मिल्कीपुर उपचुनाव: हिंदुत्व और पीडीए की राजनीति का परीक्षण

  • मतदाताओं ने दिखाया उत्साह, पिछली बार के मुकाबले ज्यादा वोटिंग

राहुल मिश्र, अयोध्या। भाजपा और सपा के लिए प्रतिष्ठा की सीट बन चुके मिल्कीपुर उप चुनाव में बुधवार को मतदाताओं ने अपना फैसला ईवीएम में कैद कर दिया। मुख्य मुकाबला भाजपा और समाजवादी पार्टी के बीच रहा। दोनों ही पार्टियों ने चुनाव में ताकत झोंक दी। चुनाव का परिणाम भाजपा सरकार और सपा की भावी राजनीति की दिशा तय करेगा।

जनता की नजरों में यह हिंदुत्व और पीडीए की राजनीति का भी परीक्षण है। इस बार पिछले चुनाव के मुकाबले मतदाताओं ने ज्यादा उत्साह दिखाया। खबर लिखे जाने तक करीब 66 फीसदी मतदान हुआ। पिछली बार वर्ष 2022 के विस चुनाव में 60.23 फीसदी वोट पड़े थे।

दलित बाहुल्य मिल्कीपुर सीट पर समाजवादी पार्टी के वर्तमान सांसद के पुत्र अजीत प्रसाद और भाजपा से चंद्रभानु पासवान अपना भाग्य आजमा रहे हैं। यहां जातीय समीकरणों पर निगाह डाले तो यहां दलित और ब्राह्मण वोट किसी भी पार्टी की जीत में अहम भूमिका निभाते हैं। इस सीट पर 3.5 लाख मतदाताओं में करीब 1.2 लाख दलित, यादव 55000 और 30000 मुस्लिम है। राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि जो भी दलितों के साथ-साथ ब्राह्मण 80000, क्षत्रिय 25000 और अन्य पिछड़े वर्गों का समर्थन हासिल करेगा वही विजयी होगा।

जानकारों की मानें तो विधानसभा में बुधवार को पड़े वोटों में जहां ब्राह्मण व क्षत्रिय वोट अधिकतर भाजपा के पाले में गए वहीं, अन्य वोट में बंटवारा हुआ। पहले भाजपा से ब्राह्मण वोटर नाराज बताये जा रहे थे, यही कारण था कि भाजपा ने न सिर्फ पूर्व विधायक बाबा गोरखनाथ का टिकट काट चंद्रभानु पासवान पर विश्वास जताया बल्कि ब्राह्मणों को मनाने के लिए ब्राह्मण समाज के सर्वमान्य नेता खब्बू तिवारी को मैदान में उतार दिया। उधर, सपा अपने परंपरागत यादव व मुस्लिम वोट सहित दलित वोट को अपने पाले में मानकर जीत का दावा कर रही है।

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