आलेख: सुश्री नव्या आनंद, कक्षा ग्यारह, बिरला विद्या निकेतन पुष्प विहार, नई दिल्ली की छात्रा
भास्कर समाचार सेवा
नई दिल्ली। इंसान होने की अपनी चुनौतियां हैं। कभी-कभी इनसे पार पाना मुश्किल लगता है। हम सभी का अपना-अपना एक वजूद होता है जो जिन्दगी को पूरा अर्थ देता है – जो हमारी भावनाएं और हमारे विचार हैं। हम भावनाओं और विचारों की शक्ति शब्दों में बयां नहीं कर सकते हैं। ये एक-दूसरे से परस्पर जुड़ती हैं और हमें एक खास पहचान देती हैं और यह हम सभी की होती है। भले ही इन भावनाओं और विचारों को संजो कर रखना आसान नहीं होता पर वे हमारे वजूद का एक हिस्सा हैं और फिर यूं कहें कि हमारा वजूद ही उन से है। मन में एक ही समय पर भावनाओं का ज्वार उठना और फिर मन-मस्तिष्क का विचारों की अतल गहराइयों में गोते लगाना आम बात नहीं है। हालांकि इस बीच हम मौन बैठते और यह विश्लेषण करते हैं कि आखिर ये सोच हमें कहां ले जाएगी। इसकी मंजिल क्या है। लेकिन यह बहुत सामान्य बात भी नहीं है। पर दरअसल यही सोच तो है जो हमें इंसान बनाती है। इसके बावजूद हम अक्सर यह हकीकत स्वीकार करने से डरते या फिर तैयार नहीं होते हैं कि तरह-तरह की असंख्य भावनाओं को महसूस करना या हजारों धंुधले विचारों से घिरे रहना, जो हमारे मन-मस्तिष्क में उपजते हैं, वास्तव में सामान्य घटना है। कभी-कभी हमें लगता है कि एक ही समय में भिन्न-भिन्न भावनाओं के भंवर में गोते खाना हमें अधूरा बना रहा है और ये भावनाएं उदासी, खुशी, शांति, भ्रम, क्रोध कुछ भी हो सकती हैं। ऐसा महसूस करने की बड़ी वजह है – दरअसल ऐसे समय पर हम यह सही-सही बता नहीं सकते कि हम कौन हैं और हम वास्तव में कैसा महसूस कर रहे हैं। कोई भी भाषा इंसान की भावनाओं और विचारों की शक्ति की अभिव्यक्ति करने में पूरी तरह सक्षम नहीं है और यही हमें अपूर्ण होने का अहसास देता है। पूर्णता का जो अहसास हमें जो सुकून देता है वह धुंधला पड़ने लगता है क्योंकि हम भावनाओं के भंवर में पड़े होते हैं। यही दुनिया की रीति है हालांकि निस्संदेह आदर्श स्थिति नहीं है। मैं जब भी ‘सफेद’ शब्द कहूं तो मानस पटल पर आम तौर पर सुकून, शांति और सरलता का चित्र बनता है। ‘सफेद’ रंग और शब्द सहजता का प्रतीक हैं। ये आमतौर पर मन को शांति और सुकुून देते हैं। संपूर्णता देते हैं। यह असीम शांति और सहजता की कल्पना को जन्म देते हैं। हम सभी चारों ओर ऐसी भावनाएं चाहते हैं जो संपूर्ण होने की अनुभूति दे; अन्य शब्दों में सफेद का अनुभव दे। इस विषय से हट कर बारिश की बात करें तो यह निश्चित रूप से हम पृथ्वीवासियों पर प्रकृति का प्यार लुटाने का सबसे सुहाना तरीका है। और जो इंद्रधनुष बन जाए तो सोने पर सुहागा। लेकिन इसका दर्शन दुर्लभ है पर जब इंद्रधनुष छाता है तो हर कोई एक झलक के लिए ललचाता है। इसकी खूबसूरती आंखों में बस जाती है और मन मयूर नाच उठता है। आप सफेद रंग और कुदरती इंद्रधनुष को दो विपरीत रूप में देख सकते हैं: एक सुकून, गर्माहट और पूर्णता का प्रतीक है जबकि दूसरा जीवंतता, उत्साह और नए विचारों का परिचायक है। यदि हम आसमान को निहारते हुए कभी इंद्रधनुष जैसा कुदरत का करिश्मा देख सकते हैं जो अपने-आप में संपूर्ण है तो क्यों न खुद को उसी नजरिये से देख सकते हैं और सोच सकते हैं? इंद्रधनुष बनाने वाले अलग-अलग वेवलेंथ के रंग या स्पेक्ट्रम के समान हमारे मन में भावनाओं और विचारों का भी स्पेक्ट्रम होता है। वही हमें अपने-आप में एक खास इंसान बनाता है; हमें संपूर्ण बनाता है और वही हमें एक इंसान का वजूद देता है। इंद्रधनुष के सात रंग एक दूसरे से भिन्न होते हैं फिर भी सभी मिल कर जो संरचना करते हैं अपूर्णता का बोध नहीं कराती है और न ही हर एक के अपने वजूद में बाधा डालती है। सात रंगों के बीच का यही अंतर उन्हें पूर्ण बनाता है और उन्हें ‘एक और संपूर्ण’ होने की परिभाषा देता है। हमारे मन में मौजूद अलग-अलग भावनाएं हमें कभी-कभी भ्रमित करती हैं और हमें अधूरा महसूस कराती हैं या कुछ कम होने का अहसास देती हैं। दरअसल ये भावनाएं हमें अपूर्ण नहीं बना रही हैं बल्कि इनकी वजह से ही हमारे अंदर पूर्णता और एक होने की भावना जगती है।
यदि सात अलग-अलग रंग एक हो सकते हैं, तो आप भी हो सकते हैं
इन्द्रधनुष को देख कर मन मयूर नाच उठने की वजह यह है कि हम उसमें अपना प्रतिबिम्ब देखते हैं। सफेद रंग परमाानंद देता है और आप तो जानते हैं कि इंद्रधनुष सफेद रंग का ही एक रूप है।
इसलिए भले ही हमारा अंतर्मन सफेद रंग का मानवीय अवतार बनना और विवेकशील होना चाहता है हमें तो बस इतना समझना है कि हम पहले से ही सफेद रंग का मानवीय अवतार हैं – किसी इंद्रधनुष की तरह भावनाओं और विचारों का संगम और मैं यकीन से कह सकती हूं कि इंद्रधनुष निश्चित रूप से सफेद रंग का अधिक सुंदर स्वरूप है।