कम पाप बनाम ज्यादा पाप! इस तर्ज पर महात्मा गांधी ने कहा था- ’60 कुत्तों को मार दो’, नई बहस शुरू

Mahatma Gandhi on Dog : दिल्ली की गलियों और सड़कों पर घूमते लावारिस कुत्तों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला दिया है। अदालत ने स्पष्ट कहा है कि ऐसे कुत्ते, जो लोगों के लिए खतरा बन सकते हैं, उन्हें तुरंत अलग किया जाए और उन्हें सड़कों पर घूमने न दिया जाए। इस आदेश के बाद से सोशल मीडिया और मोहल्लों की बैठकें तक इस पर बहस छिड़ गई हैं।

कुछ लोग इसे जनता की सुरक्षा के लिए जरूरी बता रहे हैं, उनका कहना है कि लावारिस कुत्तों के हमलों की खबरे अक्सर आती हैं, इसलिए यह कदम उचित है। वहीं, दूसरी ओर डॉग लवर्स का तर्क है कि इंसान और कुत्तों का रिश्ता बहुत पुराना है, और उन्हें समाज से अलग करना न तो सही है और न ही व्यावहारिक।

नेताओं से लेकर मशहूर हस्तियों तक की इस फैसले पर अलग राय है। उनका कहना है कि कुत्तों को समाज से अलग करना किसी समाधान का तरीका नहीं है। इस बहस के बीच एक पुरानी घटना की चर्चा भी होने लगी है, जिसमें महात्मा गांधी ने भी लावारिस और पागल कुत्तों के बारे में अपनी राय दी थी। खास बात यह है कि गांधीजी ने भी एक बार पागल कुत्तों को मारने का समर्थन किया था, जबकि वे पूरी दुनिया में अहिंसा के सबसे बड़े पैरोकार माने जाते हैं।

गांधीजी ने क्यों दी कुत्तों को मारने की सलाह

साल 1926 की बात है। अहमदाबाद के मशहूर टेक्सटाइल कारोबारी अंबालाल साराभाई की मिल में अचानक 60 कुत्ते पागल हो गए। इन कुत्तों से मिल में काम करने वाले मजदूरों और आसपास के लोगों को गंभीर खतरा था। साराभाई ने फैसला लिया कि इन कुत्तों को मार दिया जाए, लेकिन जैसे ही यह खबर फैली, लोग नाराज हो गए और विवाद हो गया।

इस विवाद के बीच साराभाई सीधे साबरमती आश्रम पहुंचे और महात्मा गांधी से सलाह मांगी। उन्होंने पूरी स्थिति बताई और पूछा कि क्या उनका फैसला सही है। गांधीजी ने थोड़ी देर सोचकर कहा, “और क्या किया जा सकता है?” यानी उन्होंने इस फैसले का समर्थन किया।

“कम पाप” बनाम “ज्यादा पाप”

लोग हैरान रह गए कि अहिंसा के पुजारी गांधीजी ने ऐसा कैसे कह दिया। इस पर गांधीजी ने यंग इंडिया में एक लेख लिखा और अपनी सोच स्पष्ट की। उन्होंने कहा, किसी भी जीव की हत्या पाप है, इसमें कोई संदेह नहीं। लेकिन जीवन में कुछ परिस्थितियां ऐसी हो सकती हैं, जब हमें कम पाप को चुनना पड़ता है ताकि बड़े पाप से बचा जा सके।

गांधीजी ने उदाहरण दिया- हम कीटनाशक डालकर कीड़े मारते हैं, यह भी हिंसा है, पर यह हमारी सेहत और साफ-सफाई के लिए जरूरी है। उसी तरह, यदि कोई कुत्ता पागल है और लोगों पर हमला कर सकता है, तो उसे मारना शहर में रहने वालों के लिए “कम पाप” है, क्योंकि यदि ऐसा न किया जाए तो कई लोगों की जान खतरे में पड़ सकती है।

लावारिस कुत्तों पर गांधीजी की नसीहत

गांधीजी ने समाज को यह भी समझाया कि सभ्यता की पहचान इस बात से होती है कि वहां जानवरों के साथ कैसा व्यवहार होता है। उन्होंने लिखा- अगर किसी शहर में लावारिस कुत्ते सड़कों पर घूम रहे हैं, तो यह समाज के लिए शर्म की बात है। कुत्ता एक वफ़ादार साथी है, उसका सम्मान करना चाहिए, लेकिन उसे यूं ही छोड़ देना जिम्मेदारी से भागना है।

जिम्मेदारी लो या फिर चिंता छोड़ दो

गांधीजी का मानना था कि हर इंसान को अपनी कमाई का एक हिस्सा ऐसे संगठनों को देना चाहिए, जो कुत्तों की देखभाल करते हैं। यदि कोई यह खर्च नहीं उठा सकता, तो उसे चाहिए कि वह कुत्तों की जगह अन्य पशुओं की सेवा पर ध्यान केंद्रित करे।

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