Premanand Maharaj : प्रेमानंद महाराज कैसे बने संत? रुला देगा ये किस्सा…

Premanand Maharaj : वृंदावन में सबसे चर्चित और सभी के दिल में राज करने वाले संत श्री प्रेमानंद जी आज भारतभर में एक प्रसिद्ध आध्यात्मिक गुरु, संत और कथावाचक के रूप में प्रसिद्ध हैं। प्रेमानंद जी को उनके शिष्य “महाराज जी” के नाम से बुलाते हैं। संत प्रेमानंद के आश्रम में भक्ति, सेवा और वैराग्य का अद्भुत संगम देखने को मिलता है।

इन दिनों हर जगह प्रेमानंद महाराज की बातें हो रही हैं, जिसकी वजह है कि महाराज जी अब अपने जीवन के अंत समय से गुजर रहे हैं। प्रेमानंद महाराज लंबे समय से किडनी की समस्या से पीड़ित हैं। उनकी दोनों किडनी खराब हैं, और खुद प्रेमानंद जी कह रहे हैं, उनका आखिरी समय आ गया है। वह राधा रानी के सान्निध्य में अपनी देह त्याग देंगे। ऐसे समय में, प्रेमानंद महाराज की जीवन से जुड़े रहस्यों को हर कोई जानना चाहता है। आज हम आपको ले चलेंगे वृंदावन और बताएंगे, कैसे प्रेमानंद महाराज जी, अनिरुद्ध कुमार पांडेय से एक संतो बन गए।

वृंदावन धाम में प्रेमानंद महाराज जी का साधना स्थल भक्ति और प्रेम का केंद्र बन गया है। महाराज जी का हर प्रवचन, हर कथा, और हर उपदेश प्रेम, भक्ति और आत्मसमर्पण का संदेश देता है। उन्होंने असंख्य भक्तों के जीवन में भक्ति का प्रकाश फैलाया और राधा-कृष्ण प्रेम की अनुभूति कराई।

प्रेमानंद महाराज जी का जीवन त्याग और तपस्या का एक अद्भुत उदाहरण है। उनका असली नाम अनिरुद्ध कुमार पांडेय है। प्रेमानंद महाराज जी का जन्म कानपुर के सरसौल क्षेत्र के अखरी गांव में हुआ था। उनके माता-पिता, रामा देवी और शंभू पांडे थे, और उनका परिवार खेती करता था। छोटी उम्र में ही उन्होंने मद्भागवत का पाठ और हनुमान चालीसा का अनगिनत बार पाठ करना शुरू कर दिया था। महज 13 साल की कम उम्र में, बिना किसी को बताए, ही, अनिरुद्ध कुमार पांडेय महाराज जी सुबह तीन बजे अपने घर से निकल पड़े थे। यह निर्णय उन्होंने सांसारिक बंधनों से मुक्त होकर, केवल श्री राधा-कृष्ण की भक्ति में अपना जीवन बिताने के उद्देश्य से लिया था। घर त्यागने के बाद, उन्होंने नैष्ठिक ब्रह्मचारी की दीक्षा ग्रहण की, और उनका नाम आर्यन ब्रह्मचारी पड़ा।

इसके बाद, उन्होंने राधा राधवल्लभी संप्रदाय में दीक्षा ली, जहां उनका नाम आनंदस्वरूप ब्रह्मचारी हो गया। उन्होंने मथुरा-वृंदावन में प्रवास किया और भक्ति मार्ग का अनुसरण करते हुए राधा कृष्ण की अनन्य भक्ति की ओर कदम बढ़ाए। इसके बाद, उनके भक्त उन्हें संत प्रेमानंद के नाम से जानने लगे। इस नाम के साथ उन्होंने आजीवन संन्यास मार्ग को अपनाया और भक्ति की धारा में खुद को विलीन कर लिया।

अनिरुद्ध कुमार पांडेय के मन में अचानक एक दिन विचार आया कि वह एक बार वृंदावन जरूर जाएंगे। इससे ठीक पहले, उन्होंने रासलीला देखी और यहीं से उनका जीवन बदलने लगा। पहली बार, उनके मन में राधा-कृष्ण की भक्ति जागी, और वे सीधे वृंदावन पहुंच गए। यहां, उनकी मुलाकात राधा वल्लभ संप्रदाय से हुई, और वे उनके साथ जुड़कर भक्ति के गीत गाने लगे। मोहित गोस्वामी जी से दीक्षा लेने के बाद, वह एक रसिक संत बन गए।

इसके बाद, अनिरुद्ध कुमार पांडेय राधा-कृष्ण भक्ति का प्रचार करने लगे, और लोगों को उनकी बातें बहुत अच्छी लगने लगीं। उनकी सादगी भरी वाणी में एक जादू सा था, जिसने आम लोगों के साथ-साथ कई बड़ी हस्तियों को भी प्रभावित किया। धीरे-धीरे, लोग उन्हें प्रेमानंद महाराज के रूप में जानने लगे, और आज हज़ारों लोग उनके दर्शन करने आते हैं।

मगर अब, महाराज जी किडनी खराब होने से काफी बीमार हो गए हैं। उनके भक्त और कई बड़ी हस्तियों ने उन्हें किडनी दान देने की पेशकश की है, मगर प्रेमानंद जी ने मना कर दिया। उन्होंने कहा, “अगर ईश्वर को मुझे और जीवन देना है, तो इन्हीं खराब किडनी को सही कर दे, वर्ना मुझे जीवन नहीं चाहिए। बस राधे श्याम की शरण में जाना है।” हाल ही में, पंडित धीरेंद्र शास्त्री भी उनसे मिलने पहुंचे थे, और उनकी हालत देखकर भावुक हो गए। हम सभी, उनके ठीक होने की कामना करते हैं।

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