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लखनऊ डेस्क: स्कोडा ऑटो इस समय 12,000 करोड़ रुपए की टैक्स डिमांड के मामले का सामना कर रही है। पिछली सुनवाई में बॉम्बे हाईकोर्ट ने कस्टम विभाग के अधिकारियों की विस्तृत जांच और शोध की सराहना की थी, इससे पहले नोटिस जारी करने की प्रक्रिया में उन्होंने जो गहन अनुसंधान किया, उसे अदालत ने सराहा। अब इस मामले में एक नया मोड़ आया है, जिसमें कोर्ट ने कस्टम विभाग से विस्तृत जानकारी और एफिडेविट देने का निर्देश दिया है।
दरअसल, जर्मन कार निर्माता कंपनी स्कोडा ऑटो, जो फॉक्सवैगन इंडिया की हिस्सेदार है, पर कस्टम विभाग ने 1.4 अरब डॉलर (लगभग 12,000 करोड़ रुपए) का टैक्स लगाने का नोटिस जारी किया था। इस नोटिस के खिलाफ कंपनी ने बॉम्बे हाईकोर्ट में अपील की और इसे ‘मनमाना’ करार दिया। कोर्ट ने अब कस्टम विभाग से यह स्पष्टीकरण मांगा है कि क्या यह नोटिस टाइम लिमिटेशन के भीतर आता है या नहीं। कस्टम विभाग को 10 मार्च तक अपना एफिडेविट दाखिल करना है।
कस्टम विभाग का दावा है कि कंपनी ने अपनी कारों का आयात सही तरीके से वर्गीकृत नहीं किया। कंपनी ने इन कारों के पार्ट्स को ऑटो पार्ट्स के रूप में दिखाया, जबकि इन्हें ‘सीकेडी’ (कंप्लीटली नॉक्ड डाउन) के रूप में आयात किया गया था। सीकेडी आयात में कार के पुर्जों को अलग-अलग करके भारत में असेंबल किया जाता है, जबकि ऑटो पार्ट्स के आयात में केवल कुछ खास हिस्से आते हैं। इन दोनों श्रेणियों पर अलग-अलग ड्यूटी दरें लागू होती हैं।
कंपनी का कहना है कि कस्टम विभाग ने एक दशक से ज्यादा समय तक इस मुद्दे पर कोई सवाल नहीं उठाया, और अब अचानक से इतना बड़ा टैक्स डिमांड करना उचित नहीं है। हालांकि, कस्टम विभाग का कहना है कि उसने काफी समय तक जांच करने के बाद यह टैक्स डिमांड बनाई है।
सीकेडी इंपोर्ट पर 30 से 35 प्रतिशत ड्यूटी लगती है, जबकि ऑटो पार्ट्स पर यह ड्यूटी केवल 5 से 15 प्रतिशत होती है।
पिछली सुनवाई में कोर्ट ने कस्टम विभाग के अधिकारियों की गहन जांच को सराहा था। कोर्ट ने कहा था कि टैक्स अधिकारियों ने हर पुर्जे के नंबर की बारीकी से जांच की और उन्हें उनकी विशेष पहचान के आधार पर खंगाला, जिससे यह स्पष्ट हो सका कि क्यों नोटिस जारी किया गया।