
- दुधवा में बढ़ी सफारी सवारी, महेशपुर रेंज और होमस्टे से बढ़ी ग्रामीण आमदनी
- गंगा डॉल्फ़िन, सारस और घड़ियाल संरक्षण में दिख रहे सकारात्मक नतीजे
- पुरानी रेलवे लाइन पर शुरू हुई विस्टाडोम सफारी ट्रेन बनी पर्यटकों की पसंद
- विलुप्त हो रहे जीव-जन्तुओं के संरक्षण की दिशा में महत्वपूर्ण कदम
लखनऊ। राष्ट्रीय वन्यजीव दिवस पर उत्तर प्रदेश ने एक नई मिसाल पेश की है। यहाँ पर्यटन अब सिर्फ़ जंगल देखने का ज़रिया नहीं, बल्कि संरक्षण और रोज़गार का साधन बन रहा है। 2022 में बने उत्तर प्रदेश ईको-टूरिज़्म डेवलपमेंट बोर्ड ने वन, पर्यटन और अन्य विभागों को जोड़कर ऐसा मॉडल तैयार किया है, जहाँ हर सफर जंगल को मज़बूत कर रहा है, स्थानीय लोगों की आजीविका बढ़ा रहा है। और संकटग्रस्त या विलुप्त हो रही प्रजातियों को नया जीवन दे रहा है।
दुधवा टाइगर रिज़र्व
दुधवा इस प्रयास का सबसे बड़ा केंद्र है। यह भाभर और तराई के बीच फैला इलाका है। जहाँ हिमालय से आने वाला पानी ज़मीन में समा जाता है और फिर दलदली मैदानों में बाहर आता है। यही पानी बारहसिंगा, बाघ, हाथी और दोबारा बसाए गए एक सींग वाले गैंडे का जीवन सँभालता है। 2024 और 2025 में यहाँ वैज्ञानिक निगरानी बढ़ी और चार गैंडों पर रेडियो कॉलर लगाए गए। दुधवा में साल के घने जंगल, ऊँची घास और 86 आर्द्रभूमियाँ हैं, जो मछलियों, पक्षियों और सरीसृपों को घर देती हैं।

कतरनिघाट वाइल्डलाइफ सेंचुरी
गिरवा नदी के किनारे बसा कतरनिघाट दुर्लभ नदी और जंगल का संगम है। यहाँ घड़ियाल धूप सेंकते दिखते हैं और गंगा डॉल्फ़िन पानी से ऊपर आती हैं। नदी किनारे उगने वाले जैत के पेड़ इस जगह को और खास बनाते हैं। किशनपुर के साथ मिलकर यह इलाका बाघ और बारहसिंगा का सुरक्षित रास्ता है। यहाँ नाव से सफारी करते हुए पर्यटक नदी के जीव-जंतु देख सकते हैं।
पर्यटन का बढ़ता असर
दुधवा आने वाले पर्यटकों की संख्या 2021 में 23,187 थी, जो 2024–25 में बढ़कर 64,436 हो गई। सफारी राइड्स भी 9,599 से बढ़कर 18,312 तक पहुँच गईं। विस्टाडोम जंगल सफारी ट्रेन अब पर्यटकों की नई पसंद है। यह ट्रेन पुरानी ब्रिटिश कालीन रेल लाइन पर चलती है, इसलिए नई लाइन बनाने की ज़रूरत नहीं पड़ी और जानवर इसके शोर से परिचित हैं। काँच की छत वाली यह कोच सालभर जंगल का नज़ारा देती है, यहाँ तक कि मानसून में भी जब जीप सफारी बंद रहती है। महेशपुर रेंज में अब सालभर बफ़र सफारी होती है और नौ गाँवों में बने 24 होमस्टे पर्यटकों को ठहरने की सुविधा देते हैं, जिससे आमदनी सीधे स्थानीय लोगों तक पहुँचती है।
वेटलैंड और पक्षी संरक्षण
लखनऊ के आसपास और गंगा के मैदानों में फैली झीलें अभी भी सारस, उत्तर प्रदेश के राज्य पक्षी, का घर बनी हुई हैं। नवाबगंज पक्षी विहार और दूसरी संरक्षित झीलों को जिम्मेदार बर्डवॉचिंग के लिए बढ़ावा दिया जा रहा है, ताकि गाँव के लोग झील-पोखरों और पानी वाले इलाकों की देखभाल करें।

उत्तर प्रदेश के पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री, जयवीर सिंह ने बताया कि, “उत्तर प्रदेश में ईको-टूरिज़्म सिर्फ़ पर्यटन नहीं, बल्कि संरक्षण और ग्रामीण विकास का साधन है। दुधवा से लेकर नवाबगंज तक हमारे जंगल, झील और तराई बेल्ट अब स्थानीय लोगों की भागीदारी से और मज़बूत हो रहे हैं।”
प्रमुख सचिव पर्यटन एवं संस्कृति, मुकेश कुमार मेश्राम ने कहा कि,“तीन साल में पर्यटकों की संख्या तीन गुना और सफारी लगभग दोगुनी हो गई है। आँकड़े साबित करते हैं कि जिम्मेदार पर्यटन और संरक्षण साथ-साथ बढ़ सकते हैं।”
पर्यटन विभाग, निदेशक ( ईको ), प्रखर मिश्रा बताते है कि, “हमने पुरानी रेल लाइन का इस्तेमाल किया, महेशपुर जैसे बफ़र मार्ग खोले और होमस्टे बनाए। अब ईकोटूरिज़्म प्रजातियों के संरक्षण और स्थानीय खुशहाली का साधन बन गया है।”
सिज़र मादा – दुधवा नेशनल पार्क
माथे पर बनी कैंची जैसी काली धार के कारण इस बाघिन का नाम सिज़र रखा गया है। दुधवा की यह मशहूर बाघिन बाकी बाघों की तरह जीपों से नहीं डरती, बल्कि कैमरे के सामने अक्सर पोज़ देती है। नवंबर में यह अपनी दो शावकों के साथ दिखी, जिससे दुधवा का बाघ परिवार और बढ़ गया। बाघ प्रेमियों के लिए सिज़र को देखना दुधवा सफारी का खास अनुभव है।
बेल डंडा मादा – किशनपुर वाइल्डलाइफ सेंचुरी
यह दिग्गज बाघिन किशनपुर को पूरी दुनिया में मशहूर कर चुकी है। सफारी मार्गों पर निडर होकर घंटों तक घूमती है- कई बार 1–2 किलोमीटर तक जीपों के आगे-आगे चलती रहती है। पर्यटक इसे “फोटोग्राफ़र की खुशी” कहते हैं क्योंकि इसकी झलक कई बार 2–3 घंटे तक मिलती है। फिलहाल यह तीन स्वस्थ शावकों की परवरिश कर रही है और किशनपुर का गर्व बनी हुई है।
बजरंग नर (तुली पुलिया नर)- किशनपुर वाइल्डलाइफ सेंचुरी
अपनी विशाल काया और निडर अंदाज़ के लिए मशहूर बजरंग तराई क्षेत्र के सबसे भारी और ताक़तवर बाघों में गिना जाता है। जब यह जंगल में निकलता है तो सबकी नज़र उसी पर टिक जाती है। पर्यटक इसकी रौबदार चाल और ताक़त देखकर हैरान रह जाते हैं।
बेल डंडा शावक–किशनपुर
बेल डंडा मादा के तीनों शावक अपनी माँ की तरह निडर और चंचल होते जा रहे हैं। ये छोटे-छोटे सितारे अब किशनपुर सफारी का नया आकर्षण हैं और यहाँ के बाघ परिवार के भविष्य को मज़बूत बना रहे हैं।
छोटा चार्जर–दुधवा नेशनल पार्क
यह युवा और बेख़ौफ़ नर बाघ अक्सर सफारी जीपों के क़रीब तक आ जाता है और कई बार नकली हमला (मॉक चार्ज) भी करता है। उसका आत्मविश्वास और आकर्षक रूप पर्यटकों के लिए रोमांचक अनुभव बन जाता है।
रॉकेट–पीलीभीत टाइगर रिज़र्व
साल 2025 में रॉकेट तब सुर्खियों में आया जब उसे एक पर्यटक का कैमरा बीन्स बैग मुँह में उठाए देखा गया। चंचल और निडर यह बाघ अब पीलीभीत के सबसे चर्चित बाघों में से एक है।
भ्रमणशील बाघिन – पीलीभीत टाइगर रिज़र्व
यह साहसी बाघिन जंगल की सीमा से बाहर निकलने के लिए मशहूर है। कभी गाँवों की गलियों में घूमते हुए तो कभी गुरुद्वारे की दीवार पर आराम करते हुए इसे देखा गया है। हर बार सुरक्षित जंगल में लौट आना इसे और भी खास बना देता है।
गंगा डॉल्फ़िन – कतरनिघाट वाइल्डलाइफ सेंचुरी
“नदी की जलपरियाँ” कहलाने वाली ये दुर्लभ डॉल्फ़िन कतरनिघाट की शान हैं। नाव सफारी के दौरान जब ये पानी से छलांग लगाती हैं तो पर्यटक रोमांचित हो जाते हैं। साल 2025 में फँसी हुई डॉल्फ़िन को बचाने की सामूहिक पहल ने इनकी बढ़ती संख्या की उम्मीद जगाई है।
सारस क्रेन – सरसई नावर वेटलैंड
उत्तर प्रदेश का राज्य पक्षी सारस अपनी सुंदरता और वफ़ादारी के लिए जाना जाता है। सरसई नावर में जोड़े अक्सर उथले पानी में नाचते दिखते हैं। उनकी लाल गर्दन और गूंजती आवाज़ पर्यटकों को मंत्रमुग्ध कर देती है।
घड़ियाल के बच्चे – नेशनल चंबल सेंचुरी
गर्मी 2025 में चंबल की रेतिली किनारियों से हज़ारों घड़ियाल के बच्चे नदी में उतरे। एक विशाल नर घड़ियाल को अपनी पीठ पर शावकों को बिठाकर तैरते देखना पर्यटकों के लिए अनोखा और यादगार नज़ारा साबित हुआ। यह दृश्य चंबल में वन्यजीव संरक्षण की सफलता और नई पीढ़ी की उम्मीद को भी दिखाता है।
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