
लखीमपुर खीरी। जिले के मोहम्मदी तहसील के गुलौली गांव के प्रगतिशील किसान प्रमेश सिंह ने परंपरागत खेती से हटकर गन्ने के साथ प्याज की अंतरवर्ती फसल (इंटरक्रॉपिंग) कर क्षेत्र में एक नई मिसाल कायम की है। मेरठ यूनिवर्सिटी से कीटविज्ञान विषय में परास्नातक कर चुके प्रमेश सिंह ने अपने अनुभव और वैज्ञानिक सोच के सहारे खेती को लाभ का व्यवसाय बनाने की दिशा में यह नवाचार किया।
कैसे शुरू हुई यह खेती?
प्रमेश सिंह ने अपने एक एकड़ गन्ने के खेत में प्याज की खेती करने का प्रयोग किया। इसके लिए सबसे पहले उन्होंने खेत की गहरी जुताई कर, अंतिम जुताई के समय लगभग 100 क्विंटल सड़ी हुई गोबर की खाद खेत में मिलाई। गन्ने की पंक्तियों के बीच 120 सेमी की दूरी रखी गई ताकि उनके बीच में आसानी से प्याज की फसल रोपी जा सके।
प्याज की नर्सरी और रोपाई की प्रक्रिया
प्याज की खेती के लिए करीब 4 से 4.5 किलो बीज की आवश्यकता पड़ी। इन बीजों से तैयार की गई नर्सरी लगभग 45 से 50 दिनों में रोपाई के लिए तैयार हो गई। जब प्याज की पौध तैयार हो गई तो गन्ने की पंक्तियों के बीच बने खाली स्थानों में रोपाई की गई।

उर्वरक और सिंचाई प्रबंधन
प्याज की बेहतर बढ़वार के लिए खेत में अलग से 75 किलो एनपीके तथा 30 किलो पोटाश खाद का प्रयोग मिट्टी में अच्छी तरह मिलाया गया। रोपाई के 30 से 35 दिन बाद खेत में खरपतवार नियंत्रण के लिए निराई की गई। समय-समय पर हल्की सिंचाई से फसलों की नमी बरकरार रखी गई। इसके अतिरिक्त, रोपाई के 45 दिन बाद खेत में 5 किलो गंधक और 20 किलो यूरिया का प्रयोग कर पौधों को पोषण दिया गया।
परिणाम और प्रेरणा
यह प्रयोग मोहम्मदी तहसील के भोगियापुर से कैम्हारा रोड के पास स्थित प्रमेश सिंह के खेतों में किया गया। इस पद्धति से प्रमेश सिंह को कम लागत में अधिक उत्पादन मिला। गन्ने के साथ प्याज की खेती से खेत का पूरा उपयोग हो सका और दोनों फसलों से दोगुना मुनाफा प्राप्त हुआ।
प्रमेश सिंह की यह पहल दूसरे किसानों के लिए प्रेरणादायक बन गई है। खेती में नवाचार और वैज्ञानिक तकनीकों के सही इस्तेमाल से खेती को लाभकारी व्यवसाय बनाया जा सकता है- प्रमेश सिंह इसका जीवंत उदाहरण हैं।