पुष्कर सिंह धामी को लखनऊ यूनिवर्सिटी की फिर आई याद, आखिर क्या है कनेक्शन…

लखनऊ। राजधानी के जाने-माने लखनऊ यूनिवर्सिटी के नाम एक और उपलब्धि हासिल हो गई। बता दें कि 47 साल के पुष्कर सिंह धामी ही उत्तराखंड के 12वें सीएम होंगे, जो एक नया कीर्तिमान भी स्थापित हुआ। धामी का लखनऊ यूनिवर्सिटी (LU) से गहरा नाता है। वह LU के छात्र रहे और दशकों तक उन्होंने अखिल भारतीय विद्यार्थियों परिषद (ABVP) के नारे को कैंपस में बुलंद किया। यहां से निकलकर उन्होंने उत्तराखंड की राजनीति में मेहनत की और अपनी कार्य कुशलता के बलबूते पर मुख्यमंत्री तक का सफर तय किया।

दोबारा नवाजे गये मुख्यमंत्री पद से धामी

पहली बार मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने पार्टी को दोबारा बहुमत दिलाकर सत्ता में वापसी कराई। हालांकि, इस दौरान वह खुद चुनाव नहीं जीत सके। मगर, भाजपा ने उनकी निष्ठा और अटूट विश्वास के कारण ही उन्हें दोबारा मुख्यमंत्री पद से नवाजा। यही कारण रहा कि जब विधायकों की बैठक में उन्हें सर्वसम्मति से चुना गया, तो खुशी और गर्व के अहसास का झोंका LU परिसर तक भी पहुंचा।

सीएम धामी ने LU से पीजी डिग्री किया

सीएम धामी ने LU से पीजी डिग्री मानव संसाधन प्रबंधन और औद्योगिक संबंध में पूरी की। यहीं से उन्होंने यूजी और LLB करने के साथ डिप्लोमा इन पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन का कोर्स भी किया। छात्र जीवन में भी उनकी कुछ ऐसी पहचान रही कि अपरिचित भी कुछ ही क्षणों में उनके मुरीद हो जाते थे। RSS के सामाजिक सरोकारों से भी उनका जुड़ाव रहा। उस दौर के छात्र कहते हैं कि उनकी सादगी का हर कोई कायल हो जाता था। इस दौरान उन्होंने विश्वविद्यालय स्तर से लेकर अवध के प्रांतीय स्तर तक का दायित्व संभाला और संगठन को बढ़ाने में बेजोड़ योगदान दिया।

‘मेस के बाद कमरे में लगाते थे दाल-चावल’ का नंबर

पढ़ाई के साथ-साथ वह लविवि की छात्र राजनीति में काफी सक्रिय रहे। छात्रों की छोटी-छोटी समस्याओं को उठाने वाले धामी दोस्तों के काफी प्रिय रहे। यही वजह है कि लविवि के बाद उत्तरखंड में उनकी सक्रियता को देखते हुए 10 साल पहले पूर्व मंत्री (वर्तमान में सांसद) लल्लू सिंह ने भी कहा था कि धामी एक दिन उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बनेंगे। विश्वविद्यालय के पूर्व छात्रों ने पुष्कर सिंह धामी के साथ बितायी अपनी यादें साझा कीं।

धामी को बेहद था ये पसंद

लविवि के पूर्व छात्र रामकुमार सिंह बताते हैं कि पुष्कर सिंह धामी 1994 में बीए में प्रवेश लेने के बाद से एबीवीपी में काफी सक्रिय रहे। वह नरेंद्र देव छात्रावास में रहते थे और हम स्वर्ण जयंती छात्रावास में। कभी मेस, तो कभी कमरे में ही दाल चावल बना लेते थे। अशोक वाटिका के पास एक कैंटीन होती थी, वहां का छोला चावल उन्हें बहुत पसंद था। दोस्तों संग अक्सर पहुंच जाते थे।

धामी एक दिन उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बनेंगे

छात्रों की पढ़ाई, फीस से लेकर हर समस्या को उन्होंने प्रमुखता से उठाया। उनकी सक्रियता की वजह से उत्तराखंड वहां के पूर्व सिंचाई मंत्री भगत सिंह कोश्यारी ने उन्हें अपना सलाहकार नियुक्त किया था। बाद में जब भगत सिंह मुख्यमंत्री बने, तो धामी जी को ओएसडी बना दिया था। वह बताते हैं कि उनकी सक्रियता देख पूर्व मंत्री लल्लू सिंह ने कहा था कि धामी एक दिन उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बनेंगे।

धामी स्वाभाव से सबके प्रिय रहे

लविवि के पूर्व छात्र संघ अध्यक्ष और महामंत्री रहे दया शंकर सिंह बताते हैं कि पुष्कर सिंह धामी अपने स्वाभाव से सबके प्रिय रहे। एनडी हॉस्टल के कमरा नंबर 119 में रहते थे। अक्सर मेस में खाना खत्म हो जाने पर हम सब खुद ही दाल-चावल और चोखा बना लेते थे। इसको लेकर रोज झगड़ा भी होता था। विवेकानंद हॉस्पिटल के पास पप्पू का ढाबा भी बहुत मशहूर था।

कई बार पैसा न होने पर वह खाना खिला देते थे। शाम को हॉस्टल में बैठकर राजनीति पर चर्चा जरूर होती थी। उन्होंने कभी चुनाव नहीं लड़ा, लेकिन हम सबको चुनाव लड़ाने में पूरी ताकत लगा देते थे। विश्वविद्यालय में ही संघ की शाखा लगाते थे।

लल्ला की चाय के बिना रह नहीं पाते थे धामी

विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र अनुभव सिंह ने पुष्कर सिंह धामी के साथ दो साल बिताए। वह बताते हैं कि धामी ने 1994 से 1997 तक स्नातक, फिर एमबीए एचआर की पढ़ाई पूरी की। उसके बाद 1997 में एलएलबी में प्रवेश लिया। उसी समय हम साथ में थे। सबसे ज्यादा समस्या खाने की थी। सोचते थे कहीं मिल जाए। बीरबल साहनी हॉस्टल में रहने वाले चंद्रमौली हम लोगों के खाने का ख्याल रखते थे। चाय पीने के लिए आइटी चौराहे पर लल्ला के यहां ही जाते थे। अक्सर होता था कि चाय और स्कूटर के पेट्रोल के लिए पैसे नहीं होते थे, तो आपस में जुगाड़ करके काम चलता था।

पढ़ाई संग जुड़ा था राजनीति

पूर्व छात्र संजय कुमार दुबे के मुताबिक पुष्कर पढ़ाई और छात्र राजनीति साथ-साथ करते थे। एबीवीपी को बढ़ाने और छात्र हित के लिए लगे रहते थे। पूर्व छात्र अनिल सिंह वीरू बताते हैं कि पुष्कर सिंह धामी ने जब 1994 में बीए प्रथम वर्ष में प्रवेश लिया, तब नागेंद्र मोहन एबीवीपी का प्रभार देखते थे। उस समय सपा और एबीवीपी ही छात्र संघ की सक्रिय राजनीति में थी।

कुछ ऐसा रहा राजनीतिक सफर

धामी ने 2001-2002 तक सीएम के OSD का जिम्मा भी संभाला। उत्तराखंड के गठन के बाद धामी लखनऊ छोड़कर खटीमा चले गए। उसके बाद भारतीय जनता युवा मोर्चा, उत्तराखंड के लगातार दो बार 2002 से 2008 तक प्रदेश अध्यक्ष बने। इसके बाद 2010-2012 तक दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री रहे। बाद में भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष भी रहे। साल 2012 से 2022 के चुनाव तक वह खटीमा से विधायक रहे।

लखनऊ यूनिवर्सिटी से रहा ये नाता

लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रवक्ता डॉ. दुर्गेश कहते हैं कि पुष्कर सिंह धामी का एक बार फिर से उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के लिए चुना जाना लखनऊ यूनिवर्सिटी के लिए गौरव का क्षण है। यूनिवर्सिटी से पढ़कर निकली एक से बढ़कर एक प्रतिभा ने देश-दुनिया में नाम कमाया है। उन्हीं में से एक उत्तराखंड के मुख्यमंत्री भी हैं। दोबारा से इस पद को पाकर उन्होंने सही मायनों में अपनी काबिलियत और जन लोकप्रियता का लोहा मनवाया है।

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