साक्ष्य नहीं, फिर भी सजा : बिना सबूत रेप का दोषी ठहराया गया व्यक्ति, हाईकोर्ट ने लगाई फटकार

देहरादून। नाबालिग से रेप के एक मामले में उत्तराखंड हाईकोर्ट ने निचली अदालत के फैसले पर कड़ी नाराजगी जताई है। अदालत ने कहा कि आरोपी को बिना किसी ठोस साक्ष्य के दोषी ठहराना न्याय के सिद्धांतों के विपरीत है। यह मामला “अपर्याप्त साक्ष्य का नहीं, बल्कि साक्ष्य ही न होने का” है।

दरअसल, निचली अदालत ने आरोपी रामपाल को 20 साल की सजा सुनाई थी, जबकि न तो अपराध का स्थान साबित हुआ, न कोई प्रत्यक्षदर्शी मिला और न ही मेडिकल रिपोर्ट में किसी तरह की चोट या रेप के प्रमाण मिले।

मामला उत्तरकाशी जिले के जखोल गांव का है, जहां जनवरी 2022 में रामपाल को एक नाबालिग लड़की को बहला-फुसलाकर ले जाने और दुष्कर्म के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। विशेष सत्र न्यायाधीश ने उसे पॉक्सो और आईपीसी की धारा 376 के तहत दोषी करार दिया था।

हालांकि, पीड़िता ने भी अदालत में रेप से इनकार किया और कहा कि उसके साथ ऐसी कोई घटना नहीं हुई। इसके बावजूद ट्रायल कोर्ट ने उसे दोषी ठहराया।

हाईकोर्ट ने पाया कि ट्रायल कोर्ट ने जिस दस्तावेज पर भरोसा किया, वह रिकॉर्ड में था ही नहीं। यहां तक कि पीड़िता का 164 सीआरपीसी बयान भी साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत नहीं किया गया था।

मुख्य न्यायाधीश जी. नरेंदर और न्यायमूर्ति आलोक महरा की खंडपीठ ने इसे “चौंकाने वाला निर्णय” बताया और आरोपी रामपाल को जमानत पर रिहा करने के आदेश जारी किए।

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