नरक चतुर्दशी का रहस्य… दीपावली पर भगवान राम की जगह क्यों होती है लक्ष्मी जी की पूजा

Chhoti Deepawali : बुराई पर अच्छाई की जीत, अंधकार पर प्रकाश की विजय, और नरक से मुक्ति का प्रतीक… छोटी दीपावली, जिसे नरक चतुर्दशी भी कहा जाता है। हर साल जब कार्तिक मास आता है, हवा में घी के दीयों की खुशबू घुलने लगती है, घरों में सफाई और सजावट का दौर शुरू हो जाता है, और हर चेहरे पर एक अलग ही चमक दिखाई देती है। दीपावली से ठीक एक दिन पहले, नरक चतुर्दशी मनाने की परंपरा है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने राक्षस नरकासुर का वध किया था, इसलिए इसे ही नरक चतुर्दशी कहा जाता है।

मगर, नरकासुर का वध क्यों किया गया और इसके अगले दिन ही दीपावली पर्व क्यों मनाया जाने लगा- ऐसे कई सवाल हैं जो दीवाली सेलिब्रेशन के दौरान मन में उमड़ते हैं, और हमारे पास इनके जवाब ही नहीं होते। तो आज हम आपको छोटी दीपावली से जुड़ी पौराणिक कथाओं से रूबरू कराएंगे, साथ ही यह भी बताएंगे कि दीपावली पर गणेश और लक्ष्मी की पूजा क्यों की जाती है।

इस साल, नरक चतुर्दशी यानी छोटी दीपावली, 19 अक्टूबर रविवार को मनाई जाएगी। छोटी दीपावली को रूप चतुर्दशी या काली चतुर्दशी के नाम से भी जाना जाता है। नरक चतुर्दशी केवल दीपों का त्योहार नहीं है, बल्कि बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है। साथ ही, यह पर्व आत्मशुद्धि, सौंदर्य और स्वच्छता का संदेश भी देता है।

अब जानते हैं कि नरक चतुर्दशी पर्व है क्या, और क्यों इसे दीपावली से एक दिन पहले मनाते हैं। नरक चतुर्दशी का नाम भगवान श्रीकृष्ण और माता सत्यभामा द्वारा राक्षस राजा नरकासुर के वध से जुड़ा है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार, नरकासुर पृथ्वी माता यानी भूदेवी और भगवान वराह का पुत्र था। अपने बल और वरदानों के अहंकार में उसने देवताओं और मनुष्यों पर अत्याचार शुरू कर दिए थे। स्वर्गलोक की अनेक संपत्तियों को लूट लिया था और 16 हजार कन्याओं को बंदी बना लिया था।

भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण ने जब यह अत्याचार देखा, तो उन्होंने अपनी पत्नी सत्यभामा के साथ गरुड़ पर सवार होकर नरकासुर से युद्ध किया। सत्यभामा स्वयं भूदेवी का अवतार थीं, और नरकासुर को यह वरदान मिला था कि उसकी मृत्यु केवल किसी स्त्री के हाथों ही संभव होगी। युद्ध भयंकर था, लेकिन भगवान श्रीकृष्ण ने सुदर्शन चक्र से नरकासुर का वध कर, बंदी बनाई गई स्त्रियों को मुक्त किया। यही वह दिन था जब संसार ने फिर से प्रकाश देखा—एक नया सवेरा।

देखते ही देखते, नरकासुर के वध की खुशी में लोगों ने अपने घरों में दीप जलाए, और तभी से यह दिन छोटी दीपावली या नरक चतुर्दशी के रूप में मनाया जाने लगा।

छोटी दीपावली से जुड़ी एक और कथा भी है, जो यमराज और यमुना से संबंधित है। इस दिन यमराज अपनी बहन यमुना से मिलने आए थे। यमुना ने उनका आदरपूर्वक स्वागत किया, उनके लिए स्वादिष्ट व्यंजन बनाए, और स्नेहपूर्वक तिलक लगाया। इस प्रेम से प्रसन्न होकर, यमराज ने आशीर्वाद दिया कि जो भी व्यक्ति इस दिन सुबह यमुना स्नान करेगा और सायंकाल यमराज के नाम से दीप जलेगा, उसे अकाल मृत्यु का भय नहीं सताएगा। तभी से, इस दिन यम दीपदान की परंपरा चली आ रही है।

यह पर्व शरीर और आत्मा दोनों की शुद्धि का भी महत्त्व रखता है। परंपरा है कि लोग सूर्योदय से पहले तेल मालिश कर, उबटन लगाकर, अभ्यंग स्नान करते हैं। यह न केवल धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि स्वास्थ्य और सौंदर्य का प्रतीक भी है।

अब जानते हैं कि दीपावली के दिन भगवान गणेश और माता लक्ष्मी की पूजा क्यों की जाती है। बच्चे से लेकर बड़े तक को यह कहानी सुनाई जाती है कि दीपावली के दिन भगवान राम अपने पत्नी सीता और लक्ष्मण के साथ अपने घर अयोध्या वापस आए थे। इसलिए, अयोध्वावासी पूरे नगर में दीप जलाकर उनका स्वागत करते थे। तभी से दीपावली पर दीप जलाने का पर्व मनाया जाता है।

मगर, एक सवाल यह भी मन में उठता है कि आखिर दीपावली के दिन भगवान राम और सीता माता की पूजा क्यों नहीं होती? तो बता दें, दीपावली पर लक्ष्मी और गणेश की पूजा क्यों की जाती है, इसका कारण यह है कि यह त्योहार सिर्फ राम की वापसी से ही नहीं, बल्कि कार्तिक अमावस्या के दिन धन और समृद्धि की देवी लक्ष्मी के जन्मदिन से भी जुड़ा है। साथ ही, बुद्धि के देवता भगवान गणेश की पूजा भी धन के साथ-साथ सही विवेक और ज्ञान लाने के लिए की जाती है, ताकि धन का सही उपयोग हो और वह स्थिर रहे।

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