काशी-मथुरा मामले में हो सकते हैं शामिल…स्वयंसेवकों को RSS का बड़ा संदेश, जानिए क्या बनी रणनीति

राजनीतिक और धार्मिक मामलों में जंग के ऐतिहासिक संदर्भ में, अयोध्या के बाबरी मस्जिद विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के आए फैसले के बाद, मंदिर निर्माण का मार्ग साफ हो गया है। इसी क्रम में “काशी, मथुरा हमारी बारी” का नारा जोर पकड़ रहा है, जो कि आगे के विवादों और आंदोलनों की दिशा को इंगित कर रहा है। अयोध्या के बाद अब काशी (काशी विश्वनाथ) और मथुरा (श्रीकृष्ण जन्मभूमि) विवाद प्रमुखता से उठ रहे हैं, जिसके चलते स्थानीय संतों और संगठनों की लामबंदी तेज हो गई है।

राष्ट्रिय स्वयंसेवक संघ (RSS) का रुख

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के महासचिव दत्तात्रेय होसबोले ने स्पष्ट किया है कि यदि संघ के सदस्य काशी और मथुरा में संबंधित आंदोलनों में भाग लेते हैं, तो संघ को किसी प्रकार की आपत्ति नहीं होगी। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि सभी मस्जिदों को लक्षित कर व्यापक पुनर्ग्रहण प्रयासों का विरोध किया जाना चाहिए ताकि सामाजिक तनाव से बचा जा सके। उनके अनुसार, संघ केवल उन तीन मंदिरों की पुनः प्राप्ति की पक्षधर है जिनका उन्होंने 1984 में उल्लेख किया था, यानी अयोध्या में राम जन्मभूमि, काशी, और मथुरा।

विहिप का समर्थन

विहिप (वishwa हिंदू परिषद) के संयुक्त महासचिव सुरेंद्र जैन ने भी कहा है कि संगठन केवल उन तीन मंदिरों के लिए लड़ाई लड़ रहा है। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि गत 300 वर्षों से चले आ रहे मथुरा के श्रीकृष्ण जन्मभूमि विवाद और अन्य धार्मिक स्थलों को लेकर हिंदुओं के अधिकार की रक्षा की आवश्यकता है।

श्रीकृष्ण जन्मभूमि विवाद

मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि विवाद की जड़ें 300 साल पुरानी हैं, जिसमें वर्तमान में कृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट और शाही ईदगाह मस्जिद के बीच 13.37 एकड़ जमीन के मालिकाना हक के लिए संघर्ष चल रहा है। मंदिर ट्रस्ट मस्जिद को हटाने की मांग कर रहा है, वहीं मस्जिद प्रबंधन कमेटी ने प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट का हवाला दिया है।

ज्ञानवापी मस्जिद विवाद

ज्ञानवापी मस्जिद विवाद भी हाल के वर्षों में काफी चर्चा का विषय बना है। 2021 में कुछ महिलाओं ने मस्जिद परिसर में पूजा करने की अनुमति की मांग करते हुए याचिका दायर की थी। इस याचिका में सर्वे कराने की भी मांग की गई थी, जिसके परिणामस्वरूप वजूखाने में कुछ आकृतियों को शिवलिंग के रूप में दर्शाया गया।

दोनों विवादों ने हिंदू संगठनों को एकजुट किया है और अब संगठन और स्वयंसेवकों को इसमें भाग लेने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। RSS के महासचिव के बयान के बाद, यह स्पष्ट है कि संघ अपने कार्यकर्ताओं को सक्रिय रूप से आंदोलन में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित कर रहा है, जिससे यह मुद्दा और भी गरमाया हुआ नजर आ रहा है।

हालांकि, होसबोले ने सामाजिक शांति बनाए रखने की आवश्यकता को भी रेखांकित किया है, इस वजह से यह देखना होगा कि आगे चलकर इन आंदोलनों का क्या परिणाम निकलता है और इनमें किसी प्रकार का संयम रखा जा सकेगा या नहीं।

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