Rajasthan : सडक़ हादसों में मौतों पर हाईकोर्ट ने जताई गहरी चिंता, मांगा जवाब

जोधपुर : राजस्थान हाईकोर्ट ने राजस्थान में सडक़ों पर बढ़ती दुर्घटनाओं और असामयिक मौतों को लेकर गहरी चिंता जताते हुए कहा कि मृत्यु अवश्यंभावी है, लेकिन असामयिक मृत्यु केवल परिवारों को नहीं, राष्ट्र की सामूहिक शक्ति को भी कमजोर करती है। न्यायाधीश डॉ। पुष्पेन्द्र सिंह भाटी और न्यायाधीश अनुरूप सिंघी की खंडपीठ ने सडक़ हादसों को लेकर प्रमुखता से प्रकाशित समाचारों पर स्वत: प्रसंज्ञान लेकर जनहित याचिका दायर की है।

हाईकोर्ट ने कहा कि सडक़ दुर्घटनाओं में लगातार हो रही जान-माल की हानि जीवन के मौलिक अधिकार का हनन है और इसे केवल नियामक लापरवाही कहकर नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। हाईकोर्ट ने समाचार पत्रों में प्रकाशित खबरों का हवाला देते हुए कहा कि पिछले दो हफ्तों में हुई सडक़ दुर्घटनाओं की श्रृंखला में लगभग 100 लोगों की जान चली गई, जो अत्यंत चिंताजनक है। हाईकोर्ट ने कहा कि यह घटना तोध्यान आकर्षित करती है, लेकिन ताजा हालात यह दर्शाते हैं कि राज्य में सडक़ सुरक्षा व्यवस्था में व्यापक प्रणालीगत विफलता है। राजस्थान हाईकोर्ट ने टिप्पणी की कि नियामक संस्थाएं और नागरिक समाज दोनों ही सडक़ सुरक्षा के प्रति असंवेदनशील होते जा रहे हैं, जिससे सामाजिक पीड़ा बढ़ रही है।

हाईकोर्ट ने नोटिस जारी करते हुए केन्द्र सरकार व राज्य सरकार से जवाब मांगा है कि सडक़ और जन सुरक्षा को लेकर कौन-कौन से ठोस कदम उठाए जा रहे हैं। हाईकोर्ट ने अतिरिक्त महाधिवक्ता राजेश पंवार सहित सभी विभागों के अतिरिक्त महाधिवक्ताओं एवं अधिवक्ताओं जिसमें चिकित्सा एवं स्वास्थ्य, लोक निर्माण, परिवहन, गृह, स्थानीय निकाय और राजमार्ग प्राधिकरण को निर्देशित किया है कि वे अपने-अपने विभागों की ओर से अगली सुनवाई पर विस्तृत जवाब पेश करें।

हाईकोर्ट ने पांच अधिवक्ताओं जिसमें मानवेंद्र सिंह भाटी, शीतल कुंभट, अदिति मोद, हेली पाठक और तान्या मेहता को न्याय मित्र नियुक्त करते हुए उन्हें सडक़ और जन सुरक्षा से संबंधित नियामक ढांचे को सुदृढ़ करने के ठोस सुझाव देने को कहा गया। न्याय मित्र से कहा गया है कि वे 13 नवंबर को होने वाली अगली सुनवाई तक विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करें। हाईकोर्ट ने अपने आदेश में राज्य और केंद्र सरकार से भी अपेक्षा की है कि वे सडक़ सुरक्षा, दुर्घटना नियंत्रण, एम्बुलेंस सुविधा, यातायात प्रबंधन और नागरिकों में जागरूकता लाने के उपायों पर ठोस रुख स्पष्ट करें। खंडपीठ ने कहा कि हाईकोर्ट मूकदर्शक नहीं रह सकता, जब सडक़ों पर नियामक ढांचे की विफलता के कारण लगातार जीवन का नुकसान हो रहा है। हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत राज्य का दायित्व है कि वह नागरिकों के जीवन के अधिकार की सक्रिय रूप से रक्षा करे। हाईकोर्ट ने दुर्घटनाओं में मारे गए लगभग 100 लोगों के परिवारों के प्रति संवेदना व्यक्त करते हुए कहा कि यह केवल प्रशासनिक नहीं, बल्कि नैतिक संकट भी है। मामले में अगली सुनवाई 13 नवंबर 2025 को होगी।

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