
Bihar Politics : बिहार में इस वक्त आस्था और राजनीति का अनूठा संगम देखने को मिल रहा है। एक ओर विधानसभा चुनाव की गहमागहमी है, तो दूसरी ओर छठ पर्व की धूम है। यह मेल दोनों पक्षों के बीच के पुराने मतभेदों को भुलाकर एक सामाजिक और धार्मिक पर्व पर मिलकर श्रद्धा व्यक्त करने का उदाहरण बन रहा है।
छठ पर्व के दौरान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का चिराग पासवान के घर पहुंचकर खरना प्रसाद ग्रहण करना इस नए राजनीतिक परिप्रेक्ष्य का प्रतीक है। पिछले पांच साल में यह पहली बार है जब नीतीश कुमार चिराग के आवास पहुंचे, और इस मुलाकात को संकल्प और सद्भाव का संकेत माना जा रहा है। चिराग ने अपने घर की तस्वीरें सोशल मीडिया पर साझा कर इस संबंध को सार्वजनिक किया है। इससे यह संदेश भी जाता है कि राजनीतिक मतभेदों के बावजूद आस्था का पर्व लोगों को एक साथ लाने का माध्यम बन सकता है।
बिहार के मुख्यमंत्री पटना के अपने आवास पर भी छठ पूजा में भागीदारी कर रहे हैं, वहीं सासाराम में उपेंद्र कुशवाहा की पत्नी स्नेहलता पहली बार इस पर्व को मनाने सरेआम मैदान में हैं। भाजपा नेताओं में भी उत्साह है; धर्मेंद्र प्रधान, सम्राट चौधरी, जायसवाल जैसे नेताओं ने अपने-अपने घरों में छठ की पूजा की।
यहां तक कि दिल्ली में भी बिहार की इस परंपरा का प्रभाव दिख रहा है। मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने बीजेपी नेता के आवास पर पहुंचकर खरना पूजा में हिस्सा लिया। यह दिखाता है कि बिहार का यह सामाजिक उत्सव अब राष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी पहचान बना रहा है।
अच्छी बात यह है कि इस पर्व पर सामाजिक समरसता की भी मिसाल देखने को मिली। मुजफ्फरपुर में RJD के विधायक मोहम्मद इजरायल मंसूरी ने खुद कुदाल उठाकर छठ घाट बनाने में श्रमदान किया। मुस्लिम विधायक का यह कदम सामाजिक समरसता और साझा संस्कृति का प्रतीक बन गया है, जो यह दिखाता है कि धार्मिक और सामाजिक एकता के लिए सभी समुदाय मिलकर काम कर सकते हैं।
यह माहौल साबित करता है कि बिहार में परंपराओं और धर्म के नाम पर भेदभाव से ऊपर उठकर, श्रद्धा और सामाजिक सद्भावना ही असली ताकत है। यह नजारा न केवल चुनावी माहौल को प्रभावित कर रहा है, बल्कि सामाजिक सौहार्द और साझा संस्कृति की दिशा में भी एक सकारात्मक संकेत है।
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