
चंडीगढ़ : पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने एक बेहद भावनात्मक और संवेदनशील फैसले में एक पांच साल की बच्ची को उसकी मां की गोद में वापस लौटाने का आदेश दिया है। अदालत ने कहा कि “मां का अपने बच्चे के लिए प्रेम नि:स्वार्थ होता है, और उसकी गोद बच्चे के लिए ईश्वर के पालने के समान होती है।”
क्या है मामला?
लुधियाना की एक महिला ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल करते हुए कहा कि उसका पति उसकी बीमारी का बहाना बनाकर पांच साल की बेटी को अपने साथ ले गया और फिर वापस नहीं लाया। महिला ने कोर्ट से अपील की कि उसे उसकी बेटी वापस सौंपी जाए, क्योंकि वह न केवल मां है, बल्कि बच्ची की सबसे बड़ी देखभालकर्ता भी।
हाईकोर्ट की टिप्पणी
अदालत ने यह स्पष्ट किया कि:
- 5 साल से कम उम्र के बच्चे की देखभाल के लिए मां की भूमिका सबसे ज़्यादा महत्वपूर्ण होती है।
- ऐसे मामलों में कोर्ट को यह देखना होता है कि “बच्चे का सर्वोत्तम हित किसके पास रहने में है।”
- हाल के वर्षों में बच्चों की कस्टडी को लेकर इस तरह की याचिकाओं में इज़ाफा हुआ है, मगर हर मामले में अदालत को भावनात्मक पक्ष के साथ-साथ कानूनी प्रक्रिया को भी देखना होता है।
आदेश और आगे की प्रक्रिया
कोर्ट ने पंजाब सरकार को आदेश दिया कि बच्ची को एक सप्ताह के भीतर अधिकार क्षेत्र की मजिस्ट्रेट अदालत में पेश किया जाए और तब तक के लिए उसकी कस्टडी मां को सौंपी जाए। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि पिता चाहें तो गार्जियन एंड वॉर्ड्स एक्ट के अंतर्गत गार्जियन कोर्ट में जाकर कस्टडी की मांग कर सकते हैं।
एक मिसाल बनता फैसला
यह फैसला सिर्फ एक मां की जीत नहीं, बल्कि उन तमाम महिलाओं के लिए एक उम्मीद है जो अपने बच्चों के लिए न्याय की लड़ाई लड़ रही हैं। हाईकोर्ट की यह टिप्पणी – “मां की गोद बच्चे के लिए ईश्वर का पालना है,” – इस निर्णय को और भी अधिक भावुक और मानवीय बना देती है।