
सुप्रीम कोर्ट आज उस समय हैरान रह गया जब एक एसिड अटैक सर्वाइवर स्वयं कोर्ट में पेश हुईं और एक जनहित याचिका दायर कर देश में मौजूद एसिड अटैक से जुड़े मुद्दों को उजागर किया। याचिका में कहा गया कि देश में कई मामलों में पीड़ितों पर सिर्फ एसिड फेंकने का ही नहीं, बल्कि उन्हें एसिड पिलाया भी जाता है, लेकिन मौजूदा कानून में ऐसे पीड़ितों को किसी तरह का मुआवजा या सहायता का प्रावधान नहीं है।
यह सुनते ही सुप्रीम कोर्ट ने बेहद सख्त रुख अपनाते हुए टिप्पणी की, “यह सिस्टम का मजाक है!” अदालत उस समय चिंतित और हैरान रह गई जब स्वयं पीड़ित महिला ने बताया कि कई मामलों में पीड़ितों को न सिर्फ एसिड फेंका जाता है, बल्कि उन्हें जहर की तरह एसिड पिलाया जाता है। उसने यह भी खुलासा किया कि 2009 में उस पर हमला हुआ था, लेकिन आज तक उसका ट्रायल पूरा नहीं हो पाया है।
क्या था याचिका का मुख्य मुद्दा?
याचिका में पीड़िता ने मांग की कि एसिड पिलाए जाने वाले मामलों को भी एसिड अटैक कानून के अंतर्गत शामिल किया जाए। वर्तमान कानून केवल उन मामलों को कवर करता है, जहां एसिड फेंका जाता है, न कि जहां एसिड पिलाया जाता है। पीड़िता ने कहा कि एसिड पीने से शरीर के अंदरूनी अंग क्षतिग्रस्त हो जाते हैं, जिससे पीड़ित को जीवनभर दर्द और स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है। बावजूद इसके, मौजूदा कानून इन मामलों को मान्यता नहीं देता है।
सीजेआई सूर्यकांत ने कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा, “यह तो सिस्टम का मजाक है। यदि राजधानी दिल्ली में ही ऐसे मामलों का निपटारा नहीं हो पा रहा है, तो देशभर में क्या स्थिति होगी?” उन्होंने केंद्र सरकार से आग्रह किया कि इस दिशा में नया कानून लाया जाए, जिसमें एसिड से पीड़ितों को भी मुआवज़ा, इलाज और पुनर्वास का अधिकार मिले।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि इस संबंध में विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत की जाए और जल्द से जल्द ऐसा कानून बनाने पर विचार किया जाए। साथ ही, अदालत ने यह भी कहा कि देशभर में एसिड अटैक से जुड़े मामलों की स्थिति पर भी विस्तृत रिपोर्ट मांगी गई है।
भारत में एसिड अटैक के मामलों का कानून तो है, लेकिन वह केवल एसिड फेंकने वाले मामलों तक सीमित है। एसिड पिलाए जाने वाले पीड़ितों को न तो उचित इलाज का लाभ मिलता है और न ही मुआवज़ा। यह मामला उन हजारों पीड़ितों के लिए उम्मीद की किरण है, जो अभी भी कानूनी संरक्षण से वंचित थे।
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