कर्नाटक में लागू हुआ ‘सम्मान से मरने का अधिकार’, जानिए इच्छा मृत्यु से कितना अलग है यह अधिकार

Right To Die With Dignity : कर्नाटक ने हाल ही में एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए ‘सम्मान के साथ मरने का अधिकार’ को लागू किया है। इस अधिकार के तहत, गंभीर या लाइलाज बीमारी से ग्रस्त मरीज, जो जीवन रक्षक उपचार नहीं चाहते, अब अस्पतालों और डॉक्टरों से उपचार रोकने का विकल्प प्राप्त कर सकते हैं। इस कदम के साथ कर्नाटक, भारत का दूसरा राज्य बन गया है जिसने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद यह अधिकार लागू किया।

क्या है सम्मान के साथ मरने का अधिकार

सम्मान से मरने का अधिकार का मतलब है कि अगर कोई मरीज गंभीर और लाइलाज बीमारी से पीड़ित है, तो वह जीवन रक्षक उपचार को रोकने का निर्णय ले सकता है। यह अधिकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आधार पर लागू किया गया है, जिसमें यह माना गया था कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार में सम्मान के साथ मरने का अधिकार भी शामिल है।

अलग से बनेगा मेडिकल बोर्ड

कर्नाटक सरकार ने इस अधिकार को लागू करने के लिए अस्पतालों में मेडिकल बोर्ड की स्थापना का आदेश दिया है। बोर्ड में न्यूरोलॉजिस्ट, न्यूरोसर्जन, सर्जन, एनेस्थेटिस्ट जैसे विशेषज्ञ होंगे, जो यह निर्णय लेंगे कि मरीज की हालत ऐसी है कि उसे उपचार रोकने का अधिकार दिया जा सकता है।

18 वर्ष या उससे अधिक उम्र के व्यक्ति, अपनी इच्छा के अनुसार, ‘लिविंग विल’ के माध्यम से यह अधिकार प्राप्त कर सकते हैं। यह दस्तावेज़ बताता है कि अगर व्यक्ति असाध्य रूप से बीमार हो, तो उसे सम्मान के साथ मरने दिया जाए।

इच्छामृत्यु और सम्मान से मरने का अधिकार में अंतर

‘सम्मान के साथ मरने का अधिकार’ और इच्छामृत्यु दो अलग-अलग चीजें हैं। इच्छामृत्यु में मरीज की जिंदगी को जानबूझकर समाप्त किया जाता है, जबकि सम्मान के साथ मरने का अधिकार एक प्राकृतिक मृत्यु की प्रक्रिया को अनुमति देता है, जहां उपचार रोक दिया जाता है।

कर्नाटक सरकार का यह निर्णय 2023 के सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले के बाद आया है, जिसमें गंभीर रूप से बीमार मरीजों के लिए निष्क्रिय इच्छामृत्यु नियमों को सरल बनाया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार में सम्मान के साथ मरने का अधिकार भी शामिल होता है और इसे सुगम बनाया जाना चाहिए। इसके साथ ही कर्नाटक यह अधिकार लागू करने वाला देश का दूसरा राज्य बन गया है।

जानिए कब ले सकेंगे मरने का निर्णय

कर्नाटक के कानून के हिसाब से 18 वर्ष या उससे अधिक उम्र के लोग लिविंग विल (जीवित इच्छा) के जरिए यह अधिकार हासिल कर सकते हैं। यह विल एक कानूनी दस्तावेज है, जो लोगों को यह अधिकार देती है कि अगर वे असाध्य रूप से बीमार हों या उनकी ठीक होने की उम्मीद न हो तो वह यह अधिकार ले सकते हैं। इसके लिए उन्हें लिखित में देना होगा कि ऐसे हालात में उन्हें सम्मान के साथ मरने दिया जाए।

इस व्यक्ति ने रजिस्टर कराई थी पहली लिविंग विल

जून 2024 में बॉम्बे हाई कोर्ट की गोवा बेंच के जस्टिस एमएस सोनक ने गोवा में लिविंग विल रजिस्टर करने वाले पहले व्यक्ति बनने के साथ-साथ गोवा को अग्रिम चिकित्सा निर्देश (advance medical directives) लागू करने वाला पहला राज्य बना दिया। लिविंग विल, जिसे एडवांस डाइरेक्टिव भी कहा जाता है, एक कानूनी दस्तावेज होता है, जिसमें व्यक्ति अपनी इच्छाएं व्यक्त करता है कि वह किसी गंभीर स्थिति में इलाज की किस प्रकार की प्रक्रियाओं को अपनाना चाहता है या नहीं।

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