मिल्कीपुर उपचुनाव में 24 हजार प्रवासी वोटर्स का रोल, वापस लाने के लिए जुटी पार्टियां

Seema Pal

उत्तर प्रदेश के मिल्कीपुर विधानसभा उपचुनाव को लेकर भाजपा और समाजवादी पार्टी के बीच काफी कड़ी प्रतिस्पर्धा देखने को मिल रही है। यह उपचुनाव न केवल एक सामान्य चुनाव है, बल्कि दोनों प्रमुख दलों के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बन गया है। उपचुनाव के परिणाम पर न केवल स्थानीय मतदाताओं का प्रभाव पड़ेगा, बल्कि प्रवासी मतदाता भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं, जिनकी संख्या इस बार करीब 24,000 है।

मिल्कीपुर उपचुनाव में प्रवासी वोटर्स का रोल

मिल्कीपुर विधानसभा क्षेत्र में कुल 3,71,578 मतदाता हैं, जिनमें से लगभग 24,000 मतदाता रोजगार के सिलसिले में विभिन्न राज्यों में रहते हैं, जैसे दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और चंडीगढ़। इन प्रवासी मतदाताओं को वापस अपने गृह क्षेत्र में लाने के लिए दोनों प्रमुख पार्टियां—भा.ज.पा. और समाजवादी पार्टी—कड़ी मेहनत कर रही हैं। दोनों पार्टियां यह जानती हैं कि प्रवासी मतदाता चुनावी नतीजों में महत्वपूर्ण बदलाव ला सकते हैं।

पार्टी कार्यकर्ताओं ने विशेष टीमें बनाई हैं, जिनका मुख्य उद्देश्य इन प्रवासी मतदाताओं से संपर्क करना और उन्हें मतदान के लिए वापस लाना है। कुछ रिपोर्टों के अनुसार, स्थानीय कार्यकर्ता अपने रिश्तेदारों और प्रवासी समुदायों से संपर्क कर उन्हें चुनावी प्रक्रिया में शामिल होने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। खासकर गांवों और छोटे कस्बों में इस बात पर जोर दिया जा रहा है कि वे अपने परिवार और रिश्तेदारों को वापस बुलाएं ताकि मतदान का प्रतिशत अधिक से अधिक हो सके।

मिल्कीपुर विधानसभा क्षेत्र में 40 प्रतिशत मतदाता प्रवासी मजदूर

मिल्कीपुर विधानसभा क्षेत्र के कुछ गांवों और क्षेत्रों में प्रवासी मतदाताओं का आंकड़ा काफी बड़ा है। घटौली गांव में 2,300 मतदाताओं में से करीब 700 लोग अन्य राज्यों में काम करने के लिए गए हुए हैं। इसी तरह, गोकुला और मंजनाई जैसे मिल्कीपुर ब्लॉक के बड़े गांवों में 40 प्रतिशत मतदाता अन्य स्थानों पर मजदूरी या रोजगार के लिए गए हुए हैं। इन क्षेत्रों से मतदान के लिए प्रवासी मतदाताओं को वापस लाने का प्रयास किया जा रहा है।

भाजपा और समाजवादी पार्टी दोनों ने अपने-अपने कार्यकर्ताओं को इस दिशा में सक्रिय कर दिया है, ताकि कम से कम 70 प्रतिशत प्रवासी मतदाता मतदान के दिन वापस लौटकर मतदान करें। कार्यकर्ता अब तक 400 से अधिक प्रवासी मतदाताओं से संपर्क कर चुके हैं, और यह प्रयास जारी है।

5 फरवरी को होगा उपचुनाव

3 फरवरी को चुनाव प्रचार का समय समाप्त हो गया, लेकिन दोनों पार्टियां 5 फरवरी को होने वाले मतदान के लिए पूरी तरह से तैयार हैं। दोनों दल शत-प्रतिशत मतदान सुनिश्चित करने के लिए प्रयासरत हैं। इसके लिए पार्टी कार्यकर्ता ग्रामीण क्षेत्रों में स्थानीय लोगों से आग्रह कर रहे हैं कि वे अपने प्रवासी रिश्तेदारों को वापस बुलाएं ताकि मतदान प्रक्रिया में अधिक से अधिक लोग शामिल हो सकें।

लोकल मुद्दों के अलावा, दोनों पार्टियां चुनावी प्रचार में अपना पूरा जोर लगा रही हैं, चाहे वह रैलियों, नुक्कड़ सभाओं या सड़क पर प्रचार के रूप में हो। इसके अलावा, पार्टी कार्यकर्ताओं ने सोशल मीडिया का भी इस्तेमाल किया है, ताकि दूरदराज के क्षेत्रों में रहने वाले लोग भी जानकारी प्राप्त कर सकें और मतदान के प्रति जागरूक हों।

चुनावी संघर्ष में मतदाताओं की चुप्पी

हालांकि दोनों पार्टियां अपने-अपने मतदाताओं को लुभाने की पूरी कोशिश कर रही हैं, लेकिन इस बार चुनावी माहौल में कुछ खास दिखाई नहीं दे रहा। मतदाता अपने रुख पर चुप्पी साधे हुए हैं। आम तौर पर उपचुनावों में ऐसा होता है कि मतदान से पहले मतदाता अपनी पसंद या प्राथमिकता को लेकर कुछ भी खुलकर नहीं बताते। ऐसे में यह कहना मुश्किल है कि चुनावी नतीजे किस दिशा में जाएंगे।

इसके अलावा, दोनों पार्टियों के कार्यकर्ता अपनी-अपनी पार्टी के पक्ष में मतदान करवाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। यह उपचुनाव दोनों दलों के लिए काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह न केवल मिल्कीपुर विधानसभा का मुद्दा है, बल्कि पार्टी की प्रतिष्ठा और भविष्य की राजनीति पर भी असर डाल सकता है।

इस उपचुनाव में जीत केवल स्थानीय मतदाताओं तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि प्रवासी मतदाताओं का योगदान भी महत्वपूर्ण होगा। भाजपा और समाजवादी पार्टी दोनों ही प्रवासी मतदाताओं को वापस लाने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा रहे हैं। परिणाम क्या होंगे, यह तो मतदान के बाद ही पता चलेगा, लेकिन इस चुनाव में हर एक वोट की अहमियत होगी, और यह उपचुनाव मिल्कीपुर क्षेत्र के राजनीति के लिए एक मील का पत्थर साबित हो सकता है।


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