सुरक्षा की दिशा में बड़ा बदलाव : छह दशक बाद भारत में हत्या दर रिकॉर्ड स्तर पर नीचे, पढ़ें ये रिपोर्ट

-सामाजिक संरचनाओं, स्थिर व्यवस्था और निगरानी तंत्र ने निभाई अहम भूमिका

नई दिल्ली । पंजाब, कश्मीर, असम और माओवादी इलाकों में उग्रवाद में कमी, पुलिस स्टेशनों का विस्तार और सीसीटीवी कैमरों जैसी आधुनिक निगरानी प्रणालियों ने हत्या के मामलों को काफी हद तक घटाया है। भारत में हत्या की दर 1957 के बाद से सबसे निचले स्तर पर आ गई। जारी आंकड़ों के मुताबिक प्रति लाख आबादी पर हत्या की दर अब 2.3 रह गई है, जबकि 1992 में यह 5.2 थी।

विशेषज्ञों का मानना है कि यह गिरावट केवल पुलिस की सख्ती या निगरानी प्रणालियों के कारण नहीं, बल्कि समाज के अंदर विकसित अनौपचारिक तंत्रों, सामाजिक संरचनाओं और ‘स्थिर डाकू’ व्यवस्था की वजह से भी संभव हुई है। वैश्विक स्तर पर भी हत्या की दरें घटी हैं, लेकिन भारत की स्थिति विशेष रूप से बेहतर रही है। दक्षिण अफ्रीका (34 प्रति लाख) और ब्राजील (22.5) जैसे देशों की तुलना में भारत ज्यादा सुरक्षित है। यहां तक कि रूस (7.3) और अमेरिका (6.4) जैसे विकसित देशों में भी हत्या की दर भारत से कहीं ज्यादा है, जबकि चीन (0.5) और जापान (0.3) सबसे सुरक्षित देशों में है।

प्रसिद्ध अर्थशास्त्री स्वामीनाथन अय्यर के विश्लेषण ‘स्वामीनॉमिक्स’ के मुताबिक भारत में यह गिरावट केवल कानून-व्यवस्था के कारण नहीं, बल्कि सामाजिक और आर्थिक संतुलन के कारण है। भारत में फुटपाथ विक्रेताओं और छोटे व्यवसायों ने अनौपचारिक ‘संपत्ति अधिकार’ की प्रणाली विकसित की है। अवैध जगहों पर भी लोग ‘स्थान’ के मालिक होते हैं, जिसे वे बेच सकते हैं या किराए पर दे सकते हैं और पुलिस व अन्य विक्रेता इसका सम्मान करते हैं।

एक अर्थशास्त्री के सिद्धांत के मुताबिक समाजों में ‘स्थिर डाकुओं’ की व्यवस्था यानी राजनेता, नौकरशाह और स्थानीय ताकतवर लोगों द्वारा नियंत्रित एक स्थायी सत्ता ढांचा, हिंसा को सीमित करता है। भारत में यह ढांचा औपचारिक रूप से भले भ्रष्ट लगे, लेकिन इसने अपराधियों को स्थिर व्यवस्था में बदल दिया है, जिससे लूटपाट और हत्याएं कम हो रही हैं। भारत की आर्थिक स्थिति अभी भी कई देशों से कमजोर है, फिर भी हत्या की दर कम है। यह दर्शाता है कि अपराध नियंत्रण केवल आर्थिक समृद्धि से नहीं, बल्कि सामुदायिक भावना, सामाजिक मानदंडों और पारस्परिक समझ से भी संभव है।

संयुक्त राष्ट्र और विश्व बैंक की रिपोर्टों के मुताबिक भारत अब दुनिया के सबसे सुरक्षित देशों में गिना जा रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि भले ही भारत की पुलिस और न्याय प्रणाली पर सवाल उठते हों, लेकिन सामाजिक विकास, उग्रवाद पर नियंत्रण और निगरानी तंत्र के विस्तार ने मिलकर भारत को अपराध के मामले में अधिक सुरक्षित बना दिया है।

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