
जब भी कोई स्वास्थ्य संकट सामने आता है, डॉक्टर्स हर मोर्चे पर मजबूती से खड़े नजर आते हैं। उनकी सच्ची सेवा भावना और समर्पण ने उन्हें हमारे समाज में भगवान के रूप में स्थापित कर दिया है। लेकिन क्या आपने कभी रुककर सोचा है—जो हमें हर समय बचाते हैं, क्या वे खुद सुरक्षित और मानसिक रूप से स्वस्थ हैं?
भारत में लाखों डॉक्टर, जूनियर और रेजिडेंट मेडिकल प्रोफेशनल्स हर दिन अत्यधिक तनाव, थकान और मानसिक दबाव से जूझ रहे हैं। मरीजों को बचाने के प्रयास में अक्सर वे खुद की मानसिक सेहत की अनदेखी कर बैठते हैं।
नेशनल डॉक्टर्स डे की इस वर्ष की थीम – “Behind the Mask: Caring for Caregivers” – इस चुप्पी को तोड़ने की एक कोशिश है। यह समय है जब हमें केयरगिवर्स यानी डॉक्टरों की देखभाल को प्राथमिकता देने की आवश्यकता है।
चौंकाने वाले आंकड़े: हर 15 दिन में एक आत्महत्या
राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग के अनुसार, 2018 से 2023 तक 119 मेडिकल छात्रों ने आत्महत्या की। इनमें से आधे से अधिक पोस्टग्रेजुएट छात्र थे। यह केवल आंकड़े नहीं, चेतावनी हैं कि मानसिक स्वास्थ्य प्रणाली में गहरी खामियां हैं।
2024 के एक सर्वेक्षण के अनुसार:
- हर तीसरा मेडिकल छात्र आत्महत्या के विचारों से जूझ चुका है।
- 10% ने आत्महत्या की योजना बनाई।
- और 5% ने प्रयास भी किया।
जून 2025 में आत्महत्या की कई खबरें सामने आईं, जहाँ रेजिडेंट डॉक्टर अपने हॉस्टल रूम में मृत पाए गए। पीछे छूट गया एक टूटा परिवार और ढेर सारे अनुत्तरित प्रश्न।
मानसिक थकावट, लंबे शिफ्ट और हिंसा
- 36-36 घंटे की शिफ्ट।
- मरीजों की जान बचाने के बाद भी हिंसा और धमकियों का सामना।
- नींद की कमी, परिवार से दूरी, असहनीय दबाव।
डॉ. रविंद्र चावला, एक मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं,
“सर्जरी के लिए औजारों को थामने वाले हाथ भी कभी-कभी कांपते हैं — बस वो चीख नहीं पाते।”
डॉ. निरंजन हिरेमथ, वरिष्ठ कार्डियोलॉजिस्ट, कहते हैं,
“हमें भी करुणा और मानसिक सहानुभूति की ज़रूरत होती है। बर्नआउट एक साइलेंट महामारी बन चुका है।”
समाधान क्या है?
- मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की अनिवार्यता: मेडिकल छात्रों और डॉक्टरों के लिए परामर्श और थेरेपी की सुविधा नियमित हो।
- बर्नआउट मैनेजमेंट ट्रेनिंग: हर मेडिकल संस्थान में रिज़िलिएंस और माइंडफुलनेस की ट्रेनिंग अनिवार्य बने।
- वर्क-लाइफ बैलेंस की नीतियाँ: लंबी शिफ्ट्स को व्यावहारिक रूप से सीमित किया जाए।
- समाज का समर्थन: डॉक्टर्स को सम्मान देना सिर्फ शब्दों से नहीं, सहानुभूति और समर्थन से होना चाहिए।
डॉक्टर सिर्फ पेशेवर नहीं, इंसान भी हैं — वो भी कभी-कभी टूटते हैं, थकते हैं, डरते हैं।
इस Doctors’ Day, आइए संकल्प लें कि:
- हम उन्हें समय देंगे, सहानुभूति देंगे।
- उनकी मानसिक और भावनात्मक सेहत को भी उतनी ही अहमियत देंगे जितनी वे हमारी देते हैं।