कुंआरे के अलग, शराबियों के अलग हैं भगवान! हिंदुओं के भगवान पर नेताओं की अभद्र टिप्पणी, जानिए कब-किसने क्या कहा?

Politics on Hindi God : भारत देश में सभी धर्मों का सम्मान किया जाता है। संविधान में सभी धर्मों को समान अधिकार दिया गया है। लेकिन इसके बावजूद भारतीय राजनीति में धार्मिक भावनाओं को आहत करने के मामले आए-दिन देखने को मिलते हैें, जो राजनीति से इतर हटके धार्मिक विवाद को जन्म देते हैं। हाल ही में कई नेताओं ने हिंदू धर्म से जुड़े देवी-देवताओं को अपमानित करने वाले बयान दिए हैं, जिसपर राजनीतिक विवाद छिड़ गया है। और ये अभद्र बयानबाजी वो राजनेता कर रहे हैं जो विशेष सम्मानीय पद पर हैं।

हिंदू देवी-देवताओं पर अभद्र टिप्पणी की सिलसिला साल 2024 से शुरू हुआ था। जब तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी ने कहा था, “हिंदुओं के अलग-अलग भगवान होते हैं। कुँआरे लोगों के लिए अलग, शराबियों के लिए अलग, एक पत्नी के वालों के लिए अलग और दो शादी करने वालों के लिए अलग भगवान होते हैं।” इस बयान ने भी राजनीतिक हलकों में तूफान मचा दिया है। उनके इस बयान को अक्सर अपमानजनक माना गया है और इसे धार्मिक समुदायों की भावनाओं को आहत करने वाला बताया गया है।

रेवंत रेड्डी के बयान के बाद सियासी घमासान मचा। वहीं, अब बंगाल के टीएमसी विधायक मदन मित्रा ने भी भगवान राम को लेकर अभद्र टिप्पणी कर दी। मदन मित्रा ने कहा, “भगवान राम मुस्लिम थे, हिंदू नहीं थे।” जिसके बाद भाजपा ने टीएमसी पर हिंदुओं की भावनाओं को चोट पहुंचाने का आरोप लगाया तो टीएमसी पार्टी के प्रवक्ता ने कहा कि मदन मित्रा के बयान से पार्टी का कोई लेना-देना नहीं है।

बता दें कि मदन मित्रा पूर्व में केंद्रीय मंत्री और टीएमसी के वरिष्ठ नेता हैं। अनेक हिंदू संगठनों और राजनीतिक दलों ने मदन मित्रा के इस बयान की निंदा की है और इसे धार्मिक भावनाओं का अपमान बताया है। इस बयान के बाद से ही उनके खिलाफ राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए हैं।

इन नेताओं की हिंदू देवी-देवताओं पर की गई टिप्पणियों के बाद राजनीतिक माहौल गर्म हो गया है। भाजपा का आरोप है कि इन नेताओं को इतनी छूट कैसे दी जा रही है। भाजपा नेताओं ने कहा कि यह बयान न केवल असंवेदनशील हैं बल्कि समाज में सौहार्द्रता को भी नुकसान पहुंचाते हैं। भाजपा का यह भी कहना है कि इन टिप्पणियों से धार्मिक द्वेष बढ़ सकता है, और सरकार को इन पर कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए।

धार्मिक संगठनों ने इन बयानों की कड़ी निंदा की है। उनका मानना है कि इससे धार्मिक सद्भाव को ठेस पहुंची है और समाज में भेदभाव बढ़ सकता है। अनेक सामाजिक कार्यकर्ताओं ने कहा है कि नेताओं को अपनी बातों में संयम बरतना चाहिए और धार्मिक भावनाओं का सम्मान करना चाहिए।

यहां बता दें कि जब देश में आम मुद्दों से हटकर राजनीति में धार्मिक भावनाओं को भड़काने वाले बयान आते हैं, तो ये देश में विभाजन और द्वेष की भावना को बढ़ावा देते हैं। नेताओं के ऐसे बयानों से समाज में राजनीतिक अस्थिरता बढ़ती है, बल्कि समाज में तनाव बढ़ता है। सुप्रीम कोर्ट को राजनीति के स्तर को लेकर सख्त नियम बनाने की आवश्यकता है। जिससे राजनीति से जुड़े नेताओं द्वारा किसी भी धर्म का अपमान न किया जाए।

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