
नबी अहमद
रूपईडीहा/बहराइच। नेपाल में भारत विरोध स्वर निरंतर जारी है। नेपाल ने अभी हाल ही में भारतीय भूमि को अपना बताकर नक्सा संसद में पास कर दिया। वहीं नेपाल ने भारत नेपाल की 1880 किलो मीटर लम्बी खुली सीमा पर चीन के इशारे पर चीनी भाषा मे लिखे टेन्ट में अपने जवानों को तैनात कर दिया है। भारी संख्या में नेपाली एपीएफ के जवान हथियारों से लैस है। देश की आजादी से अब तक बॉर्डर पर एक भी एपीएफ जवानों की चैकियां नही बनाई थी। जो एपीएफ के जवान नेपाल के पहाड़ी इलाको में थे उन सभी को अब बॉर्डर पर तैनात किया गया है। जबकि लॉक डाउन से पहले इस बॉर्डर पर नेपाल की एक भी चैकी नही थी। जबकि भारत नेपाल का सम्बंध रोटी बेटी का है।
मगर नेपाल की के0पी0 शर्मा ओली की सरकार चीन के इशारे पर कम कर रही है। चीन के इस हथकंडे को लेकर नेपाल के व्यापारी भी भयभीत है। नेपाली व्यापारी भारत से चावल, दाल, गेहूं तेल व अन्य गृहोपयोगी सामान, बिल्डिंग मैटेरियल का स्टाक करना शुरू कर दिया है। नेपाल के व्यापरियों को डर है कि कहीं भारत सरकार नेपाल बॉर्डर को पूर्ण रूप से सील न कर दे। इसे लेकर नेपाली व्यापारियों के साथ साथ नेपाल की जनता भी सहमी हुई है। सबसे बड़ा सवाल यह उठता की आखिर नेपाल ने बॉर्डर पर अपने जवानों को चीनी टेन्ट में क्यों तैनात किया है इसके पीछे मकसद क्या है।
लाक डाउन के समय ये दोनों भारत को चिढ़ाने वाले कार्य चीन के इशारे पर नेपाल ने किए है। चीन व नेपाल दोनो देशों की सरकार साम्यवादी विचार धारा से ओतप्रोत है। माओवादी पाटी के अध्यक्ष पुष्प कमल दहल प्रचण्ड व एकीकृत माक्र्सवादी लेनिनवादी के अध्यक्ष केपी शर्मा ओली पूर्ण रूपेण चीन के हाथों खेल रहे है। जबकि संकट के समय भारत ने नेपाल का भरपूर सहयोग किया है। नेपाल मे आये गत दिनों के भूकम्प से नेपाल मे भारी तबाही हुई थी। उस समय भारत ने चिकित्सीय सहायता सहित करोड़ों की सामग्री नेपाल को दी थी। आज भी नेपाल मे चल रहे विकास कार्य भारत की मदद से चल रहे है। बावजूद इसके नेपाल चीन के हाथों का खिलौना बना हुआ है।











