय सहयोग की स्थायी विरासत को रेखांकित करता है, ज्ञान को आगे बढ़ाने और सकारात्मक सामाजिक प्रभाव को बढ़ावा देने में इसकी भूमिका को और मजबूत करता है।