
काले धुएँ की चादर, सड़कों पर दुर्घटनाएँ
जनता की साँस पर संकट, फेफड़ों में बीमारियाँ
हरगांव-सीतापुर। हरगाँव क्षेत्र इस समय प्रदूषण विभाग की लापरवाही का जीता-जागता शिकार बन गया है, जहाँ मानकविहीन गुड़बेल धड़ल्ले से संचालित हो रहे हैं और आमजन का जीवन दूभर कर दिया है। लखीमपुर-सीतापुर मार्ग पर स्थित झरेखापुर में लगभग 100 से अधिक गुड़बेल, वहीं हरगाँव-महोली और हरगाँव-पिपराझला मार्ग पर भी सैकड़ों की संख्या में ये इकाइयाँ दिन-रात काला धुआँ उगल रही हैं।
इन जहरीले धुएँ ने न केवल आसपास के गाँवों को अपनी चपेट में लिया है, बल्कि राहगीरों और स्थानीय लोगों के स्वास्थ्य पर भी गंभीर असर डालना शुरू कर दिया है। आँखों में जलन, खांसी, सांस की दिक्कत और फेफड़ों से जुड़ी बीमारियाँ तेजी से बढ़ रही हैं। हालात इतने खराब हैं कि दिन में भी सड़कों पर काली धुंध छाई रहती है, जिससे आए दिन दुर्घटनाएं हो रही हैं। बुधवार सुबह कोहरे के बाद गुड़बेलों की मानकविहीन चिमनियों से निकले धुएँ ने स्थिति को और भी भयावह बना दिया। सीएचसी के चिकित्सक डॉ. रवी भार्गव ने भी पुष्टि की है कि यह प्रदूषण फेफड़ों और एलर्जी से संबंधित गंभीर बीमारियों को जन्म दे रहा है।
अवैध संचालन पर मौन स्वीकृति, नियम-कानून ताक पर
सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि प्रदूषण विभाग इन जहर उगलते गुड़बेलों पर ‘मेहरबान’ नजर आ रहा है और किसी भी ठोस कार्रवाई से बचता दिख रहा है। नियमतः गुड़बेल संचालित करने से पहले प्रदूषण विभाग से अनुमति लेना जरूरी होता है, जिसका पालन न तो गुड़बेल संचालक कर रहे हैं और न ही विभाग कोई आँख खोल रहा है। प्रदूषण विभाग की यह मौन स्वीकृति गंभीर सवाल खड़े करती है, जबकि जल (प्रदूषण एवं निवारण अधिनियम) 1974 और वायु प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण अधिनियम 1981 में गुड़बेल के संचालन के लिए स्पष्ट नियम उल्लिखित हैं। स्वच्छ हवा को प्रदूषित करने के साथ-साथ, ये गुड़बेल भूजल का अंधाधुंध दोहन कर रहे हैं और प्रदूषित पानी को बिना उपचार सीधे आसपास के गड्ढों में भरकर पीने के पानी के स्रोतों को भी दूषित कर रहे हैं। विभाग की यह ढिलाई साफ दर्शाती है कि राजस्व और नियमों का उल्लंघन कर रहे इन संचालकों पर कोई शिकंजा कसना नहीं चाहता।
इस संबंध में जब क्षेत्रीय प्रदूषण अधिकारी उमेश शुक्ला का पक्ष जानने के लिए उन्हें फोन किया गया तो काल रिसीव नहीं हुई जिससे उनका पक्ष नहीं जाना जा सका।










