
नई दिल्ली। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने ‘सूचना का अधिकार अधिनियम 2005’ के 20 साल पूरे होने पर कहा कि आरटीआई ने शुरुआत में पारदर्शिता और जवाबदेही के नए युग की नींव रखी थी, लेकिन पिछले 11 वर्षों में केंद्र सरकार ने इस कानून को व्यवस्थित रूप से कमजोर कर लोकतंत्र और नागरिकों के अधिकारों को खोखला कर दिया है।
खरगे ने अपने एक्स पोस्ट में लिखा कि 20 साल पहले कांग्रेस नेतृत्व वाली संप्रग सरकार ने तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के मार्गदर्शन में आरटीआई अधिनियम लागू किया था। यह अधिनियम भ्रष्टाचार, सरकारी जवाबदेही और सार्वजनिक हित की रक्षा के लिए एक मजबूत उपकरण था, लेकिन 2014 के बाद इसके मूल उद्देश्य पर लगातार हमला हुआ।
उन्होंने कहा की साल 2019 में मोदी सरकार ने अधिनियम को बदल दिया और सूचना आयुक्तों के कार्यकाल और वेतन पर नियंत्रण कर स्वतंत्र अधिकारी को नौकरशाहों जैसा बना दिया। 2023 में लागू हुए डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण कानून ने आरटीआई के सार्वजनिक हित वाले हिस्से को प्रभावित किया और भ्रष्टाचार की जांच में बाधा डाली।
केंद्रीय सूचना आयोग में मुख्य सूचना आयुक्त के पद पर कोई नियुक्त नहीं है और वर्तमान में आठ पद 15 महीनों से खाली हैं, जिससे अपील प्रक्रिया धीमी हो गई है और हजारों लोग न्याय पाने से वंचित हैं।
उन्होंने दावा किया कि सरकार ने कोविड महामारी, राष्ट्रीय सर्वेक्षण 2017-18, कृषि सर्वेक्षण 2016-2020 और पीएम केयर फंड के दौरान मौतों और आंकड़ों की जानकारी छुपाई, जिससे जवाबदेही से बचा जा सके।
कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा कि आरटीआई अधिनियम के मूल उद्देश्य को बचाना और नागरिकों को उनकी जानकारी तक पहुंच सुनिश्चित करना अब और जरूरी हो गया है।