पीएम-सीएम हटाने वाले बिल पर राहुल गांधी का हमला– राजा अपनी मर्जी से गद्दी छीन लेगा

नई दिल्ली: संसद में गृहमंत्री अमित शाह द्वारा पेश किए गए उस महत्वपूर्ण बिल पर सियासी घमासान तेज हो गया है, जिसमें यह प्रावधान है कि अगर प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या कोई मंत्री 30 दिन तक जेल में रहता है तो उसे स्वतः पद से हटाना होगा। बिल पर पहली बार कांग्रेस सांसद और विपक्ष के नेता राहुल गांधी की प्रतिक्रिया सामने आई है।

राहुल गांधी ने इस विधेयक को लोकतंत्र पर हमला बताते हुए कहा कि यह देश को मध्ययुगीन काल की ओर धकेलने जैसा है। उन्होंने तंज कसते हुए कहा, हम ऐसे दौर में जा रहे हैं जब राजा अपनी मर्जी से किसी को भी गद्दी से हटा देता था। चुने गए प्रतिनिधि का कोई मूल्य नहीं रह जाएगा। अगर उन्हें आपका चेहरा पसंद नहीं आया तो वे ईडी को कहेंगे कि केस दर्ज करो और 30 दिन के भीतर लोकतांत्रिक तरीके से चुने गए नेता को पद से हटा देंगे।

पराष्ट्रपति को लेकर साधा निशाना

राहुल गांधी ने अपनी बात रखते हुए पूर्व उपराष्ट्रपति के अचानक गायब हो जाने पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि यह भी नहीं भूलना चाहिए कि हम नया उपराष्ट्रपति क्यों चुन रहे हैं। मैं कल ही एक परिचित से बात कर रहा था और पूछा– पता है पुराना उपराष्ट्रपति कहां गया? वह तो जैसे गायब ही हो गए। जिस दिन उन्होंने इस्तीफा दिया, उसी दिन वेणुगोपाल जी ने फोन कर बताया कि उपराष्ट्रपति ने पद छोड़ दिया है। इसके पीछे एक लंबी कहानी है। आपमें से कुछ लोग जानते होंगे, कुछ नहीं, लेकिन यह जरूर है कि कोई वजह रही होगी कि वे इस्तीफा देकर चुप्पी साध गए। जो शख्स राज्यसभा में गरजता था, वह अचानक पूरी तरह खामोश क्यों हो गया?

राहुल ने कहा कि यही मौजूदा दौर की हकीकत है। लोकतांत्रिक संस्थाओं की ताकत धीरे-धीरे कम की जा रही है और चुने गए प्रतिनिधियों को चुप कराने का प्रयास हो रहा है।

कांग्रेस और विपक्ष क्यों कर रहा विरोध?

इस बिल पर कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने कड़ा विरोध जताया है। विपक्ष का आरोप है कि सरकार कस्टडी और कंविक्शन दोषसिद्धि के फर्क को खत्म कर असहमति की आवाज दबाना चाहती है।

कांग्रेस सांसद अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा, अगर सरकार किसी विपक्षी नेता या मुख्यमंत्री को हटाना चाहती है तो एजेंसियों का दुरुपयोग कर सकती है। बस 31 दिन तक जेल में रखिए और पद अपने आप खाली हो जाएगा। यही तो लोकतंत्र खत्म करने का शॉर्टकट है।

आगे की राह

विपक्षी दलों का कहना है कि यह बिल संवैधानिक मर्यादाओं के खिलाफ है और लोकतंत्र की जड़ों को कमजोर करेगा। वहीं, भाजपा का तर्क है कि ऐसे प्रावधान से भ्रष्टाचार और अपराध के मामलों में जवाबदेही सुनिश्चित होगी। अब देखना यह है कि संसद में इस बिल पर होने वाली बहस किस दिशा में जाती है और क्या यह विधेयक कानून का रूप ले पाता है या नहीं।

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