
- कवि कौशल किशोर प्रेमचंद सम्मान से सम्मानित….बोले.. जरूरत है प्रेमचंद के सामाजिक-राजनीतिक पाठ की
लखनऊ। प्रगतिशील लेखक संघ उन्नाव और डॉ रामविलास शर्मा शोध संस्थान की ओर से आयोजित प्रेमचंद जयंती समारोह में कवि, साहित्यकार तथा जन संस्कृति मंच (जसम) के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष कौशल किशोर को प्रेमचंद सम्मान से सम्मानित किया गया। वयोवृद्ध शिक्षाविद राम करण शुक्ला (90 वर्ष) ने उन्हें शाल ओढ़ाकर स्मृति चिन्ह प्रदान किया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ अधिवक्ता और लेखक सईद नकवी कानपुर ने की। कार्यक्रम अटल बिहारी इंटर कॉलेज उन्नाव के सभागार में सम्पन्न हुआ। इस मौके पर ‘आज के समय में प्रेमचंद ‘ विषय पर राष्ट्रीय व्याख्यान सह संगोष्ठी का आयोजन हुआ। मुख्य वक्ता अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के उर्दू विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रोफेसर सागर अफराहीम थे। उन्होंने कहा कि मुझसे अक्सर सवाल किया जाता है कि मुंशी प्रेमचंद हिंदी के थे कि उर्दू के। इस बारे में मेरा जवाब है कि वह इंसानियत के पक्षधर थे।
दरअसल वे पुल बनाते हैं और अपने समय में सियासत को आईना दिखाते हैं। उनका साहित्य आज भी आईना है। स्थितियां उस समय से ज्यादा खराब हुई हैं। प्रोफेसर सगीर ने कहा कि संपूर्ण भारतीय साहित्य की भाषाओं में हमारे समाज के जनजीवन को समझने, उनकी रोजमर्रा की दुश्वारियां से रूबरू होने के लिए प्रेमचंद के अलावा कोई दूसरा कहानीकार आज तक नहीं हुआ। उनके व्यापक नजरिए को देखा जाना चाहिए। प्रो सगीर ने प्रेमचंद के अनेक लेख व टिप्पणी जैसे ‘साहित्य में घृणा का स्थान ‘, ‘जमाना कानपुर’, ‘जंग रूस और जापान’, ‘जर्मनी में यहूदियों पर अत्याचार ‘ आदि की चर्चा करते हुए कहा कि उनके चिंतन में भारत ही नहीं दुनिया के मसायल थे। इसके मूल में आम लोगों की चिंता थी। उनके दुख-दर्द से लगाव था।
विशिष्ट वक्ता के रूप में बोलते हुए कौशल किशोर ने कहा कि प्रेमचंद को लेकर बहुतों को परेशानी है। उन्हें सीमित करने या खंडित पाठ करने की कोशिश की जाती है। जरूरत है उनका सामाजिक-राजनीतिक पाठ किया जाना। उनके लिए आजादी केवल राजनीतिक लड़ाई नहीं थी बल्कि सामाजिक सांस्कृतिक रूपांतरण का संघर्ष था। उनमें लगातार बदलाव आता गया। 1930 के बाद उनके सृजन और विचार में उत्कर्ष स्पष्ट रूप से दिखता है।
कौशल किशोर का कहना था कि आजादी के संघर्ष में उनके विचार भगत सिंह के करीब हैं। वहीं सामाजिक दृष्टि में आंबेडकर के। जीवन के अंतिम दिनों में गांधीवाद की सीमाएं उजागर हो गई थीं। इसका उदाहरण तमाम लेख तथा मंगलसूत्र अधूरा उपन्यास है। प्रेमचंद का संघर्ष वर्ण-व्यवस्था, पुरोहितवाद, सांप्रदायिकता, ब्राह्मणवाद आदि से था। डॉ आंबेडकर ने आजादी मिलने पर कहा था कि मनु के शासन की समाप्ति हो रही है। लेकिन आज मनु की वापसी हो रही है। लोकतंत्र के पाए हिल रहे हैं। बलात्कारी सम्मानित हो रहे हैं।
संसद अपराधियों से सुसज्जित हैं। ऐसे में प्रेमचंद के साहित्य और विचार से हमें रोशनी मिलती है। हमें प्रेमचंद के पास जाने, उनसे सीखने-समझने की बहुत जरूरत है। बीज वक्तव्य देते हुए कवि व आलोचक दिनेश प्रियमन ने कहा कि कि प्रेमचंद में हिंदुस्तान के साझेपन का भाव है। वे विभेदकरी कारकों के खिलाफ प्रतिरोध करते हैं। उनके समय से आज क्या बदला है? केवल इनका रूप, इनका रंग। धन, बाजार, सेक्स, हिंसा, विद्वेष, युद्ध, पर्यावरण विनाश जैसी तमाम समस्याओं का इजाफा हुआ है। सवालों को हल करने की जगह सियासत ने उसे बढ़ाया है। शिक्षा नीति के द्वारा पाठ्यक्रम से प्रेमचंद को बाहर करने में हुई। उनके मूल पाठ से भी छेड़छाड़ की जा रही है। कथित विकास के इस भयावह दौर में प्रेमचंद की जरूरत असंदिग्ध है।
कवयित्री जयप्रभा यादव ने प्रेमचंद के कथा साहित्य में नारी चरित्र पर अपनी बात को केंद्रित करते हुए कहा कि स्त्रियों के संबंध में उन्होंने रूढ़िवादी सोच को चुनौती दी है। स्त्री मनोभाव और संघर्ष को विषय बनाया है। धनिया, निर्मला, सुमन, जालपा, सुभद्रा, मालती आदि चरित्रों के माध्यम से स्त्रियों के व्यक्तित्व के विभिन्न पहलुओं को सामने ले आते हैं। वे दब्बू व भीरू नहीं हैं। धनिया और अन्य स्त्री पात्रों का चरित्र इसका उदाहरण है।
इस मौके पर अशोक मिश्र का कहना था कि प्रेमचंद सामाजिक यथार्थ के चितेरे हैं। समाज के मनोविज्ञान को जितनी गहराई से वह पकड़ते और व्यक्त करते हैं, वह अप्रतिम है। अशोक मिश्र ने ‘गुल्ली डंडा’, ‘दो बैलों की जोड़ी’ आदि अनेक कहानियों का उदाहरण देते हुए अपनी बात कही। विमल किशोर (लखनऊ) ने कहा कि हिन्दी और उर्दू की साझी परंपरा को आगे बढ़ाना ही प्रेमचंद को सही मायने में याद करना होगा।
मंच के आग्रह पर उन्होंने अपनी एक कविता ‘ मांगती है हिसाब जमाने से ‘ सुनाई। पत्रकार महेश शर्मा ने प्रेमचंद के उपन्यास रंगभूमि पर अपने विचार रखे और कहा कि यह वर्ष इस उपन्यास के लेखन का शताब्दी वर्ष है। इसमें जिस विकास की चर्चा है, उसका क्रूर रूप आज देखने को मिलता है।
कार्यक्रम का संचालन प्रगतिशील लेखक संघ के संरक्षक डॉक्टर रामनरेश प्राचार्य ने किया । अतिथियों का स्वागत अटल बिहारी इंटर कॉलेज के प्रधानाचार्य अजब सिंह यादव ने किया । इस अवसर पर प्रमुख रूप से नसीर अहमद, आलोक अग्निहोत्री, अखिलेश तिवारी, जब्बार अकरम, संजीव श्रीवास्तव,चंद्रभान चंद्र, पीयूष तिवारी, कमाल दानिश, सरल कुमार, अबरार अहमद, मनीष त्रिपाठी, सौरभ शुक्ला, पीके मिश्रा, सुशील मिश्रा, रघुराज मगन, हेमंत नंदन पंत, आनन्द गौतम आदि मौजूद थे।
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