
लखनऊ : ईरान में फंसे 48 जायरीनों का एक दल रविवार को सुरक्षित लखनऊ लौट आया। एयरपोर्ट पर उनके चेहरों पर राहत और आंखों में वतन लौटने की खुशी साफ झलक रही थी। हाथों में तिरंगा थामे इन जायरीनों ने ‘हिंदुस्तान जिंदाबाद’ के नारे लगाते हुए जमीन को चूमा। ईरान-इज़राइल तनाव के बीच ज़ियारत पर गए इन भारतीयों की सुरक्षित वापसी एक बड़ी राहत बनकर सामने आई।
“धमाके करीब थे, पर अल्लाह और वतन दोनों साथ थे”
निशातगंज की नाज़ आबदी, जो हरदोई की राना बेगम के साथ ज़ियारत पर गई थीं, ने बताया कि कैसे आसमान में उड़ते फाइटर जेट्स और धमाकों की आवाज़ों ने उन्हें डरा दिया था। “ऐसा लग रहा था मानो जंग छिड़ी हो, लेकिन हमें भरोसा था कि हमारी सरकार हमें नहीं छोड़ेगी,” उन्होंने कहा।
“एंबेसी के लोग फरिश्ते बनकर साथ खड़े रहे”
विकास नगर के अशफाक और उनकी पत्नी परवीन ने बताया कि 13 जून से लगातार धमाकों की गूंज सुनाई देती रही। मगर भारतीय दूतावास हर वक्त संपर्क में रहा। मोहसिन इकबाल और उनकी पत्नी नजाकत ने ईरानी लोगों की मेहमाननवाज़ी का ज़िक्र करते हुए कहा – “उन्होंने कहा, ‘आप इंडिया वाले हमारे मेहमान हैं’।”
ज़ियारत के दौरान गूंजे धमाके, फिर भी हौसले कायम
फैजाबाद की शाहीन फातिमा ने बताया कि 20 जून को जब वह इमाम-ए-रज़ा के रौज़े में ज़ियारत कर रही थीं, तभी धमाकों की आवाजें आईं। रौज़ा जायरीनों से भरा था, फिर भी कोई भगदड़ नहीं मची। “हम सबने दुआ मांगी और सब सही-सलामत लौट आए,” उन्होंने कहा।
“पापा वहीं रह गए, दिल में दुआ और आंखों में इंतजार”
महमूदाबाद की कनीज सुगरा अपने बेटे अब्बास और मां अच्छी बेगम के साथ तो लौट आईं, लेकिन उनके पति मुजाबिर अब भी ईरान में हैं। अब्बास ने बताया कि “जब हमारा नाम ऐलान हुआ और पापा का नहीं, तो बहुत डर लग गया। एंबेसी ने वादा किया है कि उन्हें भी जल्द लाया जाएगा।” परिवार ने भारत सरकार से अपील की है कि उनकी सुरक्षित वापसी भी सुनिश्चित की जाए।
कारवां के मालिक ने कहा – ‘एंबेसी को सलाम’
कारवान-ए-नूर के मालिक नेहाल ने बताया कि उनके 96 लोगों का काफिला ज़ियारत के लिए ईराक-ईरान गया था। उन्होंने कहा, “इस युद्ध जैसी स्थिति में भारतीय एंबेसी के अधिकारियों ने एक पल को भी साथ नहीं छोड़ा। हर व्यक्ति से संपर्क में रहे और वतन वापसी को मुमकिन बनाया। उन्हें सलाम है।”
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