आधुनिकता ने बदला ईदी देने का ट्रेंड -इस्लाम में नहीं ईदी का जिक्र, भारत में है ईदी का चलन

लियाकत मंसूरी मेरठ। ईदी देने का चलन वर्षों से चला आ रहा है। विवाहित बहनों को भाई के हाथों ईदी लाने का इंतजार रहता है। ईदी में शीर की सामग्रियों को देने का रिवाज है। समय बदला और आधुनिकता के इस दौर में अब बहन व उसके बच्चों के कपड़े भी ईदी में चलने लगे। ट्रेंड बदला तो गिफ्ट्स के साथ-साथ शूट, गोल्डन डायमंड व नगदी भी ईदी के चलन में आ गयी। हालांकि ईदी देने के बारे में कारी शफीकुर्रहमान का मानना है कि इस्लाम में ईदी का कोई जिक्र नहीं है। इस रिवाज का आगाज भारत में हुआ। क्योंकि हिन्दुस्तान में लेन-देन का रिवाज है। 20 रमजान के बाद बहनों की ईदी देने की तैयारी शुरू हो जाती है। बाजारों में ईदी के सामान की दुकानें सजने लगी है। भाई ईदी लेकर जाने लगे है। बहनों को भी भाई, भतीजों द्वारा ईदी लाने का इंतजार रहता है। जिनके भाई नहीं है उनकी ईदी लेकर मां या पिता जाते हैं। ईद के दिन भी छोटे-छोटे बच्चों व बहनों को ईदी देने का रिवाज है। समय के साथ-साथ अब ईदी का ट्रेंड भी बदल गया। पहले ईदी में शीर की सामग्रियां भेजी जाती थी, लेकिन अब गिफ्ट्स, कपड़े, मिठाई देने का भी चलन हो गया है। ज्वैलरी में गोल्ड, डायमंड, चांदी तक ईदी में जाने लगी हैं। ईदी का रहता है बेसब्री से इंतजार घंटाघर स्थित मीना बाजार में ईद की खरीदारी करने आयी महिलाओं से ईदी के बारे में बात हुयी। मऊगढ़ी निवासी महिला रूबीना का कहना है कि उसकी शादी को 20 वर्ष हो गए, लेकिन ईदी का इंतजार रमजान की शुरूआत से ही शुरू हो जाता है। शहनाज की शादी को 10 वर्ष हो गये। उसकी ईदी भाई लेकर आते है। अभी शहनाज की ईदी नहीं आई है, उसका कहना है कि अलविदा रोजे के बाद उसका भाई लेकर आएगा। गुलिस्ता की शादी को 15 वर्ष हो चुके है। ईदी को लेकर गुलिस्ता में ईद से ज्यादा उत्साह ईदी को लेकर रहता है। 30 वर्ष होने के बाद भी शमां की ईद मुसलसल आ रही है। वहीं शाहिदा नाम की महिला की आखों में गम नजर आया। वह ईदी के नाम पर मायूस देखी। शादी के कुछ वर्षों तक तो ईदी आती रही, लेकिन वर्षो गुजर गए अब शाहिदा की ईदी नहीं आती। भारत की रस्म-ओ-रिवाज है ईदी: कारी शफीकुर्रहमान महंगाई की परवाह किए बगैर बहनों की ईदी खरीदी जा रही है। ईदी की रस्मो रिवाज इस्लाम में वर्षों से चली आ रही है। हालांकि हदीसों में ईदी का कोई जिक्र नही है कि किसी पैगम्बर या सहाबाओं ने ईदी को दिया हो। कारी शप्फीकुर्रहमान भी इस्से इत्तेफाक रखते है। बकौल कारी शफीकुर्रहमान ईदी फालतू की चीजें है। इस्लाम से इसका कोई मतलब नहीं है। ईदी सुन्नत भी नही है। यह भारत की रस्मो-रिवाज है। हिन्दुस्तान में लेने देने का हिराब है, इसका चलन यहीं से हुआ। इस्लामी मुल्कों में ईदी नहीं दी जाती।

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