1 मार्च 1924 : सुप्रसिद्ध क्राँतिकारी गोपीनाथ साहा का बलिदान

लखनऊ डेस्क: भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भारत के असंख्य वीरों ने अपने प्राणों की आहुति दी, ऐसे ही भारत माँ के वीर सपूत थे बंगाल के बारानगर क्षेत्र में जन्म 16 दिसंबर 1905 को जन्में गोपीनाथ साहा जिनको चार्ल्स टेगार्ट नामक कुख्यात औपनिवेशिक अधिकारी की हत्या करने के प्रयास में आज ही के दिन 1 मार्च 1924 को फांसी दे दी गयी थी।

भारत में ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन कई अंग्रेज अधिकारी अपनी क्रूरता और अत्याचारों से जाने जाते थे। उनमें से एक था चार्ल्स ट्रेगार्ट, जो बंगाल में तैनात था। इस अधिकारी ने भारतीय स्वाधीनता सेनानियों के साथ इतने जघन्य और अमानवीय व्यवहार किए कि उसकी शिनाख्त एक अत्याचारी अधिकारी के रूप में हुई। इसे समाप्त करने का निर्णय लिया था सुप्रसिद्ध क्रांतिकारी गोपीनाथ साहा ने। हालांकि, समय रहते हुए चार्ल्स ट्रेगार्ट बच निकला, लेकिन एक निर्दोष नागरिक की जान चली गई, और इसके परिणामस्वरूप गोपीनाथ साहा को फाँसी दी गई। यह घटना 1924 की है।

उस समय बंगाल और पूरे देश में क्रांतिकारी आंदोलन अपने चरम पर था। ब्रिटिश सरकार ने इन आंदोलनों का दमन करने के लिए अपनी खुफिया एजेंसियाँ सक्रिय कर दी थीं और अत्यधिक क्रूरता से कार्रवाई शुरू कर दी थी। इस खुफिया तंत्र के प्रमुख के रूप में चार्ल्स ट्रेगार्ट की नियुक्ति की गई। उसने बिना किसी अपराध के, संदेह के आधार पर लोगों को पकड़कर उन पर अमानवीय अत्याचार किए। विशेषकर, महिला क्रांतिकारियों के साथ उसने जो व्यवहार किया, उसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती।

इन्हीं परिस्थितियों में ‘युगांतर दल’ ने चार्ल्स ट्रेगार्ट को रास्ते से हटाने का निश्चय किया और यह जिम्मेदारी गोपीनाथ साहा को सौंपी गई।

गोपीनाथ साहा का जन्म 16 दिसंबर 1901 को पश्चिम बंगाल के हुगली जिले के ग्राम सरामपुर में हुआ था। उनके परिवार में भारतीय संस्कारों और स्वाभिमान का महत्व था। गोपीनाथ ने प्रारंभिक शिक्षा के बाद सामाजिक जागरण की गतिविधियों में भाग लिया और 1921 में असहयोग आंदोलन से जुड़ गए। लेकिन चौरी चौरा कांड के बाद गांधीजी ने आंदोलन वापस ले लिया, जिससे गोपीनाथ और उनके साथी निराश हो गए। इसके बाद वे ‘युगांतर दल’ में शामिल हो गए, और उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष शुरू किया।

इसी बीच, चार्ल्स ट्रेगार्ट ने बंगाल में पुलिस विभाग की खुफिया शाखा के प्रमुख के रूप में कार्यभार संभाला और स्वतंत्रता सेनानियों के खिलाफ अत्याचारों की सीमा पार कर दी। गोपीनाथ साहा और उनके साथी यह देखकर उग्र हो गए और उन्होंने ट्रेगार्ट को मारने की योजना बनाई।

12 जनवरी 1924 को गोपीनाथ साहा ने चौरंगी रोड पर ट्रेगार्ट को निशाना बनाने का प्रयास किया। उन्होंने एक अंग्रेज अधिकारी को ट्रेगार्ट समझकर गोली चलाई। दुर्भाग्यवश, ट्रेगार्ट उस समय कार्यक्रम बदलने के कारण वहाँ नहीं था, और गोपीनाथ साहा ने उसके सहायक अर्नेस्ट डे को निशाना बना लिया। अर्नेस्ट की मौत हो गई।

इसके बाद गोपीनाथ साहा ने भागने का प्रयास किया, लेकिन पुलिस ने उसे पकड़ लिया। अदालत में उसे मुकदमे का सामना करना पड़ा। 21 जनवरी 1924 को उसने निडर होकर अपना अपराध स्वीकार किया और कहा कि अगर ट्रेगार्ट बच गया, तो कोई और क्रांतिकारी उसे मार डालेगा। अदालत ने 16 फरवरी 1924 को उसे फाँसी की सजा सुनाई। सजा सुनते ही गोपीनाथ साहा मुस्कराए और कहा, “मैं फाँसी की सजा का स्वागत करता हूँ। मेरी मौत से हर भारतीय के दिल में स्वतंत्रता की आग जलेगी।”

1 मार्च 1924 को उसे फाँसी पर चढ़ा दिया गया। उनकी आयु मात्र 23 वर्ष थी।

एक दिन पहले, गोपीनाथ साहा ने अपनी माँ को पत्र लिखते हुए कहा, “तुम मेरी माँ हो, यही तुम्हारी महानता है। काश, हर किसी को ऐसी माँ मिले, जो ऐसे साहसी पुत्र को जन्म दे।”

गोपीनाथ साहा का बलिदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में सदैव याद रखा जाएगा। उनका साहस और निष्ठा हमें प्रेरित करते रहेंगे।

शत शत नमन ऐसे वीर क्रांतिकारी को।

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