
- एक-दूसरे की भूख-प्यास का अहसास कराता है रोजा
- माह-ए-रमजान की मुबारकबाद देते हुए कहा ईद-उल-फित्र के रूप में मिलेगा ईनाम
गुरसहायगंज (कन्नौज)। पवित्र माह-ए-रमजान चल रहा है और हर सच्चा मुसलमान अल्लाह तआला की राह पर है। यह माह मौका देता हैं हमें अपने गुनाहों से तौबा करने का। ऐसा कोई शख्स नहीं है, जिससे जाने-अनजाने में गुनाह न होता हो। इस मौके को जाया न करें और खुदा से जी भरके अपने गुनाहों के लिए तौबा करें।
यह उद्गार युवा समाजसेवी आसिफ जमाल खान उर्फ पप्पी भैया ने व्यक्त करते हुए कहा कि रमजानुल मुबारक इस्लामी कलेंडर का नौवां महीना है। इस माहे मुबारक में आलमे इस्लाम के मुसलमान एक माह के रोजे रखते हैं, जो अल्लाह तआला ने उन पर फर्ज किए। रमजान के बारे में बताया गया है कि रमजान की माने है जला देने वाला। अर्थात रमजानुल मुबारक गुनाहों को जला देने वाला महीना कहलाता है। इस महीने की अजमत कुरान मजीद और हदीसे नबवी में बयान की गई है। ईमान वालों को मुखातिब करके अल्लाह तआला का इरशाद है कि तुम पर रोजे फर्ज किए गए हैं। जैसा कि पहले की उम्मतों पर फर्ज किए गए थे। यानी मुसलमानों से पहले जो उम्मतें गुजरी, उन सब पर रोजे फर्ज किए गए थे। चाहें वह ईसाई हों या यहूदी वगैरह।
रोजा एक ऐसी इबादत है, जिससे दूसरी इबादत जुड़ी है। यानी एक रोजदार जब रोजा रखता है, तो इसको पाक रहना है। बगैर पाकी के रोजा खुदा के यहां काबिले कुबूल नहीं है। रोजा रखने के बाद रोजदार नमाज की कसरत से पाबंदी करता है। जबकि अन्य महीनों में अपनी बेअमली के सबब, वह इतनी पाबंदी नहीं कर पाता है। लेकिन रोजे की हालत में नमाज जैसी अजीम इबादत की पाबंदी करने लगता है। उन्होंने बताया कि एक रोजदार इस बात की भी कोशिश करता है कि शाम को उस चीज से रोजा अफ्तार करे जो उसकी हलाल की कमाई से खरीदी गई हो। यानी रोजा इंसान को हलाल की कमाई की तरफ आमादा करता है और हराम की कमाई से रोक देता है। इंसान के इस अमल से पूरा मुबाशरा साफ सुथरा और करप्शन की गंदगी से पाक हो जाता है।
युवा समाजसेवी आसिफ जमाल खान उर्फ पप्पी ने कहा कि एक रोजदार रोजे की हालत में खाना-पीना तर्क कर देता है, जिससे इंसान को समझ आ जाती है कि भूख, प्यास क्या चीज होती है। उसे ये एहसास हो जाता है कि भूखा, प्यासा इंसान किस तरह की परेशानियों से दो चार होता है। एक रोजदार के अंदर भूखे, प्यासे इंसान की तकलीफ समझने का शऊर पैदा हो जाता है। क्योंकि रोजे की हालत में सिर्फ खाना पीना ही नहीं छोड़ता बल्कि उसको हर उस बात से रुक जाना पड़ता है, जिससे रुकने को खुदा और रसूल ने कहा है। रमजान के पवित्र महीने में हर अमल का सबाब सत्तर गुना कर दिया जाता है। इसीलिए बुरे से बुरा व्यक्ति भी इस महीने की अजमत करता है और बुरे कामों को महीने भर के लिए छोड़ देता है। सर पर टोपी रखकर मस्जिद का रुख करता है।
आसिफ जमाल खान उर्फ पप्पी ने कहा कि फजिर, जोहर, असर, मगरिब व इशां में नमाजी कसरत से अपने रब की खुश्नूदी के लिए सिजदा कर रहे हैं। जो शख्स इस माहे मुबारक में औरों के साथ नेक अमल करे, अल्लाह तआला उसे बेहिसाब सबाब अता करता है। रमजान के रोजे ईमान के साथ रखने वाले को रमजान माह से पहले के तमाम गुनाह माफ कर दिए जाते हैं। रमजान में कुरान की तिलावत करना जरूरी है। अल्लाह तआला का एहसान है कि उसने मुसलमानों को कुरान जैसी अजीम किताब अता की है । जिसकी रोशनी में वे अपने दिलों को मुनव्वर कर सकते हैं और अपने अखलाक को चमका सकते हैं।
युवा समाजसेवी आसिफ जमाल खान उर्फ पप्पी भैया ने इत्रनगरी के सभी जनपदवासियों को माह-ए-रमजान की मुबारकबाद देते हुए कहा पूरे माह अल्लाह तआला की दिल से इबादत करें और जिसकी जितनी मदद कर सकते हैं करें। आपके इस सबाब का ईनाम माह के अन्त में ईद-उल-फित्र के रूप में मिलेगा।