नागपंचमी 2025 : विलुप्त हो रहा गुड़िया पर्व, जानिए नागपंचमी से कैसे जुड़ी थी परंपरा

Nagpanchami 2025 : आज पूरा देश नागपंचमी पर्व धूमधाम से मना रहा है। नागपंचमी पर्व पर शिवालयों पर भगवान महादेव और सर्प की पूजा के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ जुट रही है। इस दिन भगवान शिव के साथ सांपों की पूजा की जाती है। कुछ क्षेत्रों में तो सर्पों का मेला लगता है। नागपंचमी के दिन एक और परंपरा है, जो खास महत्व रखती है, लेकिन अब वह धीरे-धीरे विलुप्त होती जा रही है।

हम बात कर रहे हैं, नागपंचमी पर्व पर गुड़िया पर्व मनाने की। शहरों में यह गुड़िया पर्व आज ढूंढने से भी नहीं दिखाई देगा, लेकिन कुछ ग्रामीण क्षेत्र में यह आज भी अपनी अनोखी संस्कृति और परंपरा के साथ दिखाई दे जाएगा। आईए जानते हैं कि आखिर नागपंचमी पर्व से गुड़िया पर्व को क्यों जोड़ा गया और इसे मनाए जाने के पीछे क्या उद्देश्य रहा है।

नागपंचमी दिन सर्पों की पूजा होती है

श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तिथि को नागपंचमी पर्व मनाया जाता है। नागपंचमी के दिन नाग देवता की पूजा होती है। लोग शिवालयों में दूध चढ़ाते हैं और सर्पों को दूध पिलाते हैं। इस दिन सुबह से ही सपेरे सांप का खेला दिखाने के लिए गली-मोहल्लों और शिव मंदिरों में डेरा डाल लेते हैं। कहा जाता है कि नागपंचमी के दिन सर्पों को दूध पिलाने से सर्पकाल दोष से छुटकारा मिल जाता है।

इसी के साथ नागपंचमी के दिन गुड़िया पर्व मनाने की भी परंपरा है। हालांकि, गुड़िया पर्व अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग संस्कृति के साथ मनाया जाता है। वर्तमान समय में यह संस्कृति से विलुप्त होती जा रही है। कई क्षेत्रों में तो अब गुड़िया पर्व के बारे में कोई जानता ही नहीं है। मगर, यह बेहद ही अनोखी परंपरा है। इसमें नागपंचमी के दिन महिलाएं सजधज के कपड़ों की गुड़िया बनाती हैं और उन्हें सजाकर एक स्थान पर डाल देती है। फिर लड़के उन गुड़ियों को डंडों से पीटते हैं। इस पर्व को गुड़िया पीटने की प्रथा कहते हैं।

नागपंचमी पर गुड़िया पीटने की कथा

अब आपको यह भी बता दें कि इस पर्व पर कपड़े से बनी गुड़ियों को पीटा क्यों जाता है। इसके पीछे भी अलग-अलग कथाएं हैं। एक कथा के अनुसार, गुड़िया पीटने के पर्व को भाई और बहन के प्यार के रूप में देखा जाता है। एक भाई भगवान शिव के मंदिर जाता था और वहां पर एक सर्प उसके पैरों से लिपट जाता था। फिर एक दिन वह अपनी बहन के साथ मंदिर गया। जब बहन देखा कि सांप उसके भाई के पैर में लिपट गया तो उसे लगा कि वह भाई को काट लेगा। यह सोचकर बहन ने सांप को पीटना शुरू कर दिया और सांप की मौत हो गई। बहन को सर्प दोष लगेगा यह सोचकर भाई दुखी हो गया। फिर पुजारी ने उसे कहा कि बहन के रूप में कपड़े की गुड़िया बनाकर उसे 11 बार सीधा और 11 बार उल्टा पीटना और फिर उस गुड़िया को जमीन में गाड़ देना। ऐसा करने से बहन को सर्प दोष नहीं लगेगा। तभी से गुड़िया पीटने की परंपरा शूरू हो गई।

गुड़िया पीटने का दूसरा पक्ष

वहीं, कुछ जगहों पर इस पर्व पर लड़कियों और लड़कों के बीच भेदभाव के रूप में देखा जाता है। जहां पर लड़कियां कपड़े की गुड़िया बनाती हैं और उन्हें फेंक देती हैं। फिर लड़के रंग-बिरंगे सजेधजे डंडों से उन गुड़ियों को पीटते हैं। इन क्षेत्रों में लोग इस पर्व को पिछड़ी सोच से जोड़कर देखते हैं, जहां महिलाओं को पुरुषों की तुलना में कम महत्व दिया जाता था।

हालांकि, नागपंचमी पर गुड़िया पीटने की परंपरा अब धीरे-धीरे कम होती जा रही है। कई लोग अब इसे नहीं मनाते हैं। इसका प्रचलन अब कुछ क्षेत्रों में ही सीमित रह गया है।  

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