
जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत सरकार द्वारा पाकिस्तानी नागरिकों को लेकर लिए गए कड़े फैसलों का असर दो निर्दोष पाकिस्तानी महिलाओं – मीनल खान और रक्षंदा जहूर – पर भी पड़ता दिखाई दे रहा है। इन महिलाओं की शादी भारत में हुई है, लेकिन अब उन्हें अपने परिवार और ससुराल को छोड़कर वतन लौटने का डर सता रहा है।
मीनल खान: एक नई शुरुआत पर संकट के बादल
पाकिस्तान की रहने वाली मीनल खान ने बीते वर्ष 24 मई को जम्मू के सीआरपीएफ जवान मुनीर अहमद से ऑनलाइन निकाह किया था। शादी के बाद हाल ही में वह जम्मू की भलवाल तहसील के राब्ता हंडवाल गांव स्थित अपने ससुराल पहुंची थीं।
लेकिन पहलगाम हमले के बाद भारत सरकार द्वारा कुछ पाकिस्तानी नागरिकों के वीजा रद्द करने के फैसले ने मीनल की नई जिंदगी पर ग्रहण लगा दिया है। मीनल को अभी तक भारतीय नागरिकता नहीं मिली है, और ऐसे में उन्हें पाकिस्तान लौटने का डर सता रहा है।
हालांकि उनके पति मुनीर अहमद ने भरोसा जताया है कि ऐसा कुछ नहीं होगा। उन्होंने बताया,
“हमने मीनल की नागरिकता के लिए सभी ज़रूरी दस्तावेज प्रशासन को सौंप दिए हैं। उन्हें समय भी मिला हुआ है, जल्द ही नागरिकता मिल जाएगी। जो आदेश जारी हुआ है, वह पर्यटकों और व्यापारियों के लिए है, मीनल पर लागू नहीं होता।“
एसएचओ घरोटा सुनील शर्मा ने भी स्पष्ट किया कि
“अभी तक मीनल को वापस भेजने का कोई आदेश प्राप्त नहीं हुआ है। अगर कोई निर्देश आएगा, तो उसके अनुसार कार्रवाई की जाएगी।“
रक्षंदा जहूर : 36 साल बाद फिर खड़ा हुआ बिछड़ने का डर
दूसरी तरफ, पाकिस्तान के इस्लामाबाद की रहने वाली रक्षंदा जहूर, जो पिछले 36 साल से जम्मू में रह रही हैं, अब खुद को असुरक्षित महसूस कर रही हैं।
रक्षंदा की शादी 1988 में जहूर अहमद से हुई थी, जो जम्मू के रजिडेंसी रोड स्थित करबला इलाके के निवासी हैं। रक्षंदा के माता-पिता और भाई अब दुनिया में नहीं हैं, और उनका पाकिस्तान में कोई निकट संबंधी नहीं बचा है।
उनके पति जहूर अहमद ने बताया:
“पत्नी लांग टर्म वीजा पर रह रही हैं, और नागरिकता के लिए आवेदन भी कर चुके हैं। लेकिन अब सरकार के फैसले से हम परेशान हैं, क्योंकि अगर उन्हें वापस भेजा गया, तो वह पाकिस्तान में बिल्कुल अकेली होंगी। यह किसी को शरणार्थी बनाने जैसा होगा। हम सरकार से अपील करेंगे कि मानवीय आधार पर निर्णय लें।“
सरकार से अपील : ‘कानून के साथ इंसानियत भी ज़रूरी’
मीनल और रक्षंदा जैसे मामलों ने यह सवाल उठाया है कि सुरक्षा नीति और मानवीय आधार में संतुलन कैसे बनाया जाए। आतंकी घटनाओं के मद्देनज़र वीजा नीति को सख्त करना ज़रूरी हो सकता है, लेकिन ऐसे लोगों को राहत दी जानी चाहिए जो पारिवारिक संबंधों के कारण भारत में रह रहे हैं और जिनका कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है।
अब उम्मीद की जा रही है कि भारत सरकार इस स्थिति को समझते हुए व्यक्तिगत मामलों की समीक्षा करेगी और ऐसे निर्दोष लोगों के लिए विशेष छूट या प्रक्रिया की व्यवस्था करेगी।