Pakistan On US attacks in Iran: मझधार में फंसा पकिस्तान, ईरान या अमेरिका किसके साथ जाये पाक? ट्रम्प की नोबेल चांह पर भी घिरे बदल!

Pakistan On US attacks in Iran: पकिस्तान के सेना प्रमुख फील्ड मार्शल आसिम मुनीर के ट्रम्प के साथ व्हाइट हाउस में लंच करने के बाद पाकिस्तान के हुक़्मरान उनपर फ़िदा है। पाक का ट्रम्प प्रेम इतना बढ़ चुका है कि उन्होंने उनके लिए नोबेल पुरस्कार तक की मांग कर ली है। पकिस्तान अमेरिका को लुभाने में इतना मशगूल हो गया कि उपप्रधानमंत्री इशाक डार के हस्ताक्षर वाला एक सिफारिशी पत्र नॉर्वे की नोबेल शांति पुरस्कार समिति को भेज भी दिया। हालाँकि पकिस्तान के पत्र से कुछ ख़ास नहीं होने वाला, नोबेल समिति की अपनी एक प्रक्रिया है, जिसके आधार पर वो तय करते है कि पुरस्कार किसे दिया जाये और किसे नहीं। लेकिन हर जगह अपनी जगहसाई कराने वाले पकिस्तान को कुछ अतरंगी किये बिना नींद कहां आती है। वैसे तो दुनिया में कोई भी पकिस्तान को कुछ ख़ास सीरियस नहीं लेता, जब तक उसका अपना फ़ायदा न हो। पर इस बार उनके अपने लोग ही पाकिस्तान से बिफर गए है। ईरान-इजराइल के बीच चल रहे तनाव में घुसकर अमेरिका ने जो हमला किया उसकी आंच अब पाकिस्तान तक पहुँच चुकी है और ट्रम्प के नोबेल के सपने पर रोड़ा बन रही है।

ईरान और इजराइल के बीच चल रहा विवाद अब बहुत बढ़ चुका है। सबको पता है कि मिडिल ईस्ट में वर्चस्व की लड़ाई के अंदर अमेरिका अपना फ़ायदा खोजता रहा है। हथियारों के व्यापर से लेकर अपने भौकाल तक सब जगह अमेरिका मौका देखता है। हालाँकि अमेरिका कभी नहीं चाहता कि कोई देश नयी परमाणु शक्ति के रूप में उभरे पर ईरान को लेकर US थोड़ा ज्यादा आक्रामक हो जाता है। ट्रम्प का कहना है कि ईरान मिडिल ईस्ट का गुंडा है, और अगर वो परमाणु सयंत्र हासिल कर लेता है तो दुनिया में आतंकवाद और तबाही और बढ़ सकती है। पहले G7 के बीच ट्रम्प की ख़ामेनेई को खुली चुनौती और फिर रविवार को अमेरिका की ओर से ईरान के फोर्दो, इस्फहान और नतांज में स्थित परमाणु ठिकानों पर हमला किया गया। इसके बाद ये स्पष्ट हो गया कि अमेरिका किसी भी हालात में ईरान को परमानु संयत्र हासिल करने नहीं देगी।

ईरान पर अमेरिका के हमले के साथ ही पाकिस्तान में भी खलबली मंच गयी। चूँकि पकिस्तान, ईरान और इजराइल वार के बीच खुलकर ईरान का समर्थन कर रहा था। ईरानी शरणार्थियों के लिए अपने दरवाजे खोल दिए थे। असीम मुनीर ने साफ़-साफ़ कहा था कि हम ईरान की हर संभव मदद करेंगे, पर बेचारे पाक की किस्मत हमेशा से ख़राब रही है। कभी चीन-अमेरिका के बीच फंस जाता है तो कभी ईरान अमेरिका के बीच…और इस बार भी कुछ यही हुआ। भारत-पाक तनाव के बीच शहबाज़ शरीफ, और आसिम मुनीर ने ट्रम्प की जमकर तारीफ की थी, जिसका नतीजा ये निकला कि असीर मुनीर को अमेरिकी राष्ट्रपति ने लंच के लिए व्हाइट हाउस बुलाया। व्हाइट हाउस में लंच के बाद पाक सरकार ने ट्रम्प के लिए नोबेल प्राइज की मांग कर दी। अब हो सकता है शायद मुनीर की खातिरदारी ज्यादा अच्छी लग गयी हो। असीम मुनीर को लंच कराने के कुछ दिन बाद ही ट्रम्प ने ईरान पर हमला कर दिया और फस गया बेचारा पकिस्तान।

पाकिस्तान सरकार द्वारा ट्रम्प के लिये मांगे जाने वाले नोबेल पुरस्कार पर सवाल खड़ा करते हुए जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम (एफ) के प्रमुख मौलाना फजलुर रहमान ने कहा कि सरकार को यह फैसला वापस लेना चाहिए। ट्रंप का शांति का दावा झूठा है; नोबेल पुरस्कार की सिफारिश वापस की जाए।” उन्होंने कहा कि ट्रंप की हाल की मुलाकात और आर्मी चीफ फील्ड मार्शल आसिम मुनीर के साथ लंच ने पाकिस्तानी हुक्मरानों को इतना खुश कर दिया कि उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति को नोबेल के लिए नामित किया। ट्रंप ने फलस्तीन, सीरिया, लेबनान और ईरान पर इजरायली हमलों का समर्थन किया, यह शांति का प्रतीक कैसे हो सकता है? अफगानों और फलस्तीनियों के खून से सने अमेरिका के हाथों के साथ, वह शांति का दावा कैसे कर सकते हैं?

इसके अलावा सोशल मीडिया पर भी पकिस्तान की जनता ट्रम्प के लिए नोबेल मांगे जाने पर अपने ही नेताओं को कोस रही है। इसका असर ये हुआ कि सरकार अब ईरान में परमाणु ठिकानो पर हुए अमेरिकी हवाई हमलों के बाद क्षेत्रीय स्थिति पर चर्चा के लिए अपने शीर्ष सुरक्षा निकाय के साथ एक आपात बैठक करने जा रही है। प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के सेना प्रमुख फील्ड मार्शल आसिम मुनीर और पकिस्तान के शीर्ष नागरिक और सैन्य नेतृत्व इस समिति में शामिल होने वाले है। सम्भावना है कि इस बैठक में असीम मुनीर उनके और ट्रम्प के बीच हुई बात को साझा करें। बस देखने वाला ये होगा कि मुनीर कौन सी नयी थ्योरी अपने पिटारे से निकलते है।

अब समझ ये नहीं आ रहा कि पकिस्तान किसको मूर्ख बना रहा है, खुद को, अपनी जनता को या समूचे विश्व को। खैर सफाई देने से कुछ ख़ास होने वाला नहीं है। अमेरिका और चीन की बात मानने के सिवाय पाक के पास और कोई और रास्त है भी नहीं, और रही बात ईरान की, तो हर बार पाक को उसका समर्थन मिलता आया है… तो बना के तो चलना ही पड़ेगा। बांकी रही बात नोबेल पुस्कार की तो पकिस्तान, अफगानिस्तान में शान्ति के लिए भी ट्रम्प को क्रेडिट देता आया है। पहले कार्यकाल में भी ट्रम्प को नोबेल की मांग कर चुका है। ट्रम्प खुद ग्लोबली कहते आये है कि ओबामा नोबेल के हकदार नहीं थे। ट्रम्प की महत्वाकांक्षा कम होने का नाम नहीं ले रही। हो सकता है कोई और देश ट्रम्प को नोबेल का हक़दार न मानता हो, शायद इसीलिए उन्होंने मुनीर का विकल्प खोजा।

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