-बेरोजगारी दर सबसे ज्यादा केरल में, पंजाब, राजस्थान, तमिलनाडु भी पीछे नहीं
नई दिल्ली । भारत में बेरोजगारी एक अहम सामाजिक और आर्थिक मुद्दा रही है। देश में बेरोजगारी को लेकर बहस होती रहती है। सरकारी आंकड़े और अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) के मुताबिक यदि कोई व्यक्ति हफ्ते में कम से कम एक घंटा ऐसा काम करता है, जिससे आय होती है, तो उसे बेरोजगार नहीं माना जाता है। यह परिभाषा कई देशों में बेरोजगारी को मापने का आधार है। भारत में बेरोजगारी की समस्या इससे कहीं ज्यादा जटिल है। सरकारी रिपोर्ट्स के मुताबिक देश में हर 100 में से केवल तीन लोग बेरोजगार हैं। असली चुनौती यह है कि 78 फीसदी कामकाजी लोगों की मासिक आय 14 हजार रुपए से कम है। ऐसे में भले ही ये लोग बेरोजगार नहीं माने जाते हैं, उनकी कमाई इतनी कम होती है कि उन्हें अपना परिवार चलान भी मुश्किल होता है।
भारत का सबसे शिक्षित राज्य केरल, जिसकी साक्षरता दर 96.2 फीसदी है, वहां बेरोजगारी दर देश में सबसे ज्यादा 7.2 फीसदी है। यह स्थिति चौंकाने वाली है, क्योंकि ज्यादा साक्षरता को आमतौर पर रोजगार से जोड़कर देखा जाता है। इसके विपरीत, मध्य प्रदेश में बेरोजगारी दर सबसे कम एक फीसदी है। यह विरोधाभास देश में रोजगार व्यवस्था और अवसरों की असमानता को उजागर करता है।
केरल के बाद बेरोजगारी दर में पंजाब (5.5 फीसदी), राजस्थान (4.2फीसदी), और तमिलनाडु (3.5फीसदी) का स्थान है। दूसरी ओर, गुजरात, झारखंड और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में बेरोजगारी दर क्रमशः 1.1फीसदी, 1.3फीसदी, और 2.5फीसदी है। पढ़ाई और बेरोजगारी के बीच एक चिंताजनक संबंध देखने को मिलता है। पीरियोडिक लेबर फोर्स सर्वे और आईएलओ की रिपोर्ट्स बताती हैं कि उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाले युवाओं में बेरोजगारी का स्तर ज्यादा है। डिप्लोमा या उच्च शिक्षा प्राप्त लोगों में यह दर 12फीसदी से भी ज्यादा है। एक रिपोर्ट के मुताबिक 2023 में भारत के कुल बेरोजगारों में 83फीसदी युवा थे। यह आंकड़ा दिखाता है कि शिक्षित युवाओं के लिए रोजगार की कमी एक गंभीर समस्या बन गई है। आंकड़े धर्म के आधार पर बेरोजगारी की स्थिति को भी उजागर करते हैं।
सिख समुदाय में बेरोजगारी दर सबसे ज्यादा 5.8फीसदी है। ईसाई समुदाय में यह दर 4.7फीसदी है। मुस्लिमों में 3.2फीसदी और हिंदुओं में यह 3.1फीसदी है। कामकाजी आबादी के की बात करें तो, हिंदुओं में यह 45 फीसदी, मुस्लिमों में 37फीसदी, सिखों में 42फीसदी, और ईसाइयों में 45फीसदी है। रिपोर्ट बताती है कि पिछले 20 सालों में शिक्षित बेरोजगारों की हिस्सेदारी दोगुनी हो गई है। सन 2000 में बेरोजगारों में पढ़े-लिखे लोगों का हिस्सा 35.2 फीसदी था, जो 2022 में बढ़कर 65.7 फीसदी हो गया। यह तथ्य दर्शाता है कि शिक्षा के बढ़ते स्तर के बावजूद रोजगार के अवसर नहीं बढ़े।
भारत में बेरोजगारी की समस्या केवल आंकड़ों तक सीमित नहीं है। यह सामाजिक और आर्थिक असमानता का एक बड़ा संकेत है। शिक्षित युवाओं के लिए रोजगार के अवसर बढ़ाने के लिए सरकार को नई नीतियां लाने और वर्तमान रोजगार व्यवस्था को बेहतर बनाने की जरुरत है। कौशल विकास, स्वरोजगार को बढ़ावा, और क्षेत्रीय असमानता को कम करना इसके समाधान की दिशा में महत्वपूर्ण कदम हो सकते हैं।
भारम में आर्थिक विकास के बावजूद बेरोजगारी का उच्च स्तर और निम्न आय यह दर्शाते हैं कि विकास के लाभ सभी तक समान रूप से नहीं पहुंच रहे हैं। ऐसे में रोजगार के अवसर बढ़ाने के साथ-साथ कामकाजी लोगों की आय बढ़ाने की भी जरूरत है। यदि इस समस्या का समाधान समय रहते नहीं किया गया, तो इसका प्रभाव देश के सामाजिक और आर्थिक ढांचे पर देखने को मिलेगा।