
- याचिकाकर्ता ने कहा- पद की निष्पक्षता के लिए जरूरी
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट में भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग) की नियुक्ति प्रक्रिया को चुनौती देने वाली एक याचिका पर सुनवाई हुई है। इस याचिका में स्थापित प्रणाली को विवादित बताया गया है, जिसमें कैग के प्रमुख की नियुक्ति प्रधानमंत्री की सिफारिश पर की जाती है। याचिका में मांग की गई है कि कैग की नियुक्ति के लिए एक स्वतंत्र पैनल का गठन किया जाए, जिसमें प्रधानमंत्री, नेता प्रतिपक्ष और भारत के मुख्य न्यायाधीश शामिल हों।
इसके अलावा, यह भी जानकारी मिली है कि पूर्व डिप्टी CAG अनुपम कुलश्रेष्ठ द्वारा दायर की गई एक याचिका भी अब तक एक वर्ष से लंबित है। इस याचिका पर सुनवाई के लिए पहले ही नोटिस जारी किया गया था, लेकिन अभी तक कोई आगे की कार्रवाई नहीं हुई है। पूर्व में इस मामले को तत्कालीन चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने सुना था, जिसने सरकार से इस मुद्दे पर जवाब मांगा था।
याचिका का मुख्य बिंदु यह है कि मौजूदा प्रणाली में पारदर्शिता का अभाव है। वर्तमान प्रणाली के तहत, कैबिनेट सचिवालय प्रधानमंत्री को शॉर्टलिस्ट किए गए उम्मीदवारों की सूची भेजता है, जिसके बाद प्रधानमंत्री के नेतृत्व में एक पैनल इस पर विचार करता है और नाम को राष्ट्रपति के पास मंजूरी के लिए भेजा जाता है। राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद चयनित अधिकारी को कैग के पद पर नियुक्त किया जाता है।
इस प्रक्रिया में सुधार की मांग करते हुए याचिकाकर्ता ने कहा कि एक स्वतंत्र पैनल की स्थापना से नियुक्तियों में पारदर्शिता और निष्पक्षता सुनिश्चित होगी।