दुधवा के जंगलों में धरती की सतह पर दौड़ते सूक्ष्म जीव, टाइगर बीटल क्वेस्ट 2025 में 19 प्रजातियों की पहचान

तराई की हरियाली से आच्छादित दुधवा टाइगर रिजर्व एक बार फिर जैव विविधता के अद्भुत संसार को दुनिया के सामने लाने में सफल रहा है। हाल ही में आयोजित टाइगर बीटल क्वेस्ट 2025 के दौरान इस संरक्षित क्षेत्र की मिट्टी में छिपे कीटों की दुनिया सामने आई। 15 दिनों तक चले इस अभियान में टाइगर बीटल की कुल 19 प्रजातियों की पहचान की गई, जिनमें कई ऐसी थीं जो उत्तर प्रदेश में पहली बार रिकॉर्ड की गईं। इस अभियान का आयोजन वैश्विक प्लेटफॉर्म iNaturalist पर हुआ, जिसका नेतृत्व दुधवा टाइगर रिजर्व के फील्ड बायोलॉजिस्ट और आउटरीच इंचार्ज विपिन कपूर सैनी ने WWF इंडिया के वरिष्ठ जीवविज्ञानी रोहित रवि के साथ किया। अभियान की योजना ROAR संस्था के संस्थापक निदेशक शरण वी के मार्गदर्शन में बनी, जो आयोजन के सह-समन्वयक भी रहे।

भारत में टाइगर बीटल की लगभग 245 प्रजातियाँ पाई जाती हैं, जिनमें से लगभग आधी देश में ही स्थानिक एंडेमिक हैं। अपने चमकीले रंग और फुर्तीले व्यवहार के कारण ये कीट सूक्ष्म बाघ के नाम से जाने जाते हैं। ये अपने सूक्ष्म आवासों में शीर्ष शिकारी की भूमिका निभाते हैं और पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने में महत्वपूर्ण होते हैं। कीटों की आबादी को नियंत्रित करने में इनकी सक्रिय भूमिका इन्हें पारिस्थितिकी तंत्र का अनिवार्य हिस्सा बनाती है। साथ ही, इनकी मौजूदगी पर्यावरण की सेहत का एक संवेदनशील सूचक भी मानी जाती है, जिससे इनका दस्तावेजीकरण संरक्षण की दिशा में अत्यंत आवश्यक होता है।

इस सर्वेक्षण के दौरान विपिन कपूर सैनी द्वारा की गई खोजें विशेष रूप से उल्लेखनीय रहीं। उन्होंने उत्तर प्रदेश में पहली बार Lophyra mutiguttata, Rhytidophaena limbata, Cicindela cyanea, और Cylindera venosa जैसी प्रजातियों को रिकॉर्ड किया। इनमें Lophyra mutiguttata की मौजूदगी ने इसके ज्ञात वितरण क्षेत्र में 400 किलोमीटर की खाई को भरा, जबकि Rhytidophaena limbata की खोज ने 8000 किलोमीटर के लंबे अंतराल को पाटने का काम किया। Cicindela cyanea की उपस्थिति न केवल इस प्रजाति का प्रदेश में पहला रिकॉर्ड है, बल्कि यह इसके ज्ञात पश्चिमी सीमा से 450 किलोमीटर दूर तक का सबसे पहला रिकॉर्ड भी है। इतना ही नहीं, इसका नारंगी धारियों वाला एक दुर्लभ रूप भी देखा गया, जिसे संभावित रूप से नई उप-प्रजाति के रूप में चिन्हित किया जा सकता है। Cylindera venosa की खोज ने भी 400 किलोमीटर के अंतर को भरा, जो दुधवा की कीट जैवविविधता को और समृद्ध बनाता है।

इस महत्वपूर्ण अभियान पर दुधवा टाइगर रिजर्व के फील्ड डायरेक्टर डॉ. एच. राजा मोहन, IFS ने कहा कि जैव विविधता का संरक्षण केवल करिश्माई जीवों जैसे बाघ और गैंडे तक सीमित नहीं है। टाइगर बीटल जैसे सूक्ष्म कीट भी पारिस्थितिक तंत्र में अहम भूमिका निभाते हैं। उन्होंने कहा कि इस तरह के आयोजन हमारी प्रतिबद्धता को दर्शाते हैं कि दुधवा में हर स्तर की जैव विविधता को पहचान कर उसे संरक्षित किया जाएगा।

वहीं उपनिदेशक जगदीश आर., IFS ने कहा कि 19 टाइगर बीटल प्रजातियों की पहचान यह दर्शाती है कि दुधवा की धरती पर अदृश्य जैव विविधता कितनी जीवंत है। उन्होंने कहा कि यह आयोजन न केवल वैज्ञानिक दस्तावेजीकरण की दिशा में एक बड़ा कदम है, बल्कि युवा शोधकर्ताओं और नागरिक वैज्ञानिकों को प्रेरित करने वाला भी है। उन्होंने इसे केवल एक नागरिक विज्ञान आयोजन नहीं, बल्कि एक साझा वैज्ञानिक आंदोलन बताया जिसमें देशभर से फोटोग्राफर, पर्यावरण प्रेमी और विशेषज्ञ शामिल हुए।

अभियान के आयोजक शरण वी ने इस आयोजन को लेकर अपनी शुरुआत में थोड़ी शंका जाहिर की थी, लेकिन अंत में मिली प्रतिक्रिया को शानदार और आश्चर्यजनक बताया। उन्होंने कहा कि भारत में पहली बार टाइगर बीटल पर केंद्रित इस आयोजन ने कई नई प्रजातियों के राज्य रिकॉर्ड, और नए हॉटस्पॉट्स की पहचान की है।

वहीं विपिन कपूर सैनी ने इसे एक व्यक्तिगत और वैज्ञानिक रूप से बेहद संतोषजनक अनुभव बताया। उन्होंने कहा, हर दिन जंगल की मिट्टी में झुककर इन जीवों को देखना और पहचानना, मुझे बार-बार यह याद दिलाता रहा कि हमारे पारिस्थितिकी तंत्र में अब भी बहुत कुछ छुपा है, जिसे हमें समझना और संरक्षित करना है।

दुधवा टाइगर रिजर्व की यह पहल एक बार फिर यह साबित करती है कि जैव विविधता के हर रंग को पहचानना और संजोना उतना ही जरूरी है जितना कि बाघों की सुरक्षा करना। जंगल के ऊपर बाघ की दहाड़ हो या नीचे इन छोटे कीटों की तेज़ चाल दोनों ही प्रकृति के उस संतुलन की गवाही देते हैं जो आज संरक्षण की सबसे बड़ी ज़रूरत है।

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