मिर्जा़पुर। उत्तर प्रदेश सरकार के संस्कृति मंत्रालय के प्रमुख आयाम राज्य संगीत नाटक अकादमी के तत्वावधान में नगर के सुंदर मुंदर जायसवाल नगर पालिका बालिका इंटर कालेज के सभागार में शुक्रवार को अपराह्न शास्त्रीय संगीत की सम्भागीय प्रतियोगिता आयोजित हुई। कार्यक्रम का शुभारम्भ देवी सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण व दीप प्रज्वलित करने के साथ हुआ।
शास्त्रीय संगीत की सम्भागीय प्रतियोगिता
इस अवसर पर मुख्य अतिथि पद्मश्री अजिता श्रीवास्तव ने कहा कि संगीत कला मानवीय भावों की हृदयस्पर्शी अभिव्यक्ति है। यह हमारी अमूल्य धरोहर है, जो हमें विरासत के रूप में अपने पूर्वजों से प्राप्त हुई है। भारत आदिकाल से ही अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विविधता एवं परंपराओं के कारण विश्व पटल पर विशेष पहचान बनाए हुए है। देश में संस्कृति की मुख्य धरोहर शास्त्रीय संगीत ही है। उन्होंने कहा कि शास्त्रीय संगीत हमारे शास्त्रों से निकली ताल है। जो कि भारतीय संस्कृति की पहचान है। इसको जीवित रखना हमारी जिम्मेदारी है। सरकार भी शास्त्रीय संगीत को बढ़ावा देने के लिए लगातार प्रयास कर रही है। शास्त्रीय संगीत से भाईचारे को भी बढ़ावा मिलता है।
विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ नागरिक संगठन के अध्यक्ष अरूण कुमार मिश्र ने कहा कि शास्त्रीय संगीत से भाईचारे को भी बढ़ावा मिलता है। संगीत और संस्कृति का संरक्षण आज की जरूरत है। अनेकता में एकता भारतीय संस्कृति की विशेषता है। भारत में विविध धर्म, भाषाएं, बोलियां, रीति-रिवाज़ तथा भौगोलिक विभिन्नताएं हैं, बावजूद इसके भी एक अखंड राष्ट्र के रूप में अडिग खड़ा है। संगीत पुरातन काल से ही भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग रहा है। वर्तमान में भारत में बहुत से ऐसे शहर अस्तित्व में आ चुके हैं जिनका भारतीय परंपरा एवं संस्कृति से कोई वास्ता नहीं है। भारतीय संस्कृति के संरक्षण के लिए भारतीय संगीत का संरक्षण बहुत ज़रूरी है। विद्यालय स्तर से बच्चों को संस्कृति से जुड़े विषय पाठ्यक्रम में अनिवार्यता के साथ पढ़ाए जाने चाहिए।
कार्यक्रम के सम्भागीय संयोजक शैलेंद्र अग्रहरि ने कहा कि वैदिक काल में संगीत के सात स्वरों का आविष्कार हो चुका था। भारतीय महाकाव्य रामायण तथा महाभारत की रचना में भी संगीत का मुख्य प्रभाव रहा। भारत में सांस्कृतिक काल से लेकर आधुनिक युग तक आते-आते संगीत की शैली एवं प्रकृति में अत्यधिक परिवर्तन हुआ। भारतीय संगीत के इतिहास के महान संगीतकारों जैसे कि तानसेन, स्वामी हरिदास, अमीर खुसरो आदि ने संगीत की उन्नति एवं विकास के लिए अत्यधिक योगदान दिया। वर्तमान में शास्त्रीय की विभिन्न शैलियां प्रचलित हैं। शास्त्रीय तथा उपशास्त्रीय संगीत के अंतर्गत भारत में ख्याल, ध्रुपद, धमार, चतुरंग, तराना, ठुमरी, दादरा इत्यादि गायन शैलियां प्रचलित हैं। भारतीय संगीत एवं संस्कृति की इस धरोहर के उत्थान एवं संरक्षण के लिए प्रयास किए जाने चाहिए।
अकादमी की ओर से पद्मश्री अजिता श्रीवास्तव का विशेष सम्मान अंगवस्त्र व स्मृति चिन्ह दे कर किया गया। उक्त अवसर पर विजयी प्रतिभागियों को प्रमाणपत्र वितरित किया गया। सम्भाग में बाल, किशोर व युवा वर्ग में प्रथम स्थान प्राप्त अभ्यर्थियों को लखनऊ की प्रांतीय स्तर की प्रतियोगिता में शामिल होने का मौका मिला। जहां प्रतिचि चतुर्वेदी प्रथम, वाणी अग्रवाल द्वितीय, अलंकृता रंजन तृतीय स्थान पर रहे। स्वस्ती टंडन, सिमरन मिश्र वसुदेव पाण्डेय, श्रेयांश कुमार, अभ्युदय रंजन, गरवित सिंह, ऐशवर्य रानी ने बेहतर प्रस्तुति दी। इनके बीच कडा़ संघर्ष रहा। इस दौरान कालेज की प्रधानाध्यापिका सुमन पाण्डेय, डा. ध्रुव जी पाण्डेय, अकादमी की प्रांतीय प्रतिनिधि लखनऊ से रेनू श्रीवास्तव निर्णायक मंडल के सदस्य वाराणसी से संगीता सिन्हा, सतीश मिश्र, राजेश कुमार, पूजा केशरी, ज्योति, डा. धनंजय सिंह, सुभ्रत अग्रहरि, सचिन दूबे, अभिषेक गुप्ता, रूद्रेश चटर्जी, प्रेमचंद अग्रहरि, अनूप बनर्जी, आलोक पाण्डेय, हिमांशु, मो. अकरम आदि रहे।