रिपोर्ट : टैक्स भी दे, हर खरीद पर जीएसटी भी चुकाये…हर तरफ से पिस रहा मिडिल क्‍लास

अब मिडिल क्लास को राहत देने को तैयार मोदी सरकार

नई दिल्‍ली । देश के मिडिल क्‍लास का दर्द अब केंद्र सरकार के लिए भी सिर दर्द बनता जा रहा है। इस कारण अब मिडिल क्‍लास को राहत देने की तैयारी शुरु हो चुकी है। कयास हैं कि इस बार के बजट में मिडिल क्‍लास को बड़ा तोहफा मिल सकता है। अर्थव्‍यवस्‍था के लिहाज से उद्योगपतियों और कॉरपोरेट्स का आर्थिक विकास में बड़ा योगदान रहता है, लेकिन ताजा रिपोर्ट बताती है कि कॉरपोरेट जगत ने मिडिल क्‍लास को परेशानी में डालना शुरू कर दिया है। करोड़ों का मुनाफा कमाने वाले कॉरपोरेट जगत आम आदमी से कम टैक्‍स देता है। यहीं कारण पिछले दिनों देश के मुख्‍य आर्थिक सलाहकार ने भी कॉरपोरेट जगत के रुख पर चिंता जाहिर की थी।
रिपोर्ट के अनुसार कॉरपोरेट जगत को केंद्र सरकार ने कई तरह की छूट दी जिसका फायदा उन्होंने खूब उठाया लेकिन अब देश के विकास को 3 तरह से पलीता लगा रहे हैं। पहला कॉरपोरेट जगत बंपर मुनाफे के बावजूद अपने कर्मचारियों की सैलरी नहीं बढ़ा रहे। दूसरा, व्‍यक्तिगत टैक्‍सपेयर्स के मुकाबले वे कम टैक्‍स का भुगतान कर रहे हैं और तीसरा, प्रॉफिट होने के बावजूद रोजगार का सृजन नहीं कर रहे, बल्कि कर्मचारियों पर ही काम का दबाव बढ़ाते जा रहे।

हाल में फिक्‍की ने रिपोर्ट में खुलासा किया था कि कॉरपोरेट जगत का मुनाफा 15 साल के शीर्ष स्‍तर पर पहुंच गया है। बावजूद इसके मिडिल क्‍लास से कॉरपोरेट जगत से ज्‍यादा टैक्‍स वसूला जा रहा है। महंगाई और लोन की ब्‍याज दरें बढ़ने के बावजूद उनकी सैलरी में औसतन 1 फीसदी से भी कम का इजाफा हुआ है। इसकारण पिछली 5 तिमाहियों में देश की उपभोक्‍ता खपत गिरती जा रही है। यह इसलिए चिंताजनक स्थिति है, क्‍योंकि भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था उपभोक्‍ता आधारित है। जीडीपी में निजी खपत की हिस्‍सेदारी 60 फीसदी के करीब है। मिडिल क्‍लास और कॉरपोरेट जगत के बीच का अंतर आप इसतरह से आसनी से समझ सकते हैं कि चालू वित्‍तवर्ष 2024-25 में व्‍यक्तिगत करदाताओं ने कंपनियों से ज्‍यादा इनकम टैक्‍स दिया। इतना ही नहीं उन पर जीएसटी की भी मार पड़ी, जबकि कॉरपोरेट को इससे छूट रहती है।

आंकड़े के अनुसार चालू वित्‍तवर्ष में व्‍यक्तिगत इनकम टैक्‍स बजट अनुमान के अनुसार, 11.56 लाख करोड़ रुपये वसूला जाएगा, जबकि कॉरपोरेट से महज 10.42 लाख करोड़ रुपये का टैक्‍स वसूले जाने का अनुमान है। ऊपर से आम आदमी को अपनी जरूरत की वस्‍तुओं पर 28 फीसदी तक जीएसटी भी देना होता है।

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