
- सेहत से खिलवाड़ पर ‘नोटिसबाजी’ का कर रहे खेल, दिखावे को भेज रहे नोटिस
- छापेमारी के नाम पर खानापूरी, अवैध संस्थानों को दो दिन की मोहलत
- मुख्य चिकित्सा अधिकारी से संपर्क की कोशिश नाकाम, फोन नहीं उठाया
- जनता पूछ रही — कब होगी असली कार्रवाई, फर्जीवाड़े पर कब लगेगा ताला ?
पूरनपुर, पीलीभीत। पूरनपुर में स्वास्थ्य सेवाओं की हालत इतनी खराब हो चुकी है कि सरकारी व्यवस्था की पूरी पोल खुल गई है। वर्षों से बिना पंजीकरण और बिना योग्य डॉक्टरों के चल रहे फर्जी हॉस्पिटल, पैथोलॉजी लैब और अल्ट्रासाउंड सेंटर अब तक खुलेआम काम कर रहे हैं। इन संस्थानों पर कार्रवाई के नाम पर शनिवार को किए गए छापेमारी की सच्चाई यह है कि विभागीय अधिकारियों ने महज कागजों पर नोटिस चिपकाकर अपना काम खत्म किया। इन सेंटरों पर कार्रवाई के नाम पर सिर्फ खानापूरी की गई है, जबकि किसी भी सेंटर को सील नहीं किया गया और न ही किसी संस्थान के खिलाफ आपराधिक मुकदमा दर्ज किया गया।
नोटिस चिपका, समय दिया और काम खत्म!
पूरनपुर के इन अवैध संस्थानों के संचालक इतने शातिर हैं कि उन्हें विभाग की गतिविधियों का पहले ही अंदाजा हो गया। इसीलिए अधिकांश सेंटर छापेमारी से पहले बंद हो चुके थे। जहां सेंटर खुले थे, वहां अधिकारियों ने बस नोटिस चिपका दिए और दो दिन का वक्त दे दिया ताकि वे अपनी दस्तावेज़ जमा कर सकें।
यह सवाल उठता है — क्या यह कार्रवाई केवल दिखावे के लिए की गई थी, या फिर प्रशासन ने सचमुच इन संस्थानों को बंद करने का ठान लिया था ?
क्यों प्रशासन ऐसे अवैध संस्थानों को छूट दे रहा है, जो न सिर्फ कानून का उल्लंघन कर रहे हैं, बल्कि लोगों की जान भी खतरे में डाल रहे हैं ?
अवैध संस्थानों पर ‘विलायत’ की तरह क्यों हो रही कार्रवाई ?
अवधि तक देखे जाएं, तो कई ऐसे मामलों का खुलासा हुआ है जहां इन फर्जी संस्थानों ने लोगों को गलत इलाज, अवैध दवाइयां और अनधिकृत रिपोर्टें दी हैं।
रिपोर्टों के अनुसार, कुछ मरीजों ने ये शिकायतें की हैं कि उन्हें गलत अल्ट्रासाउंड रिपोर्ट्स दी गईं, जिनके कारण उनका इलाज उलटा पड़ा। एक गंभीर मामले में तो डॉक्टर की गलत सलाह से एक गर्भवती महिला का ऑपरेशन करना पड़ा, जिससे उसकी और बच्चे की जान को खतरा हो गया।
क्यों प्रशासन अब तक इन घटनाओं को गंभीरता से नहीं ले रहा, यह सवाल भी उठता है।
फर्जी स्वास्थ्य संस्थानों के खिलाफ न कोई कार्रवाई, न कोई जवाबदेही
पूरनपुर क्षेत्र में सालों से चल रहे इन अवैध संस्थानों ने न केवल कानून का उल्लंघन किया है, बल्कि सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं का भी मजाक उड़ाया है। सरकारी अस्पतालों में वॉर्ड और दवाइयों की कमी के कारण लोगों को मजबूरी में इन अवैध संस्थानों का रुख करना पड़ता है। ज्यादातर लोग इन फर्जी अस्पतालों और लैबों में इलाज और जांच के लिए जाते हैं, क्योंकि सरकारी अस्पतालों में कतारें लंबी हैं और चिकित्सक पर्याप्त नहीं हैं।
यहाँ तक कि कई मरीजों को डर यह होता है कि अगर सरकारी अस्पतालों में इलाज कराने गए, तो उन्हें सही इलाज मिल पाएगा या नहीं? ऐसे में ये फर्जी संस्थान आसानी से अपना जाल फैलाते हैं।