महात्मा गांधी : बापू की सोच से कितना अलग है आज का भारत… 10 प्वाइंट्स में समझें

Seema Pal

देश के बापू, महात्मा गांधी का नाम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रेरणास्त्रोत के रूप में जाना जाता है। आज, 30 जनवरी के ही के दिन नाथूराम गोडसे ने गोली मारकर उनकी हत्या कर दी थी। लेकिन वह भारत के जननायक बापू ही थे, जो मौत की शैया पर लेटकर भी सभी भारतीयों के लिए अमर हो गए। आज महात्मा गांधी जी की पुण्य तिथि है। आज देश में हर नागरिक अमन और चैन की सांस ले रहा है, यह गांधी जी का ही भारत है, जो परतंत्रता की जंजीर से आजाद होकर ऊंचाईयों की बुलंदियों को छू रहा है।

महात्मा गांधी ने भारतीय समाज और राजनीति के लिए जो दृष्टिकोण और विचार प्रस्तुत किए, वे न केवल स्वतंत्रता संग्राम के समय में प्रासंगिक थे, बल्कि आज भी हमारे समाज के लिए मार्गदर्शक बने हुए हैं। गांधी जी के विचारों में जो शांति, अहिंसा, सत्य, और आत्मनिर्भरता का संदेश था, वह एक ऐसे समाज के निर्माण के लिए था जो न केवल स्वतंत्र हो, बल्कि नैतिकता, समता और सहिष्णुता पर आधारित हो।

आज का भारत, जो आजादी के 75 सालों के बाद एक वैश्विक शक्ति के रूप में उभर रहा है, वास्तव में वह भारत गांधी जी की सोच से काफी अलग है। आईए जानते हैं कि आज का भारत य महात्मा गांधी की सोच के विभिन्न पहलुओं से कितना मेल खाता है…

आध्यात्मिकता और अहिंसा का सिद्धांत

महात्मा गांधी का जीवन दर्शन अहिंसा पर आधारित था। उन्होंने हमेशा कहा कि सत्य और अहिंसा का पालन करते हुए किसी भी लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है। गांधी जी का मानना था कि हिंसा के रास्ते पर चलकर हम कभी सही समाधान तक नहीं पहुंच सकते। उन्होंने भारतीय समाज में हर प्रकार की हिंसा के खिलाफ आवाज उठाई, चाहे वह युद्ध हो, साम्प्रदायिक दंगे हों, या फिर सामाजिक भेदभाव हो।

आज का भारत हालांकि कई सकारात्मक विकास की ओर बढ़ चुका है, लेकिन हिंसा और सामाजिक असहिष्णुता की घटनाएं भी निरंतर देखने को मिलती हैं। धार्मिक और जातिगत हिंसा, राजनीति में असहिष्णुता, और पर्यावरणीय संकट जैसे मुद्दे आज के भारत में मौजूद हैं। यह गांधी जी की अहिंसा की सोच से काफी भिन्नता दर्शाता है।

स्वदेशी आंदोलन और आत्मनिर्भरता

गांधी जी का ‘स्वदेशी’ आंदोलन भारतीय नागरिकों को अपने संसाधनों और वस्त्रों पर निर्भर रहने के लिए प्रेरित करता था। उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारतीय वस्त्र उद्योग को बढ़ावा दिया और भारतीय गांवों में आत्मनिर्भरता की आवश्यकता पर बल दिया। उनका मानना था कि आत्मनिर्भरता केवल आर्थिक स्वतंत्रता की ओर नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक स्वतंत्रता की दिशा में भी एक कदम है।

आज का भारत – आज हम आत्मनिर्भरता की दिशा में कदम बढ़ा रहे हैं, लेकिन वैश्विक व्यापार और आयात पर हमारी निर्भरता बनी हुई है। ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ जैसे अभियान इसकी दिशा को बदलने के लिए हैं, लेकिन वास्तविक स्थिति में कई उद्योगों में भारत अभी भी विदेशों पर निर्भर है। इसके अलावा, ग्रामीण क्षेत्रों में अब भी आत्मनिर्भरता का स्तर बहुत कम है।

समानता और सामाजिक न्याय

गांधी जी ने हमेशा समाज में समानता और न्याय की आवश्यकता को प्रमुखता दी। उनका मानना था कि कोई भी समाज तभी प्रगति कर सकता है, जब उसमें प्रत्येक व्यक्ति को समान अधिकार मिलें, चाहे वह जाति, धर्म या लिंग के आधार पर हो। उन्होंने अस्पृश्यता को समाप्त करने के लिए बहुत संघर्ष किया और ‘हरिजन’ शब्द का प्रयोग किया, जो उनकी नज़रों में अपार्थेड और जातिवाद से बाहर निकले लोगों के लिए था।

आज का भारत – आज देश एक लोकतांत्रिक राष्ट्र है, जिसमें समान अधिकारों की गारंटी संविधान द्वारा दी गई है। हालांकि, जातिवाद, लिंगभेद, और धर्म आधारित भेदभाव आज भी कुछ हद तक भारतीय समाज में मौजूद हैं। विभिन्न रिपोर्टों और अध्ययनों में यह देखा गया है कि भारतीय समाज में सामाजिक असमानता की खाई अब भी गहरी है, विशेषकर ग्रामीण और गरीब वर्गों में। गांधी जी की समानता और न्याय की सोच आज भी पूर्ण रूप से लागू नहीं हो सकी है।

श्रम और ग्रामीण विकास

गांधी जी का मानना था कि भारत की असली शक्ति उसके गांवों में छिपी है। उन्होंने ग्रामीण विकास को प्रगति की कुंजी माना। उनका आदर्श था कि जब तक भारतीय गांवों का विकास नहीं होगा, तब तक देश का वास्तविक विकास संभव नहीं है। गांधी जी के अनुसार, ग्राम स्वराज्य भारतीय समाज की रीढ़ की हड्डी था।

आज का भारत – देश में आज शहरीकरण की प्रक्रिया तेजी से बढ़ी है, और अधिकतर संसाधन शहरों में केंद्रित हो गए हैं। हालांकि, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘प्रधानमंत्री आवास योजना’ और ‘ग्रामोत्थान’ जैसे कार्यक्रमों ने ग्रामीण विकास पर ध्यान दिया है, लेकिन गांधी जी के सपने जैसा ग्राम स्वराज्य अभी भी दूर की कौड़ी नजर आता है। भारतीय गांवों में आज भी बुनियादी सुविधाओं की कमी, जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, और रोजगार के अवसर, बहुत बड़ी समस्या है।

धर्मनिरपेक्षता और सहिष्णुता

गांधी जी का धर्मनिरपेक्षता पर गहरा विश्वास था। उन्होंने हमेशा यह कहा कि धर्म को राजनीति से अलग रखा जाना चाहिए और प्रत्येक व्यक्ति को अपनी आस्था के अनुसार जीने की स्वतंत्रता होनी चाहिए। गांधी जी का मानना था कि भारत विविधताओं का देश है और यहां पर विभिन्न धर्मों के लोग शांति और सद्भाव के साथ रहते हुए एक मजबूत समाज का निर्माण कर सकते हैं।

आज का भारत – देश में धर्मनिरपेक्षता का सिद्धांत संविधान में तो मौजूद है, लेकिन कई बार धर्म आधारित राजनीति और सांप्रदायिक संघर्ष समाज में विभाजन का कारण बनते हैं। धार्मिक असहमति और सहिष्णुता की कमी आज भी समाज में देखी जाती है, जो गांधी जी के विचारों से एकदम विपरीत है।

गांधी जी और आज भारत की सोच में अंतर

महात्मा गांधी की सोच और आज के भारत के बीच कई महत्वपूर्ण अंतर हैं। गांधी जी ने जिस नैतिकता, सत्य और अहिंसा के रास्ते पर चलने की बात की थी, वह आज भी समाज के लिए एक आदर्श है, लेकिन आज के समय में भौतिकवाद, आर्थिक दबाव और राजनीतिक विभाजन ने गांधी जी के सिद्धांतों को चुनौती दी है। हालांकि, कई योजनाएं और कदम गांधी जी के विचारों से प्रेरित हैं, फिर भी भारतीय समाज में उनके आदर्शों को पूरी तरह से लागू करने में अब भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है।

आज के भारत में, अगर हम गांधी जी के विचारों को सही मायने में अपनाना चाहते हैं, तो हमें समाज में नैतिकता, अहिंसा, समानता और समरसता की दिशा में और ठोस कदम उठाने की जरूरत है। यह एक लंबी यात्रा हो सकती है, लेकिन गांधी जी के विचारों की रोशनी में, हम एक सशक्त और नैतिक समाज की ओर बढ़ सकते हैं।

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