अयोध्या: सभी सनातनियों तथा चिन्मय मिशन वैश्विक संस्था के सभी अनुयायियों के लिए एक अद्भुत एवं अत्यंत हर्षपूर्ण पल 3 दिसंबर 2024 को अयोध्या धाम की पावन भूमि में खिला।
चिन्मय दक्षिण अफ्रीका द्वारा आयोजित 9-दिवसीय श्री राम कथा का शुभारंभ 3 दिसंबर को हुआ, जिसके प्रवचनकर्ता हैं पूज्य स्वामी अभेदानन्द (आचार्य, चिन्मय मिशन दक्षिण अफ्रीका)। 3 से 11 दिसम्बर की कालावधि में हो रही यह कथा एक आध्यात्मिक शिविर है जिसमें भाग लेने हेतु विश्वभर से साधक अयोध्या पधारे हैं।
ब्रह्मलीन पूज्य श्री चिन्मयानन्द जी महाराज, चिन्मय मिशन संस्था के जनक होने के साथ-साथ विश्व हिंदू परिषद के संस्थापक अध्यक्षों में से एक रहे हैं। दैवीय पूर्वाभास दर्शाते हुए चिन्मयानन्द जी महाराज ने अपने 9 नवंबर 1990 के एक पत्र के अंतर्गत, अयोध्या की कारसेवा के संदर्भ में एक साधक को लिखा था कि, “मंदिर का निर्माण अवश्य होगा, तथा वे मंदिर के उद्घाटन के दर्शक भी होंगे” – और ठीक 29 वर्षों बाद, 9 नवंबर 2019 को अयोध्या के श्री राम जन्मभूमि मंदिर के समर्थन में सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय सनातन समाज को प्राप्त हुआ था।
वर्तमान में इस ऐतिहासिक राम कथा के कथावाचक, पूज्य स्वामी अभेदानन्दजी, भारत से दक्षिण अफ्रीका में सबसे लंबे काल से सेवारत रहने वाले सन्यासी हैं। बीते 30 वर्षों में उन्होंने दक्षिण अफ्रीका समेत विश्व के कई चिन्मय केंद्रों में साधकों की आध्यात्मिक ज्योति को प्रज्वलित रखा है तथा अपनी विलक्षण एवं मनोहर सत्संग शैली से अंग्रेजी और हिंदी दोनों के ही श्रोताओं को दिव्य सनातन शास्त्रों से अनुग्रहित किया है।
3 दिसंबर की सुबह को श्री राम लाला भगवान को रथ पर विराजमान कर स्वामीजी रथ यात्रा द्वारा कथा स्थली में लेकर आए। विधिवत रूप से सभी रीतियों का पालन करते हुए वैदिक पुजारियों ने यजमान एवं स्वामीजी का स्वागत तथा पूजन किया, जिसके बाद स्वामीजी अमृतवाणी द्वारा कथा का शुभारंभ हुआ।
प्रातः सत्र में स्वामी अभेदानन्दजी ने रामायण के गिद्ध आध्यात्मिक अर्थ का अवलोकन किया। स्वामीजी ने बताया कि रामायण को मात्र पढ़ना एक बात है, और उसमें प्रवेश करना तथा स्वयं को राम का अयन अर्थ घर/आलय बनाना, यह वास्तविक दर्शन है। अयोध्या के आधिभौतिक, आधिदैविक तथा आध्यात्मिक आयाम बताते हुए स्वामीजी ने सभी को अयोध्या धाम की महिमा से कृतार्थ किया। श्री रामचरितमानस की व्याख्या आरंभ करते हुए स्वामीजी ने मंगलाचरण के पीछे का आध्यात्मिक दर्शन श्रोताओं के समक्ष रखा। स्वामीजी ने कहा कि, “जीवन में माँगल्य तभी होगा जब हम समष्टि से अर्थात पूरी सृष्टि और ईश्वर की योजना से जुड़े होंगे। हमें सूखी या दुःखी होने का कोई अधिकार नहीं है, यदि हमारा सुख और दुःख किसी और का सुख-दुःख न हो”।
सायं सत्र में स्वामीजी ने श्री राम और माता सीता की वंदना की व्याख्या करते हुए बताया कि साधकों को ईश्वर के तीनों ही रूपों की आवश्यकता है: ईश्वर का सगुण साकार (अर्थात अवतार इत्यादि) रूप हमारा मन आकर्षित करता है, उनके सगुण निराकार (अर्थात कर्मफल देने वाले ईश्वर) से हमारा अहंकार, काम, क्रोध इत्यादि नष्ट होता है, और उनके निर्गुण निराकार (अर्थात परब्रह्म या शुद्ध चैतन्य) को जानने से हमें भवसागर से मुक्ति प्राप्त होती है।
आगे बढ़ते हुए स्वामीजी ने गोस्वामी तुलसीसजी की अद्वितीय विनम्रता का बोध श्रोताओं को कराया और यह बताया कि रामचरितमानस एकमात्र ऐसा ग्रंथ है जिसमें देवी देवी-देवता, गुरु-संत इत्यादि से लेकर राक्षसों तथा भूत-प्रेत की भी वंदना की गई है। तुलसीदासजी तथा उनकी रची रामायण की अपार ख्याति का कारण यही विनम्रता और समग्र सृष्टि की वंदना है, और उनसे यही विनय और दीनता हमें भी सीखनी चाहिए, यह स्वामीजी ने बताया।
गुरु के माहात्म्य का अनावरण करते हुए स्वामीजी ने एक अनोखी बात कही। “ईश्वर हमारे आध्यात्मिक जीवन की आधारशिला नहीं है। क्योंकि यदि ऐसा होता तो प्रत्येक व्यक्ति स्वाभाविक रूप से आध्यात्मिक होता! वास्तव में, आध्यात्मिक जीवन की नींव गुरु महाराज ही हैं, और उनकी प्राप्ति अत्यंत पुण्य, उपासना और श्रेष्ठ चरित्र से ही होती है”।