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Sarojini Naidu : सरोजिनी नायडू भारतीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, कवयित्री और राजनीतिज्ञ थीं।जिन्हें “नाइटिंगेल ऑफ इंडिया” के नाम से भी जाना जाता है। उनका जन्म 13 फरवरी 1879 को हैदराबाद में हुआ था। सरोजिनी नायडू का जीवन कई महत्वपूर्ण पहलुओं से भरा हुआ था, और उनका योगदान भारतीय समाज, साहित्य और स्वतंत्रता संग्राम में अतुलनीय है।
क्यों मिला “नाइटिंगेल ऑफ इंडिया” का टैग
सरोजिनी नायडू को उनके साहित्यिक योगदान और प्रेरक भाषणों के कारण “नाइटिंगेल ऑफ इंडिया” के रूप में सम्मानित किया गया। उनके शब्दों में गूढ़ता, भावनाएँ और संगीतात्मकता का अद्भुत संयोजन था, जिससे वे भारतीय जनता के दिलों में एक खास जगह बना सकीं।
सरोजिनी नायडू के पिता, अघोरेनाथ चट्टोपाध्याय, एक प्रसिद्ध विद्वान और हैदराबाद के निजाम कॉलेज में प्रिंसिपल थे। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा हैदराबाद से ही प्राप्त की, और फिर मद्रास विश्वविद्यालय, लंदन के किंग्स कॉलेज और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के गिरटन कॉलेज से शिक्षा ग्रहण की। वे एक मेधावी छात्रा थीं और बहुत कम उम्र में उन्होंने कविता लिखना शुरू कर दिया था।
सरोजिनी नायडू ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे महात्मा गांधी के नेतृत्व में चल रहे आंदोलनों से जुड़ीं और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में सक्रिय रूप से शामिल हुईं। उन्होंने भारतीय महिलाओं को स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के लिए प्रेरित किया। वे भारतीय जनता को जागरूक करने के लिए अपने ओजस्वी भाषणों और कविताओं का उपयोग करती थीं।
उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा। खासकर, 1942 में ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ के दौरान वे गिरफ्तार हुईं और उन्हें गिरफ्तार कर तामिलनाडु की जेल में डाला गया।
सरोजिनी नायडू की कविताओं में भारतीय संस्कृति, रंगीन चित्रण और प्राकृतिक सौंदर्य का अद्भुत मिश्रण था। उनकी कविताएँ लयात्मक और संगीतात्मक होती थीं, जिस कारण उन्हें “नाइटिंगेल ऑफ इंडिया” कहा जाता है। उनकी कविताओं में भारतीयता की गूढ़ता और मानवीय संवेदनाओं का सुंदर वर्णन किया गया। उनकी प्रमुख काव्य रचनाएँ जैसे “In the Bazaars of Hyderabad”, “The Bird of Time”, “The Queen’s Rival” और “The Golden Threshold” आज भी भारतीय साहित्य में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं।
सरोजिनी नायडू महिलाओं के अधिकारों के लिए भी सक्रिय रूप से काम कर रही थीं। उन्होंने महिलाओं के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य और स्वतंत्रता की वकालत की। उनका मानना था कि महिलाओं को समाज में अपनी भूमिका को समझने और उसे पूरा करने का अवसर मिलना चाहिए।
स्वतंत्रता संग्राम के बाद, सरोजिनी नायडू को भारत के यूनाइटेड प्रॉविंस (वर्तमान उत्तर प्रदेश) का राज्यपाल नियुक्त किया गया। वे भारत की पहली महिला राज्यपाल थीं, जो उनके राजनीतिक और प्रशासनिक कौशल को दर्शाता है। उनका यह कार्यकाल एक ऐतिहासिक मील का पत्थर था।
2 मार्च को सो गई थीं रात की रानी सरोजिनी नायडू
सरोजिनी नायडू का निधन 2 मार्च 1949 को हुआ। उनका निधन भारतीय राजनीति, साहित्य और समाज के लिए एक बड़ा नुकसान था, लेकिन उनकी विरासत आज भी जीवित है।
सरोजिनी नायडू का जीवन स्वतंत्रता संग्राम, साहित्य और महिला सशक्तिकरण के क्षेत्रों में एक प्रेरणा स्रोत है। उनका योगदान न केवल भारतीय राजनीति और साहित्य में है, बल्कि वे भारतीय समाज के सामाजिक सुधारक के रूप में भी महत्वपूर्ण थीं। उनकी कविताएँ और उनके विचार आज भी भारतीय संस्कृति और राजनीति में प्रभाव डालते हैं।