
लखनऊ : उत्तर प्रदेश विधानसभा के मानसून सत्र के पहले विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति, ने प्रदेश के समस्त सांसदों और विधायकों को पत्र भेजकर पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम एवं दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण का निर्णय निरस्त कराने की मांग की है। संघर्ष समिति ने आरोप लगाया है कि निजीकरण की सारी प्रक्रिया अपारदर्शी है और संदेह के घेरे में है। निजीकरण के लिए तैयार किये दस्तावेज को सार्वजनिक किया जाये।
विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के संयोजक शैलेन्द्र दुबे ने बताया कि उत्तर प्रदेश द्वारा उप्र के सांसदों और विधायकों को प्रेषित पत्र में आंकड़े देकर बताया गया है कि घाटे के नाम पर पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम को बेचा जा रहा है किन्तु वास्तव में यह दोनों विद्युत वितरण निगम घाटे में नहीं हैं। पावर कार्पोरेशन प्रबंधन सब्सिडी की धनराशि और सरकारी विभागों का बिजली राजस्व का बकाया घाटे के मद में दिखा रहा है।
सब्सिडी और सरकारी विभागों का बिजली राजस्व का बकाया जोड़ने के बाद दोनों निगम मुनाफे में हैं। वर्ष 2024-25 में पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम 2253 करोड़ रुपए के मुनाफे में है और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम 3011 करोड़ रुपए के मुनाफे में है। इन दोनों निगमों की 42 जनपदों की अरबों खरबों रुपए की जमीन मात्र एक रुपए की लीज पर निजी घरानों को सौंपी जायेगी। संघर्ष समिति ने निजीकरण के पीछे मेगा लूट का आरोप लगाते हुए मांग की है कि निजीकरण का पूरा दस्तावेज सार्वजनिक किया जाय।
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