RSS के शताब्दी समारोह में पीएम मोदी बोले- ‘विजयादशमी के दिन 100 साल पहले संघ की स्थापना कोई संयोग नहीं था’

PM Modi at RSS Event : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के 100 साल पूरे होने के अवसर पर दिल्ली में एक विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संबोधन में RSS के योगदान को याद किया और इसकी महत्ता पर प्रकाश डाला।

पीएम मोदी ने कहा कि संघ राष्ट्रचेतना का पुण्य अवतार है। संघ की धारा में सैकड़ों जीवन पुष्पित हुए हैं। संघ ने इस देश के हर क्षेत्र और समाज के प्रत्येक आयाम को छुआ है। यह अविरल प्रवाह का परिणाम है, जो राष्ट्र की शक्ति और ऊर्जा का स्रोत है। जैसी नदी कई धाराओं में स्वयं को प्रकट करती है, वैसे ही संघ की यात्रा और उसके संगठन जीवन के हर पहलू से जुड़कर राष्ट्र सेवा कर रहे हैं, चाहे वह शिक्षा, कृषि, समाज कल्याण, आदिवासी कल्याण या कला और अन्य क्षेत्रों हो।

पीएम मोदी ने कहा कि संघ में कभी कोई विरोधाभास नहीं रहा क्योंकि हर धारा का उद्देश्य और भावना एक ही है- राष्ट्र प्रथम। संघ का गठन ही एक विराट उद्देश्य के साथ हुआ था, जिसमें व्यक्ति निर्माण से राष्ट्र निर्माण का लक्ष्य था। संघ ने जो कार्यपद्धति अपनाई, वह थी नित्य शाखाओं का संचालन, जो देश के विकास और समाज के उत्थान के लिए निरंतर चलती रही।

आज महानवमी का पर्व है और कल विजयादशमी का महापर्व। यह पर्व अन्याय पर न्याय, असत्य पर सत्य, अंधकार पर प्रकाश की जीत का प्रतीक है। विजयादशमी भारतीय संस्कृति की इस विचार और विश्वास का कालजयी उद्घोष है। ऐसे शुभ अवसर पर 100 साल पहले संघ की स्थापना कोई संयोग नहीं थी; यह हजारों वर्षों से चली आ रही परंपरा का पुनः जागरण था। संघ इसी अनादि राष्ट्रचेतना का पुण्य अवतार है। यह हमारी पीढ़ी के स्वयंसेवकों का सौभाग्य है कि हमें संघ के शताब्दी वर्ष जैसे महान अवसर का साक्षात्कार हो रहा है।

पीएम मोदी ने आगे कहा कि भारत सरकार ने इस अवसर पर विशेष डाक टिकट और स्मृति सिक्के भी जारी किए हैं। 100 रुपये के सिक्के पर एक ओर राष्ट्रीय प्रतीक चिन्ह है, तो दूसरी ओर सिंह के साथ वरद मुद्रा में भारत माता की भव्य छवि और उन्हें श्रद्धा से नमन करते हुए स्वयंसेवक दिखाई देते हैं। भारतीय मुद्रा पर भारत माता की तस्वीर संभवत: स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहली बार प्रदर्शित हुई है। इस सिक्के पर संघ का बोध वाक्य भी अंकित है- राष्ट्राय स्वाहा, इदं राष्ट्राय इदं न मम।

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