
नई दिल्ली: जब दो पड़ोसी देश जिनके बीच हजारों किलोमीटर की सीमा हो, जिनकी आबादी कुल मिलाकर दुनिया की एक तिहाई हो और जिनकी आर्थिक व सामरिक ताकत वैश्विक मंच पर निर्णायक मानी जाती हो वे अगर एक मंच पर साथ आएं, तो यह सिर्फ एक मुलाकात नहीं होती, बल्कि इतिहास में दर्ज होने वाला क्षण बन जाता है.
ऐसा ही कुछ हुआ चीन के तियानजिन में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन 2025 में, जब भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग आमने-सामने हुए. यह मुलाकात सिर्फ औपचारिक बातचीत नहीं थी, बल्कि उन मुद्दों पर गहन चर्चा थी जिनका सीधा संबंध दोनों देशों के वर्तमान और भविष्य से है.
आतंकवाद के खिलाफ एकजुटता की दिशा में कदम
इस मुलाकात की सबसे बड़ी विशेषता रही आतंकवाद के मुद्दे पर प्रधानमंत्री मोदी की स्पष्ट और मजबूत आवाज. उन्होंने बिना किसी संकोच के सीमा पार आतंकवाद की बात चीनी राष्ट्रपति के सामने रखी और इस बात पर ज़ोर दिया कि भारत आज भी आतंकवाद से जूझ रहा है. उन्होंने यह भी कहा कि भारत और चीन दोनों ही इस संकट के शिकार रह चुके हैं, और अब वक्त आ गया है कि दोनों देश मिलकर इसके खिलाफ एकजुट हों.
चीन ने इस पर समर्थन जताया, और संकेत दिए कि वह विभिन्न तरीकों से भारत के प्रयासों का साथ देगा. यह सहमति न सिर्फ भारत के लिए एक कूटनीतिक सफलता है, बल्कि यह दर्शाती है कि आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक एकता की ज़रूरत अब पहले से कहीं ज्यादा प्रासंगिक है.
सीमा पर शांति का महत्व: संबंधों की असली कुंजी
पीएम मोदी ने इस बातचीत में एक अहम बात बहुत सरलता और सटीकता से रखी, “सीमा पर शांति और सौहार्द किसी बीमा की तरह हैं, जो द्विपक्षीय संबंधों की रक्षा करते हैं.” ये शब्द न केवल कूटनीतिक समझदारी का परिचायक हैं, बल्कि भारत की सोच को भी दर्शाते हैं कि किसी भी मजबूत संबंध की नींव स्थिरता और भरोसे में होती है, टकराव में नहीं.
शी जिनपिंग भी इस बात से सहमत नजर आए कि मतभेदों को विवाद में बदलने से बचना चाहिए. दोनों नेताओं का यह साझा विचार बताता है कि सीमा पर स्थिति चाहे जैसी हो, बातचीत और समझदारी से समाधान तलाशा जा सकता है.
द्विपक्षीय रिश्तों को नई दिशा देने वाले सुझाव
विदेश सचिव विक्रम मिस्री के अनुसार, राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने प्रधानमंत्री मोदी को द्विपक्षीय रिश्तों को और बेहतर बनाने के लिए चार सुझाव दिए. यह इस बात का संकेत है कि चीन अब भारत के साथ आगे बढ़ने को तैयार है, बशर्ते परस्पर सम्मान और शांतिपूर्ण संवाद को प्राथमिकता दी जाए.
दोनों देशों ने यह भी स्वीकार किया कि 2.8 अरब लोगों का भविष्य इन संबंधों पर निर्भर करता है. इसलिए किसी भी कदम या नीति को केवल राजनीतिक नजरिए से नहीं, बल्कि मानवीय दृष्टिकोण से देखने की जरूरत है.
आर्थिक मामलों में भी खुलकर हुई चर्चा
इस बैठक में वैश्विक आर्थिक हालात पर भी चर्चा हुई, खासतौर पर टैरिफ और व्यापार नीतियों को लेकर. हाल ही में अमेरिका द्वारा भारत पर टैरिफ बढ़ाने की आशंकाओं के बीच भारत और चीन के बीच व्यापारिक सहयोग की संभावना पर चर्चा करना बेहद अहम माना जा रहा है.
दोनों नेताओं ने माना कि तेजी से बदलती वैश्विक परिस्थितियां, जैसे युद्ध, संरक्षणवाद और आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान, उन चुनौतियों का हिस्सा हैं जिनका हल केवल सहयोग और समझदारी से निकाला जा सकता है.