Maharajganj : 36 वर्ष बाद भी इतिहास, हालात और अधूरे ख्वाब…

भास्कर ब्यूरो

  • 2 अक्टूबर 1989 को गोरखपुर से अलग होकर 59वे जनपद का हुआ था गठन

Maharajganj : 2 अक्टूबर 1989 को गोरखपुर से अलग होकर महराजगंज ने एक स्वतंत्र जनपद के रूप में अपनी पहचान बनाई। आज जब यह जनपद 36 वर्ष का हो गया है, तो यह अवसर केवल जश्न का नहीं, बल्कि आत्ममंथन का भी है। यह वह पड़ाव है जहां अतीत की उपलब्धियों को याद करते हुए भविष्य की चुनौतियों को समझना जरूरी है।

    महराजगंज का इतिहास स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ा रहा है। 1931 में सिसवा का खेसरारी गांव और 1942 में घुघली का विशुनपुर गांव अंग्रेजी हुकूमत की बर्बरता का शिकार बने। महान क्रांतिकारी शिब्बनलाल सक्सेना ने तराई की आवाज को राष्ट्रीय स्तर तक पहुंचाया। जनपद बनने के बाद भी यहां के लोगों ने विकास की उम्मीदों को संजोए रखा, लेकिन कई मोर्चों पर यह उम्मीदें अधूरी ही रहीं।गन्ना उत्पादन में अग्रणी महराजगंज की मिट्टी ने किसानों की तकदीर इबारत लिखी, लेकिन समय के साथ चार में से तीन चीनी मिलें बंद हो गईं। इससे न केवल कृषि को झटका लगा, बल्कि रोजगार की तलाश में युवाओं का पलायन भी बढ़ा। कृषि फार्मों को हाईटेक बनाने की योजनाएं अब भी कागजों में दंभ तोड़ रही हैं।36 वर्षों में भी जिला मुख्यालय पर ट्रेन की सुविधा नहीं मिल सकी। हर चुनाव में यह मुद्दा उठता है, लेकिन समाधान नहीं होता। वर्तमान समय में रेलवे लाइन को जोड़ने के लिए भारत सरकार के वित्त राज्य मंत्री और महराजगंज के सांसद की मुखर होकर रेलवे लाइन का कार्य तेजी के साथ आगे बढ़ रहा है। उम्मीद है कि रेल का सपना अब हकीकत की ओर अग्रसर होता दिख रहा है।नगर क्षेत्र की सड़कों की हालत आज भी वैसी ही है जैसी पहले थी।सकरी गलियां उबड़-खाबड़ सड़कें अभी भी हर ओर दिखाई देती है।अतिक्रमण से जूझती बलिया नाला पर एकमात्र पुल दशहरा, मोहर्रम या चुनावी रैलियों के समय संपर्क तोड़ देता है। रिंग रोड, बाईपास और चौड़ी सड़कों का सपना अब भी अधूरा है।

    स्वास्थ्य और शिक्षा की तस्वीर

    गंभीर बीमारियों के इलाज की समुचित व्यवस्था नहीं है। शिक्षा के क्षेत्र में नवोदय विद्यालय, पॉलिटेक्निक, राजकीय महाविद्यालय और केन्द्रीय विद्यालय जैसे संस्थान खुले हैं, लेकिन गुणवत्ता और गति की कमी है। महिला शिक्षा की स्थिति चिंताजनक है और केन्द्रीय विद्यालय का जनपद को पिछले महीने में मिलना शिक्षा के क्षेत्र में बड़ी उपलब्धि है।

    पर्यावरण और पर्यटन की उपेक्षा

    नगर क्षेत्र में मुख्यालय स्थित सार्वजनिक पार्क और सक्सेना चौक पर स्थित कारापाथ पार्क मिलना एक सकुन देता है। जहां लोग स्वच्छ हवा में योग या सैर करते नजर आते हैं। सोहगीबरवा वन्य जीव अभ्यारण्य को पर्यटक स्थल के रूप में विकसित करने की योजनाएं अब भी अधूरी हैं। दर्जिनिया ताल को मगरमच्छ संरक्षण केंद्र के रूप में विकसित किया गया है, लेकिन प्रचार और सुविधाओं की कमी के कारण यह भी उपेक्षा का शिकार है।

    बुनियादी ढांचे की कमी

    महराजगंज विकास प्राधिकरण का गठन अब तक नहीं हुआ है। प्लॉट और आवासीय घरों का आवंटन नहीं हो पाया है। हर साल तबाही मचाने वाली महाव, डोमरा, नारायणी और गंडक नदियों का स्थायी समाधान नहीं निकल पाया है। पशुपालन में भी इलाज की बेहतर सुविधाओं का अभाव है।

    उपलब्धियों की झलक

    इन तमाम चुनौतियों के बीच जनपद ने कुछ उपलब्धियां भी हासिल की हैं:

    • नवोदय विद्यालय, पॉलिटेक्निक स्कूल, महिला चिकित्सालय, महिला थाना, फायर स्टेशन।
    • पासपोर्ट सेवा केंद्र, मुख्य डाकघर, विद्युत उपकेंद्र और नये बस स्टेशन।
    • वनटांगिया गांव को राजस्व ग्राम की पहचान।
    • गांव-गांव तक सड़क और बिजली की पहुंच।

    जनपद की उपलब्धियों पर एक नजर

    तहसील |4
    ब्लॉक 12
    नगर निकाय 7
    पुलिस स्टेशन 20
    गांव 882
    क्षेत्रफल —-2934 वर्ग किमी

    साक्षरता दर —56% |

    अधूरे ख्वाब

    जनपद के सामने कई ऐसे सपने हैं जो अब भी अधूरे हैं:

    • विशुनपुर गबडुआ जैसे स्वतंत्रता स्थलों का अपेक्षित विकास।
    • बंद चीनी मिलों का पुनरुद्धार।
    • बलिया नाला पर वैकल्पिक पुल का निर्माण।
    • राजकीय कृषि अनुसंधान केंद्र की स्थापना।
    • कृषि महाविद्यालय की स्थापना
    • पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए आधारभूत ढांचे का विकास।

    आगे की राह

    महराजगंज अब युवावस्था में है, लेकिन सेहतमंद नहीं। यह समय है जब जनपद को एक समग्र विकास की दिशा में ले जाने के लिए ठोस योजनाएं, राजनीतिक इच्छाशक्ति और जनभागीदारी की जरूरत है। अगर इन अधूरी ख्वाहिशों को पूरा किया जाए, तो महराजगंज न केवल उत्तर प्रदेश बल्कि देश के मानचित्र पर एक चमकता हुआ सितारा बन सकता

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