
Railway Bharti Scam : पूर्वोत्तर रेलवे में सहायक लोको पायलटों की भर्ती में फर्जीवाड़ा सामने आया है। 2018-19 में शुरू हुई रेलवे भर्ती बोर्ड की प्रक्रिया में पैसे लेकर नौकरी देने का आरोप है। जांच में पता चला है कि अधिकारियों और कर्मचारियों की मिलीभगत से योग्य उम्मीदवारों को पैनल में देरी की गई और पैसे देने वालों को नौकरी मिल गई। सीबीआई ने मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी है।
रेलवे भर्ती बोर्ड गोरखपुर कार्यालय में भ्रष्टाचार की जड़े बहुत ही गहरी हैं। पूर्वोत्तर रेलवे में वर्ष 2018-19 में सहायक लोको पायलटों (एएलपी) की भर्ती के साथ ही नियुक्ति में फर्जीवाड़ा आरंभ हो गया। रेलवे भर्ती बोर्ड ने शुरुआत में ही रिक्त पद से दोगुणा भर्ती के लिए विज्ञापन निकाल दिया। 1681 अभ्यर्थियों की परीक्षा के बाद भर्ती आरंभ हुई तो फर्जीवाड़ा का खुलासा हुआ।
तत्कालीन चेयरमैन ने लिखित परीक्षा के बाद कर्मचारियों के सहयोग से पैनल बनाने, जारी करने, मेडिकल व अभिलेखों की जांच में हेरा-फेरी शुरू कर दी। न अधिकारियों को डर और न कर्मचारियों को भय। अधिकारी और कर्मचारी अपने मन से पैनल बनाते रहे और धन उगाही कर मनमाने ढंग से नियुक्ति करते रहे। कार्यालय के लोग गिरोह बनाकर नियुक्ति करने लगे।
रेलवे भर्ती बोर्ड कार्यालय में भ्रष्टाचार का मामला प्रकाश मे आया तो रेलवे बोर्ड ने नवंबर 2022 में तत्कालीन चेयरमैन पीके राय को हटा दिया। उनके हटने के बाद भी फर्जीवाड़ा पर अंकुश नहीं लगा। नए चेयरमैन नुरुद्दीन अंसारी की नियुक्ति के बाद भी कार्यालय के अधिकारियों और कर्मचारियों की मनमानी चलती रही। वर्ष 2024 में भी नियुक्ति में धांधली होती रही।
हद तो तब हो गई जब कार्यालय अधीक्षक चंद्र शेखर आर्य ने अपने बेटे राहुल प्रताप और निजी सचिव (द्वितीय) राम सजीवन ने अपने बेटे सौरभ कुमार को बिना फार्म भरे, परीक्षा दिए और मेडिकल टेस्ट के ही माडर्न कोच फैक्ट्री रायबरेली में फिटर बना दिया।
फर्जीवाड़ा के खेल में रेलकर्मियों के अलावा कर्मचारी नेताओं और कुछ बाहरी दलालों की भूमिका भी संदिग्ध रही है, जो अधिकारियों के दफ्तरों और कर्मचारियों के टेबल पर बैठकी करते रहे और पैसे का लेन-देन कराते रहे। धांधली का आलम यह है कि अभी भी नियुक्ति प्रक्रिया पूरी नहीं हो पाई है।
पूर्वोत्तर रेलवे के उप मुख्य सतर्कता अधिकारी (लेखा) जेए वैन्ड्रीन ने जो सीबीआइ को जांच रिपोर्ट सौंपी है, वह चौंकाने वाली है। सीबीआइ के अनुसार जांच रिपोर्ट में बिना किसी वैध कारण के योग्य उम्मीदवारों के पैनल में देरी से जुड़ी कार्यप्रणाली का खुलासा हुआ है।
भर्ती बोर्ड कार्यालय से संपर्क करने वाले उम्मीदवारों को स्टाफ सदस्यों विनय कुमार श्रीवास्तव और वरुण राज मिश्रा के माध्यम से तत्कालीन अध्यक्ष प्रवीण कुमार राय (पीके राय) से मिलने का निर्देश दिया गया। तत्कालीन अध्यक्ष ने व्यक्तिगत रूप से उनके आवेदन और मोबाइल नंबर एकत्र किए।
सफलतापूर्वक पैनल में शामिल कर लिया गया, जबकि जिन्होंने भुगतान करने से इन्कार कर दिया, उन्हें पैनल में देरी का सामना करना पड़ा। कई उम्मीदवारों के आवेदन बिना वैध कारणों के विलंबित कर दिए गए। मांगी गई राशि का भुगतान करने वाले कई उम्मीदवार सफलतापूर्वक सेवा में शामिल हो गए।
हालांकि, एक मामले में एक उम्मीदवार सत्य जीत सिंह ने तत्कालीन अध्यक्ष से मिलने के बाद, विनय कुमार श्रीवास्तव से मुलाकात की और उन्होंने सत्य जीत सिंह को बताया कि अभिषेक उर्फ सूरज कुमार श्रीवास्तव को उनके पैनल में शामिल होने के संबंध में उनसे मिलने की सलाह दी गई थी।
सत्य जीत सिंह ने अभिषेक उर्फ सूरज कुमार श्रीवास्तव से मुलाकात की और उन्हें 85,000 रुपये का अनुचित लाभ दिया। विजिलेंस की जांच रिपोर्ट के आधार पर सीबीआइ ने तत्कालीन चेयरमैन पीके राय और उनके सहयोगियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर गहन जांच शुरू कर दी है।
विजिलेंस टीम भले ही लखनऊ चली गई है, लेकिन वह पूर्व चेयरमैन और अन्य रेलकर्मियों से संबंधित फाइलें, मोबाइल फोन के काल डिटेल, बैंक बैलेंस और अन्य संपत्तियों की गहन जांच में जुट गई है।
जानकारों का कहना है कि सीबीआइ टीम ने आरोपितों के अलावा उनके स्वजन से भी पूछताछ की है। फर्जीवाड़ा में अभी कई अधिकारी और कर्मचारी भी नपेंगे। सीबीआइ जल्द ही आगे की कार्रवाई शुरू करेगी।
फिलहाल, पूर्व चेयरमैन पीके राय रेलवे की सेवा से मुक्त कर दिए गए हैं। नुरुद्दीन अंसारी निलंबित चल रहे हैं। पूर्व मुख्य कार्यालय अधीक्षक चंद्र शेखर आर्या और राम सजीवन के खिलाफ कैंट थाने में गैंग्स्टर के आरोपित हैं।
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