बीएल गौड़ की पुस्तकों में वर्तमान व भविष्य के संदेश: रामबहादुर राय

पद्मश्री व पद्मभूषण राय ने गौड़ की दो पुस्तकों का किया विमोचन

गुरुग्राम। पद्मश्री एवं पद्मभूषण राम बहादुर राय ने एसजीटी यूनिवर्सिटी के प्रांगण में जाने माने लेखक और ‘गौर संस’ इंडिया के संस्थापक, रियल एस्टेट के सफल उद्यमी एवं सेवानिवृत्त रेलवे इंजीनियर डा. बीएल गौड़ की पुस्तक ‘कैसे बने विश्वकर्मा(नींव से नाली तक)’ एवं ‘हाई राइज बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन’ का विमोचन किया।

रायबहादुर राय ने डॉ. बीएल गौड़ की पुस्तकों की प्रशंसा करते हुए कहा कि इनमें वर्तमान व भावी, दोनों पीढ़ियों के लिए इन दोनों पुस्तकों में अनेक संदेश छिपे हैं।

उन्होंने कहा कि लोकार्पित पुस्तकें आपके लिए उपलब्ध रहेंगी। उसके साथ साथ एक तीसरी किताब भी पढ़िए और वह गौड़ साहब की अपनी आत्मकथा है। ‘बीता सो अनबीता’ उसका शीर्षक है। उस किताब को मैंने पूरा पढ़ा। उस किताब को मैं बार बार देखता हूं, पढ़ता हूं क्योंकि उस किताब में बीएल गौड़ की जिंदगी है। उस डा.बीएल गौड़ की जिंदगी है जो रेलवे में इंजीनियर है। जंगलों में और तमाम रेलवे के प्रोजेक्ट्स उन्होंने पूरे किए और ऐसी ऐसी घटनाएं उनके जीवन काल में रही हैं। ऐसा व्यक्ति जब अपनी बंधी बंधाई नौकरी अचानक छोड़कर एक चौराहे पर खड़ा हो जाता है। फिर नई जिंदगी शुरू करता है। उस नई जिंदगी से ‘गौर संस’ बन जाता है।
उस आत्मकथा को आप पढ़ें तो पाएंगे कि गौड़ का व्यक्तित्व मल्टी डायमेंशनल है। यही एक विशेषता है।

उन्होंने कहा कि एसजीटी के कैंपस में जो नई बिल्डिंग बन रही है, उसके शिलान्यास अवसर पर मैंने प्रबंध ट्रस्टी मनमोहन चावला से कहा था कि गौड़ जी ने एक हिंदी में और एक अंग्रेजी में किताब लिखी है। उनका यहां लोकार्पण होना चाहिए। मनमोहन जी ने इस आग्रह को स्वीकार किया। रायबहादुर राय ने कहा कि वास्तव में दुनिया गोल है।

मनमोहन जी और गौड़ जी कभी बहुत पहले मिले थे। इस किताब के विमोचन समारोह ने दोनों को दोबारा मिला दिया है। उन्होंने रोचक अंदाज में गौड़ संस के अखबार ‘गौड़ टाइम्स’ का भी उल्लेख किया। रायबहादुर राय ने एक और प्रेरक प्रसंग का उल्लेख भी अपने संबोधन में किया। उन्होंने बताया कि अगर आप आईटीओ से मिंटो ब्रिज की तरफ जाएं तो बाएं तरफ एक बिल्डिंग दिखाई देती है प्रवासी भारतीय भवन। अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद का वह हेडक्वार्टर है और अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद वह संस्था है जो 45 से ज्यादा देशों में जहां जहां भारतीय हैं, उनसे संपर्क, उनके सुख दुख में शामिल होती है। कोई नहीं जानता कि प्रवासी भवन की एक-एक ईंट में गौड़ साहब का योगदान रहा है।

मनोज गौड़ जी को आपत्ति होती थी कि पापा किसी इंजीनियर वहां लगा देते हैं लेकिन बीएल गौड़ नहीं माने और अपने मिशन में संलग्न रहे। उसी भवन में बालेश्वर अग्रवाल नामक एक व्यक्ति थे जो पहले हिंदुस्तान समाचार के प्रधान संपादक होते थे। अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद की नींव में बालेश्वर जी और बीएल गौड़ का बिरला जोड़ रहा था।

प्रवासी भवन का उद्घाटन उस समय के प्रधानमंत्री वाजपेयी ने किया था और उसी भवन को इस बात का श्रेय है कि हर साल जनवरी में अंतरराष्ट्रीय प्रवासी दिवस भारत सरकार मनाती है।

राम बहादुर राय ने लालकृष्ण आडवाणी की किताब के बारे में भी चर्चा की। लालकृष्ण आडवाणी जब इमरजेंसी में जेल में थे और उन्होंने रोज डायरी लिखी।

इस मौके पर पुस्तक लेखक बीएल गौड़ ने कहा कि मेरे जीवन का आज अहम दिन है। उन्होंने कहा कि लेखक बड़ा नहीं होता बल्कि उसका सृजन बड़ा होता है। सृजन करते रहना चाहिए। उन्होंने विशेष रूप से संदेश दिया कि ‘एवरी डे इज एक लर्निंग डे’। जहां से जो कुछ भी सीखने को मिले, सीखना चाहिए। उन्होंने कहा कि राम बहादुर राय से मुलाकात मेरा सौभाग्य है। उन्होंने एक उदाहरण देकर बताया कि राम बहादुर राय पुस्तकों का अध्ययन कितनी गंभीरता से करते हैं। उन्होंने अपने संबोधन का समापन राष्ट्र कवि मैथिलीशरण गुप्त की इन पंक्तियों से किया-

“नर हो न, निराश करो मन को
कुछ काम करो, कुछ काम
जंग में रह कर नाम करो
कुछ काम करो, कुछ काम करो”।
उन्होंने दो अतिरिक्त पंक्तियां भी जोड़ीं-
“जो मैं न कर सका इस जीवन में
उससे आगे तुम काम करो”

पुस्तक विमोचन कार्यक्रम में दशमेश एजुकेशनल चैरिटेबल ट्रस्ट के मैनेजिंग ट्रस्टी मनमोहन चावला भी उपस्थित थे। कार्यक्रम के चीफ गेस्ट एवं एसजीटी यूनिवर्सिटी के पूर्व वीसी और सदस्य रेरा (उत्तर प्रदेश) प्रो. (डॉ.) बलविंदर कुमार, गौर संस ग्रुप के चेयरमैन मनोज गौर और एसकेए ग्रुप के डायरेक्टर संजय शर्मा ने अपने संबोधन में अनेक व्यावसायिक, व्यावहारिक पहलुओं को स्पर्श करते हुए नवाचार, विकास, आदर्शवाद, सृजन, सिद्धांत पर विस्तार से प्रकाश डाला। डॉ.शिप्रा कुमारी ने धन्यवाद ज्ञापन दिया। एसजीटी यूनिवर्सिटी के प्रो वाइस चांसलर प्रो.(डॉ.) अतुल नासा ने अपने स्वागत भाषण में कहा कि आज का दिन एसजीटी यूनिवर्सिटी के इतिहास में एक और सुनहरा पन्ना जोड़ने जा रहा है।

आज हम सभी यहां एक ऐसे शुभ अवसर पर एकत्र हुए हैं,जहां विचार, समर्पण और सृजन—तीनों एक साथ साकार रूप में दिखाई दे रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह क्षण केवल एक लोकार्पण-विमोचन कार्यक्रम नहीं, बल्कि ज्ञान, प्रेरणा और उपलब्धि का उत्सव है।
आज हम केवल पुस्तक का विमोचन नहीं कर रहे हैं, बल्कि एक विचार, एक दृष्टिकोण और एक जीवन-दृष्टि का उत्सव मना रहे हैं। उन्होंने कहा कि डॉ. बीएल गौर विजन व क्रिएशन के एक ऐसे विश्वकर्मा हैं जिन्होंने कंक्रीट और स्टील के बीच सपनों को सजाया है, साकार किया है। उनका कार्य हमारे युवा इंजीनियरों और प्रोफेशनल्स के लिए एक दीपक के समान है, जो उनके रास्ते को प्रकाशित करेगा, प्रशस्त करेगा।

ये दोनों पुस्तकें हमारे विद्यार्थियों, शिक्षकों और पेशेवरों के लिए एक अमूल्य मार्गदर्शक सिद्ध होंगी —जो सिद्धांत को व्यवहार से जोड़ती हैं और सीखने को क्रिया रूप से मिलाती हैं। हम सब मिलकर एक नई सोच का आरंभ कर रहे हैं — निर्माण की सोच, नवाचार की सोच और राष्ट्र निर्माण की सोच।

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