विदेश में भी बजता है मथुरा शैली की रामलीला का डंका, जगह जगह मंचन की तैयारियां शुरू

मथुरा : यह बेहद रोचक है कि कान्हा की नगरी में रासलीलाओं से ज्यादा रामलीलाओं का चाव है। मथुरा भादों भाद्रपद में कृष्ण तो आश्विन क्वार में राममय रहती है। क्वार में कान्हा की नगरी में भगवान राम की लीलाओं रामलीला की धूम मचेगी। जगह-जगह लीलाओं का मंचन होगा। इसके लिए तैयारियाँ शुरू हो गई हैं। मथुरा शैली की रामलीला समूचे उत्तर भारत में विख्यात है। वर्तमान में यहाँ दर्जनों मंडलियाँ हैं, जो देश के विभिन्न प्रांतों में रामलीला मंचन के लिए बुक हो चुकी हैं। वहीं स्थानीय परंपरागत लीलाओं के मंच के लिए तैयारियाँ जोरों पर हैं। कहीं कमेटियों के गठन की प्रक्रिया चल रही है तो कहीं पात्रों को तालीम दी जा रही है।

मथुरा की रामलीला करीब 180 साल पुरानी है। गाँवों में भी लंबे समय से परंपरागत आयोजन होते आ रहे हैं। अंग्रेजों के जमाने से शुरू हुआ यह सिलसिला बदस्तूर जारी है। गाँव कारब में करीब 90 साल पुरानी रामलीला मंचन की कहानी बेहद रोचक है। यह पूरी तरह से स्वावलंबी है। यहाँ पात्र भी गाँव के ही होते हैं, व्यास से लेकर तालीम देने तक सारी जिम्मेदारी ग्रामीण खुद उठाते हैं। कभी लालटेन की रोशनी में बिना लाउडस्पीकर के होने वाली यह रामलीला अब आधुनिक हो चली है।

इस बार रामलीला कमेटी के अध्यक्ष चुने गए पुष्पेंद्र सिंह ने बताया कि रामलीला की तैयारियाँ शुरू हो गई हैं। कमेटी गठन के साथ ही झंडा गड़ेगा और पात्रों की तालीम शुरू हो जाएगी। सभी ग्रामीण मिलकर बहुत सुंदर रामलीला करते हैं। यह रामलीला ब्रजभाषा से ओतप्रोत होती है और मुख्य संवाद व लीला मंचन मूल स्वरूप में होते हैं।

मथुरा शैली की रामलीला का डंका देश ही नहीं, विदेश में भी बजता है। मुंबई की चौपाटी से लेकर कानपुर के परेड ग्राउंड और दिल्ली तक मथुरा शैली की रामलीला का मंचन आज भी होता आ रहा है। इसके अलावा उत्तर भारत के अधिकांश स्थानों पर मथुरा शैली की रामलीला का मंचन प्रसिद्ध है। साहित्य के साथ-साथ मुकुट श्रृंगार, संवाद और पात्रों की दृष्टि से मथुरा की रामलीला समूचे देश में सबसे ज्यादा लोकप्रिय है। वर्तमान में करीब दो दर्जन मंडलियाँ दिल्ली, मुंबई, कानपुर, हापुड़, मेरठ, गाज़ियाबाद, मध्य प्रदेश, अलीगढ़, बुलंदशहर आदि जनपदों में रामलीला मंचन को तैयार हैं।

यह होता है मंडली का स्वरूप
एक-एक मंडली में दो दर्जन से अधिक कलाकार होते हैं। 10 से 15 दिन तक यह मंडलियाँ रामलीला का मंचन करती हैं। मथुरा की रामलीला की लोकप्रियता की एक वजह यह भी है कि यहाँ पर रामलीला के पर्दों और पिछवाई से लेकर मुकुट श्रृंगार, पोशाक और अस्त्र-शस्त्र का निर्माण भी मथुरा में होता है, जिसकी माँग समूचे उत्तर भारत में है।

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