
लखनऊ। लखनऊ विश्वविद्यालय के समाज कार्य विभाग स्थित पंडित दीनदयाल उपाध्याय शोध पीठ के अंतर्गत पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जयंती पर आयोजित कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के “स्वस्थ नारी – सशक्त परिवार अभियान” को जन-जन तक पहुंचाने की दिशा में एक अनूठी पहल करते हुए छात्रों को “सेवा दूत” की जिम्मेदारी सौंपी गयी। ये सेवा दूत समाज में नारी स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दों पर जन जागरूकता फैलाएँगे। इसके अतिरिक्त लखनऊ विश्वविद्यालय द्वारा गोद लिए गए पाँच गाँवों में स्थित सरकारी विद्यालयों के छात्र और छात्राओं को इस अभियान के विषय में जागरूक करते हुए उन्हें भाषण, कहानी कथन और चित्रकला प्रतियोगिता में प्रथम, द्वितीय और तृतीय स्थान प्राप्त करने के लिए उनका उत्साहवर्धन करते हुए सम्मानित किया गया।
इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित लखनऊ विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. मनुका खन्ना ने कहा कि महिला स्वास्थ्य की अनदेखी समाज के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। उन्होंने कहा, “यदि नारी स्वस्थ है तो पूरा परिवार स्वस्थ है और यदि परिवार स्वस्थ है तो समाज और राष्ट्र स्वतः सशक्त होगा। यह अभियान केवल स्वास्थ्य का संदेश नहीं है, बल्कि नारी सशक्तिकरण और राष्ट्र निर्माण की दिशा में ठोस पहल है और दीनदयाल जी के एकात्म और अन्त्योदय के विचार का संवाहक भी। सेवा दूत गांव-गांव जाकर महिला स्वास्थ्य से जुड़ी तमाम भ्रांतियों को तोड़ेंगे और वैज्ञानिक दृष्टिकोण को मजबूत करेंगे। यही पंडित दीनदयाल उपाध्याय के एकात्म मानववाद की सच्ची अभिव्यक्ति है।” उन्होंने छात्रों को सेवा दूत की भूमिका में सक्रियता से काम करने का आह्वान किया और कहा कि विश्वविद्यालय की पहचान केवल पाठ्यक्रम तक सीमित नहीं होनी चाहिए। समाज में जाकर वास्तविक परिवर्तन लाना ही शिक्षा का उद्देश्य है और समाज कार्य विभाग इसके लिए अपनी भूमिका का सार्थक निर्वहन कर रहा है।
डीन छात्र कल्याण प्रो. वी.के. शर्मा ने भी इस पहल की सराहना की। उनका कहना था कि विश्वविद्यालय ने छात्रों को केवल शिक्षा का दायरा नहीं दिया, बल्कि सामाजिक जिम्मेदारी निभाने का अवसर भी दिया है। इससे छात्रों का आत्मविश्वास बढ़ेगा और वे अपने ज्ञान का उपयोग व्यावहारिक जीवन में कर पाएँगे।
इस अवसर पर निदेशक प्रो. राकेश द्विवेदी ने अपने स्वागत भाषण में उपस्थित सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए सेवा दूतों की जिम्मेदारियों पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि महिला स्वास्थ्य अब भी सामाजिक उपेक्षा का शिकार है। ग्रामीण इलाकों में माहवारी स्वच्छता, कुपोषण और प्रसव पूर्व देखभाल की कमी गंभीर समस्या है। शहरी क्षेत्रों में भी व्यस्त जीवनशैली और मानसिक तनाव के कारण महिलाएँ स्वास्थ्य को लेकर लापरवाह रहती हैं। उन्होंने कहा कि सेवा दूत केवल स्वास्थ्य संबंधी जानकारी ही नहीं देंगे, बल्कि सामाजिक परिवर्तन के वाहक भी बनेंगे। वे नुक्कड़ नाटकों, कार्यशालाओं और संवाद कार्यक्रमों के जरिए लोगों तक पहुँचेंगे। उनका लक्ष्य होगा कि महिलाएँ अपनी सेहत के प्रति सजग हों और परिवारों में स्वस्थ जीवनशैली की शुरुआत हो।
कार्यक्रम में सेवा दूतों ने सामूहिक शपथ भी ली। उन्होंने वचन दिया कि वे नारी स्वास्थ और परिवार के सशक्तिकरण के लिए समर्पित रहेंगे, उनसे जुड़ी भ्रांतियों को दूर करेंगे और हर वर्ग तक सही जानकारी पहुँचाएँगे। सेवा दूतों का कहना था कि वे इस अभियान को केवल विश्वविद्यालय तक सीमित नहीं रखेंगे, बल्कि समाज के हर कोने में पहुँचाने का प्रयास करेंगे।
सेवा दूत बने अविनाश, नेहा, रवनीत, शाश्वत, हुजैफ़ा, तनु, अहमद, ममता, मयंक, विनीता, शुधांशु, निरंजन, उदिता, मुकुल, अंजलि सिंह, मनीष, फ़ाज़िल, आकृति, नीरज, ख़ुसरो निज़ामी ने इसे प्रेरणादायक बताते हुए कहा कि सेवा दूत बनना केवल हमारी जिम्मेदारी नहीं बल्कि गर्व की बात है। उनका मानना है कि महिला स्वास्थ्य को लेकर समाज में बहुत सी गलत धारणाएँ फैली हैं। जब हम छात्र आगे बढ़कर इस पर बात करेंगे तो बदलाव अवश्य आएगा।
लखनऊ विश्वविद्यालय की यह पहल बताती है कि शिक्षा संस्थान केवल डिग्री देने का केंद्र नहीं, बल्कि समाज में जागरूकता और परिवर्तन के प्रेरक भी हैं। आने वाले समय में सेवा दूतों का काम किस तरह परिणाम लाता है, यह देखना दिलचस्प होगा, लेकिन फिलहाल इतना तय है कि विश्वविद्यालय ने महिला स्वास्थ्य जैसे गंभीर मुद्दे पर एक नई चेतना जगाने का बीड़ा उठाया है। विश्वविद्यालय परिसर में आयोजित इस कार्यक्रम में बड़ी संख्या में छात्र-छात्राएँ, शोधार्थी और शिक्षक शामिल हुए।












